Moral Stories in Hindi : आज जब से वो कुरिअर गरिमा को मिला वो परेशान सी घर में चहलक़दमी कर रही थी…मुझे गार्गी से आज जलन क्यों हो रही है….. माँ पापा दोनों ने हम दोनों को हमेशा एक जैसा ही समझा…. जहाँ हमने पसंद किया वहाँ ही शादी भी करवा दी पर आज क्यों एक पल को ऐसा लग रहा वो मुझे हर बात पर नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है… ऐसा पहली बार हुआ होता तो समझ आता पर बार बार…
ये सब सोचते सोचते और ना चाहते हुए भी गरिमा ने अपनी माँ को फ़ोन लगा दिया ।
“ हैलो माँ ये क्या है…फिर से गार्गी ने कुरिअर किया…..माँ मैं जैसी हूँ वैसी ही रहने क्यों नहीं देते हैं आप लोग…. हर बार गार्गी मेरे लिए ये सब जो करती है मुझे जरा अच्छा नहीं लगता है ….मैं जैसी भी स्थिति में हूँ ठीक हूँ…. मुझे उससे ना तो कोई जलन है ना ही मुझे उसके जैसा बनने को कोई शौक़….उसके ससुराल वालों को आपत्ति है क्या मेरे रहन-सहन से… या मेरे कपड़ों से…. क्या सच में गार्गी को भी हम पर तरस आता है..? “गरिमा माँ से बात करते हुए थोड़ा रोष व्यक्त करते हुए बोली
“बेटा ये क्या कह रही हो… अरे गार्गी तेरी ही बहन है… क्या हुआ जो उसने भेज दिया वो जानती है तेरे हालात…. वैसे तो उसने मेरे लिए भी वैसे ही कुछ भेजा है ….बता रही थी फोन पर … बेटा अपनी बहन को गलत समझना बंद कर उसकी भावनाओं को समझा कर ना… वैसे कोई कुछ नहीं कहता उसके ससुराल में.. पर एक बात तो तू भी जानती है अगर कोई कुछ कहेगा भी तो तेरी बहन तेरे ख़िलाफ़ कभी कुछ नहीं सुनेंगी ।”सुनयना जी गरिमा को समझाते हुए बोली
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“ माँ मैं क्यों सोचूँ कौन क्या कहेगा…. ये मेरी ज़िन्दगी है… जो मेरे हालात है मैं उसमें संतुष्ट हूँ …. क्या हुआ जो हम दोनों पति पत्नी उन लोगों जैसा नहीं कमाते है ना ही हम कोई फ़िज़ूलख़र्ची करते….हमें नहीं पसंद है गार्गी की तरह पैसे उड़ाने का… उसे हमारी वजह से शर्मिंदगी उठाने की ज़रूरत नहीं है …ऐसा है तो हम नहीं जाएँगे उसके घर बात ख़त्म ।”गरिमा का मूड पूरा बिगड़ गया उसने उसी वक़्त फ़ोन रख दिया
पता नहीं क्या सोचते हुए उसने वो कुरिअर वाला बॉक्स उठाया और ग़ुस्से में फेंकने ही जा रही थी कि दिल ने कहा देख तो ले एक बार….
गरिमा मन को शांत कर डिब्बा खोलने लगी..
अंदर एक पीले रंग का कुर्ता शरारा और दुपट्टा था साथ में उसके पति नकुल के लिए भी कुर्ता पजामा….. कपड़े बाहर निकालते वक्त एक काग़ज़ का टुकड़ा ज़मीन पर गिरा…..उत्सुकता वश उठा कर वो उसे देखने लगी…
प्यारी गरू दी…. पता है तुम मुझसे बहुत ज़्यादा नाराज़ रहती हो….जितना होना हो जाओ … मैं मना लूँगी तुमको…. ये कपड़े प्लीज़ हमारे गृहप्रवेश में तुम और जीजाजी पहनकर आना…. पता है दी तुम्हें लगता है कि मैं ये सब दिखाने को तुम्हें भेजती हूँ…तुम्हारे मन में मेरे लिए कड़वाहट भरी हुई है…. पर ये सब करने के पीछे की वजह भी तुम ही हो दी….. याद है हम दोनों में साल भर का ही तो अंतर है हम जब भी कपड़े पहनते थे एक जैसे…..बचपन जवानी यहाँ तक की मेरी शादी पर भी हमने लगभग मिलते जुलते कपड़े लिए हमारी शादी का जोड़ा भी एक जैसा ही था
जैसा तुमने जो दो साल पहले पहना अपनी शादी में मैंने भी लगभग वैसा ही लिया….. तुम्हें याद है जब तुम्हारा वेदांत हुआ था तो मैं पूछी थी तुम कैसी साड़ी ले रही हो …तब मैंने भी वैसी ही साड़ी पहनी थी …. फिर जब मेरी कुहू हुई तो मैं अपनी जैसी साड़ी ही तुम्हें भेजी थी….उस वक़्त जब तुम पहन कर नहीं आई मुझे बहुत रोना आया था समझ गई थी कि तुम्हें बुरा लगा है…जब माँ से मैंने कहा तो वो बोली तू तो जानती है गरिमा कितनी स्वाभिमानी है उसे दूसरे का किया दिया कुछ पसंद नहीं आता ….
