मुझे हक है…! – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय  : Moral Stories in Hindi

शाम से ही रिचा अनमनी सी हो रही थी। एक खबर जो उसे सुकून से रहने नहीं दे रही थी ।

उसे अभी ऑफिस से घर  लौटे ज्यादा समय नहीं हुआ था।वह अपने बिस्तर पर लेटी हुई खिड़की से बाहर देख रही थी। मौसम बहुत ही खुशनुमा था।

बाहर बादल और हल्की-हल्की बारिश हो रही थी मगर रिचा आज बहुत ही ज्यादा उदास थी ।

बहुत ही असमंजस में वह लेटी  सोच रही थी क्या करूं क्या ना करूं?

तभी उसकी बहन शालिनी कूदती फांदती हुई वहां आई

“यह क्या दीदी तुम सो रही हो। चलो न बारिश का मजा लेते हैं।”

“नहीं शालू मेरा मन नहीं है। तुम जाओ।”

“यह क्या दीदी। तुम और बारिश से अनबन।तुम्हारा तो हक बनता है भीगने का।”शालिनी अपने चुहल करने वाले अंदाज में हंसते हुए बोली।

“अरे यह क्या तुम रो रही हो दीदी!! क्या हुआ!आज ऑफिस में कोई अनबन हो गई है क्या?”

उसने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें रिचा के चेहरे पर टिका दी “तुम बहुत ही ज्यादा डिप्रैस लग रही हो? कोई तो बात ही दीदी!! तुम मुझसे भी नहीं बताओगी?”

“ नहीं रिचा ऐसी बात नहीं।”

“ फिर कोई तो और बात है?”

“ क्या बात है दीदी ?”इतनी उलझन में क्यों हो?अब मेरा पूछने का हक भी नहीं है क्या?”

“ नहीं नहीं तुम्हारा पूरा हक है। तुम्हारे सिवा अब मेरा है कौन?”रिचा रो पड़ी।

“ऐसी बातें क्यों कर रही हो? क्या बात है? कुछ तो बताओ?”

“ शालू, शरद को हार्ट अटैक आया था।वह अस्पताल से आज ही डिस्चार्ज होकर घर गए हैं।”

“क्या!!! शालिनी भौंचक्की हो गई। 

“ये कैसी बातें कर रही हो दीदी, आपको किसने बताया ये सब?”

“ प्रशांत ने!आज ही बताया था कि शरद एक हफ्ते से अस्पताल में एडमिट था।आज उसे छुट्टी मिली है।”

“हे भगवान! फिर उसने आज क्यों बताया? पहले नहीं बता सकता था क्या?”

“मैंने भी यही कहा था पर शरद ने मना कर दिया था।

वैसे भी तलाक के लिए केस चल रहे हैं तो उसने मना कर दिया होगा।”

“अरे दीदी तलाक तलाक बाद में होता रहेगा तुमको पहले उससे मिलने जाना चाहिए। आखिर है तो हमारे जीजा जी ने।

तुम्हारी उनसे नहीं बनी तुम घर छोड़कर आ गई ये सब मैटर नहीं रखता है।

अभी तुम्हें उनसे मिलने जाना चाहिए।”

“आफिस में भी सब यही कह रहे थे। पर अब किस मुंह से  वहां जाऊं, किस हक से?  बहुत ही अकड़ और घमंड में मैं उनके घर से अपने अधिकार खत्म कर निकल आई थी। अब समझ में नहीं आ रहा क्या करूं?” 

“दीदी यह तो बहुत ही गंभीर बात है।सारे अधिकार और हक को किनारे रख दो।

चलो हम दोनों चलते हैं। कुछ भी नहीं तो एक मानवता के नाम पर! तुम्हें उनसे मिलना चाहिए।”

*कहीं उन्होंने और  उनके परिवार वालों ने बाहर का रास्ता दिखा दिया तो?”

