moral stories in hindi : ईशा के पापा का बस चलता तो वह कभी अपनी बिटिया को पराए घर नहीं भेजते, पर क्या करें समाज की रीत ही ऐसी है कि 1 दिन अपने नाजो पली लाडो को दूसरे घर भेजना ही पड़ता है! मध्यमवर्गीय रमाकांत जी तो चाहते थे, कि उनकी बिटिया के लिए कोई घर जमाई मिल जाए, ताकि उनकी बेटी को उनका आंगन छोड़ कर दूसरे आंगन को ना सजाना पड़े!
छोटी सी थी ईशा ..तब से उसकी जिंदगी में पापा ने किसी भी ख्वाहिश को पूरी होने में कसर नहीं छोड़ी! उसका तोतली आवाज में बातें करना हो , या पहली बार लड़खड़ाते हुए चलना हो, पहली बार स्कूल गई हो, या किसी बात पर रूठी या खिलखिलाई हो, पापा ने हर पल को कैमरे में कैद कर रखा है !रमाकांत जी की पत्नी सुमन कई बार उन्हें कहती बच्ची को थोड़ा सा संघर्ष करना सीखाओ!
केवल परी ही नहीं, सशक्त भी बनाओ! रमाकांत जी कहते …मेरी बेटी के लिए ऐसा ससुराल देखूंगा ,जहां इसे मुझसे भी ज्यादा प्यार करने वाले लोग मिले !मेरी बिटिया जिस प्रकार मेरे आंगन में खिलखिलाती है ,उसी प्रकार दूसरे आंगन में भी अपनी महक फैलाए! किंतु रमाकांत जी को क्या पता था एक दिन उनकी लाडो बिटिया अर्थी में सजके जाएगी!
उसकी किस्मत में गुलाब से ज्यादा कांटो का अंबार होगा! बहुत ढूंढने पर रमाकांत जी को निशांत उनकी बेटी के लिए सही वर मिला, जो कि एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था! घर में किसी चीज की कमी नहीं थी! छोटा सा परिवार था! उन्होंने सोचा था ..ईशा जिस घर में जाएगी वहां चारों तरफ खुशियां होंगी! रमाकांत जी ने भी अपने सामर्थ्य से अधिक खर्चा किया!
शुरू शुरू में तो ईशा खूब फोन करती थी, और मिलने भी आती रहती थी! धीरे-धीरे उसका आना कम होने लगा और फोन पर भी कम ही बातें होती थी! रमाकांत जी को लगा शायद अपने घर परिवार में ईशा घुल मिल गई है, अतः उसे ज्यादा वक्त नहीं मिलता! और वह नहीं चाहते थे कि बेवजह अपनी बेटी की नई बसी जिंदगी में दखल दें !
उनके लिए यह बहुत था, उनकी बेटी ससुराल में खुश थी! उधर इशा के ससुराल वाले उसे आए दिन पैसों के लिए परेशान करने लगे !हर छोटी मोटी रसम पर बहुत अधिक डिमांड करते !कभी जमाई को बढ़िया मोबाइल चाहिए, तो कभी ननद के लिए सोने की अंगूठी !कई बार निशांत के लिए भी उन्होंने ईशा के ऊपर गाड़ी के लिए दबाव डाला ,किंतु ईशा जानती थी कि उसके पापा की इतनी हैसियत नहीं है, कि वह निशांत को 20 लाख की गाड़ी गिफ्ट करें!
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वह कई बार निशांत से कह चुकी थी कि तुम्हारे पास तो कोई कमी नहीं है, फिर भी तुम मेरे पापा से पैसे क्यों मांगते रहते हो! ईशा की इस बात पर अब निशांत उसके ऊपर हाथ भी उठाने लगा था! ईशा को अब बहुत कुछ सहन करना पढ़ रहा था ,पर वह अपने पापा को यह सब बता कर दुखी नहीं करना चाहती थी !
आज ईशा का जन्मदिन था! रमाकांत जी ने अपनी पत्नी से कहा ..चलो आज ईशा को उसका मनपसंद केक ले जाकर सरप्राइस देते हैं! तब रमाकांत जी की पत्नी ने कहा की बेटी के ससुराल में अचानक से जाना सही नहीं है! पहले उन्हें खबर तो कर दो! किंतु रमाकांत जी चाहते थे कि वह अपनी बिटिया के चेहरे की चमक देख सकें!
जैसे ही वहां जाने की तैयारी कर रहे थे, ईशा की एक वफादार नौकरानी ने एक चिट्ठी लाकर रमाकांत जी को दी! जिसे पढ़कर रमाकांत जी के होश उड़ गए! चिट्ठी में लिखा था…. पापा मुझे ले जाओ, पापा मुझे इनसे बचा लो, प्लीज पापा.. मुझे ले जाओ,! पापा आप इन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाना! इन्होंने मुझे बहुत सताया है,..
मेरे ऊपर आए दिन अत्याचार करते हैं! मैं काफी समय से यह सब सहन कर रही हूं!जल्दी आ जाओ पापा! रमाकांत जी तुरंत ईशा के ससुराल पहुंच गए,… किंतु वहां जाते ही उन्होंने देखा उनकी गुड़िया तो हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह चुकी है! ईशा ने आत्महत्या कर ली थी !
अपने पापा का भी इंतजार नहीं किया! रमाकांत जी जोर-जोर से रोने लगे, चिल्लाने लगे.. लाडो मैं आ गया, तेरा पापा आ गया! उठ जा मेरे बच्चे.. देख तेरे पापा सब सही कर देंगे, बस एक बार तू मुझे पापा कह दे, मैं इन लोगों को ऐसी कड़ी सजा दूंगा, आने वाली सात पीढ़ी याद रखेगी !पर बेटा .. एक बार तो पापा को बोलती! मैं तुझे कभी मरने नहीं देता!
क्या मुझ पर इतना भी भरोसा नहीं था! उठ जा मेरे बच्चे.. देख पापा आ गए ..देख पापा आ गए ..!और ऐसा कहते कहते स्वयं बेहोश हो गए!आज फिर से एक बार एक मासूम दहेज की बलि चढ़ गई!
घर आंगन की शान होती है बेटियां
पापा की तो जान होती है बेटियां!
हेमलता गुप्ता
स्वरचित
#घर-आंगन
V M
वह केवल उन बेटियों के लिए है जो अपने मां-बाप की बात मानती हैं मगर आजकल बेटियां 18 की पूरी होने पर अपनी मन मर्जी से भाग जाती है और फिर परेशानी में पड़ती है क्या उसके लिए यह 18 साल यह बालिग वाला टॉपिक जो है लव मैरिज पर तो कम से काम लागू नहीं होना चाहिए