इसलिए इस बार तुम्हें इतना लंबा पत्र लिख कर भेज रही हूँ…. प्लीज़ दी पहन कर आना हाथ जोड़ती हूँ तुम्हारे….. ये आदत भी तो तुम्हारी ही लगाई हुई ही है ना …हम जब भी कहीं साथ रहे एक जैसे कपड़ों में रहे तब से मैं ये सोच रखी थी हम जब भी साथ होंगे एक जैसे कपड़ों में रहेंगे ….. क्या अपनी गार्गी की इतनी सी बात नहीं मानोगी????”
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गरिमा की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे …. उसकी अपनी छोटी बहन को समझने में कैसे भूल कर गई वो …कैसे सोच लिया उसने की गार्गी उससे ज़्यादा पैसे वाले घर में गई है तो ये सब दिखावा करती रहती है…..सच ही तो कह रही है वो हम तो एक दूसरे के जन्मदिन पर भी एक जैसे कपड़े पहनते थे सब हमें जुड़वां बहने कहा करते थे…. मैं ही तो कहती थी हम सगी बहनें हैं …हमेशा एक जैसे ही कपड़े पहनेंगे जब साथ होंगे फिर मैं ही कैसे भूल गई…. रोते रोते उसने गार्गी को फ़ोन लगा दिया
“ हैलो गार्गी मुझे माफ कर दे मेरी बहन….. तुझे कितना गलत समझ रही थी….. मुझे लगा तू अपने पैसे का रौब दिखाती….. तेरे ससुराल वाले तुम्हें मुझे लेकर सुनाते होगे इसलिए तू हर बार अपने घर के फ़ंक्शन पर मेरे लिए कपड़े भेज दिया करती है….. ये बात तो मैं शादी के बाद भूल ही गई थी गार्गी ….तू अभी तक याद रखे हुए थी…. ।” गरिमा बिना रूके दिल की बात कह रोने लगी
“ तुम रो क्यों रही हो दी मुझे तो तुम्हारी बात कभी बुरी नहीं लगी…. मैं समझ गई थी तुम्हारे मन में कुछ है इसलिए इस बार लिख कर भेज दी…. पता इससे मिलता जुलता माँ पापा को भी भिजवाया है…. सोच रही थी हम सब एक जैसे ही कपड़े पहने …वो क्या है ना सासु माँ का मन था सब पीले कपड़े ही पहने तो उन्होंने साड़ी ली और मैं हम दोनों के लिए कुर्ता शरारा…. तुम्हें अच्छी तो लगी ना..।” गार्गी ने पूछा
”हाँ गार्गी वैसे भी हमारी पसंद इस मामले में शुरू से ही मिलती हैं हम जब भी कपड़े लेने जाते एक ही कपड़े पर साथ हाथ रखते तब दुकानदार अंकल हँस कर पापा से कहते साहब आप एक बिटिया को भी लेकर आओ तो एक जैसा ही दो सामान घर जाना है…।” कहते हुए दोनों बहनें हँसने लगी
” दीदी तुम समय से पहले पहुँच जाना हम साथ में तैयार होकर बाहर निकलेंगे जुड़वां बहनों जैसी…. तुम आओगी ना दी….?” गार्गी ने पूछा
” ज़रूर आऊँगी गार्गी और वो कपड़े ही पहनूँगी ।” गरिमा ने कहा
गृहप्रवेश में दोनों बहनों का पहले सा प्यार देख सुनयना जी बलैयाँ लेते नहीं थक रही थी…. मन ही मन कह रही थी मेरी दोनों बेटियों को बस ऐसे ही खुश रखना।
अक्सर देखा गया है दो बहनों की शादी के बाद अगर ससुराल आर्थिक रूप से सम्पन्न ना हो तो मनभेद आ जाता है…. कई बार अपने से अच्छी और बेहतर स्थिति में कोई हो तो उसे देख कर जलन भी होती है….बात कुछ चाहे ना भी हो पर जो थोड़ी कमतर होती वो हर बात पर बहुत गहराई से सोचने लगती है….. ऐसा नहीं है कि सब बहने गरिमा और गार्गी जैसा ही सोच रखती हो…. पर ऐसा हो तो कितना अच्छा हो…
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#जलन
V M
बहुत अच्छी सोच दोनो बहने की।
इस कहानी में दो बहनों की शादी के बाद के आर्थिक स्थिति का कारण जो कम पेसेवालो के मन में विचार आता है। ये ही सही दर्शाया है।