“नहीं दीदी,शरद जीजू की पत्नी होने के हक से यह तेरा अधिकार है। अभी तो तलाक भी नहीं हुआ है।

तलाक के बाद भी तुम दोनों का रिश्ता तो रहेगा ही न।”

शालिनी ने गाड़ी बाहर निकाल ली थी।

रिचा चुपचाप गाड़ी की सीट पर अपना सिर टिका कर बैठ गई।

चलचित्र की तरह कुछ यादें उसके जेहन में दौड़ने लगी थी।

वह और शरद दोनों ही एक कंपनी में काम करते थे।उसी दौरान दोनों ने प्रेम विवाह करने का फैसला लिया। 

दोनों में से किसी के परिवार को कोई आपत्ति नहीं थी। हंसी-खुशी दोनों ने विवाह कर लिया।

कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चला लेकिन फिर दोनों में टकराव शुरू होने लगा। छोटी छोटी बातों पर झगड़े बढ़ने लगे।

इतना कि दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया।

शरद ने उस कंपनी से रिजाइन कर कहीं और चला गया।

रिचा शरद के घर से निकल कर अपनी छोटी बहन शालिनी के फ्लैट में आ गई जो कुछ दिनों पहले ही नौकरी के लिए आई थी।तब से दोनों बहनें साथ ही रह रही थी।

शालिनी के गाड़ी के हार्न से रिचा की नींद टूटी।

सामने शरद का यानी उसका घर था।

अंदर बाहर सब जगह की एक एक सजावट उसने अपने हाथों से की थी। शरद और वह,दोनों ने मिलकर इस प्यार भरे घरौंदे को सजाया था।

दरवाजा खुला था। रिचा अंदर घुसी।

सबकुछ वैसा ही था। कुछ भी नहीं बदला था।

रिचा की आंखें भर आईं।शरद अपने कमरे में लेटा हुआ था।

शरद ने रिचा को देखा तो हैरत से भर गया।

“तुम यहां?”

“हां जीजू हम यहां।”शालिनी की बात सुनकर शरद की आंखें भर आईं।

उसने कहा “बहुत दिनों बाद यह आवाज सुनकर बहुत ही अच्छा लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि कोई अपना मिल गया है।”

“हां जीजू आपके अपने ही तो हैं हम। मैं आपकी साली और ये आपकी पत्नी!”अपने चिरपरिचित अंदाज में हंसते हुए शालिनी ने कहा फिर रुक गई।

“ओह सॉरी जीजू।आप दोनों तो,,,!!”

“अरे नहीं,तुम्हें पूरा हक है शालू। मुझे जीजू कहने का।”

“और मुझे!! रिचा ने भर आई आंखों से कहा, शरद मैं आपसे बहुत ही नाराज हूं। आपने मुझसे इतनी बड़ी बात छुपाई।” 

“कितनी बड़ी बात ?”शरद धीमे से मुस्कुरा कर बोला।

“आपको हार्ट अटैक आया था!”

“अरे वह बहुत ही माइनर अटैक था। इतना बड़ा भी नहीं इस लिए मैंने प्रशांत को मना कर दिया था।

और वैसे भी मुझे तो लगा था कि मैंने तुम्हें खो दिया है। तुम्हें अपना कहने के सारे हक खत्म कर दिया है। इस लिए!!”

“शरद प्लीज ! आप रोइए मत। मैं लौट आईं हूं आपके पास। 

मैं आप पूरे  हक के साथ वापस आना चाहती हूं। सारे केस वापस लेना चाहती हूं। क्या इस घर में मेरे लिए जगह है?”

“ है पूरा घर तुम्हारा ही तो है और यह दिल भी!” शरद ने अपने दोनों बाहें फैला दी।

रिचा उन दोनों बाजुओं में जाकर समा गई।

 “अरे दीदी जीजू आप दोनों मेरा भी तो ख्याल करो।”शालिनी ने कहा तो तीनों ही हंसने लगे।

*

प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय 

पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना 

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