आओ मेरी प्यारी बहना….! जब से तुम मेरी जिंदगी में आई हो, बिल्कुल मेरी जिंदगी बदल सी गई है। मेरी अपनी भी बहन हैं, वह भी मुझे इतना मान नहीं देती है जितना तुम मेरा ख्याल रखती हो..! शुभम की पत्नी सोनम भी हां में हां मिलाते हुए बोली -बिल्कुल सही कहा आपने..! मेरी अपनी ननद कभी इतना ख्याल नहीं रखी..!
शुभम इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य थे। नूपुर की शुभम से मुलाकात उसके बेटे केतन के एडमिशन के समय हुई थी। दसवीं में कम नम्बर आने के कारण उसे ग्यारहवीं में विज्ञान वर्ग किसी विद्यालय में नहीं मिल रहा था। केतन पढ़ने में औसतन था, लेकिन उसकी मांँ, बेटे को विज्ञान वर्ग दिलाने पर तुली थी।
नूपुर, केतन के दाखिले के सिलसिले में शहर के सभी विद्यालयों में घूम चुकी थी, लेकिन उसे कहीं भी सफलता हाथ नहीं लगी। आखिर में वह शुभम के विद्यालय आयी। शुभम से बहुत रिक्वेस्ट करते हुए बोली सर..! आप मेरे बेटे को विज्ञान वर्ग दिला दीजिए। मैं उसकी पढ़ाई का पूरा-पूरा ध्यान रखूंगी, यह मेरी जिम्मेदारी है।
उसके नम्बर बहुत कम हैं, विज्ञान वर्ग मिलना बहुत मुश्किल है… शुभम बोले!
आप चाहेंगे तो सब कुछ सम्भव है भैया..! नूपुर हाथ जोड़ते हुए बोली।
नूपुर शुभम सर से बोली, क्या मैं आपको भैया बुला सकती हूंँ…?
पता नहीं क्यों आपको देखकर भाई जैसा आभास हो रहा है।
शुभम ने कहा हांँ क्यों नहीं…? आप मुझे बेशक भैया कह सकती हैं। इस बीच नूपुर का कई बार शुभम से आमना-सामना हुआ। वह भी नूपुर को बहन जैसा ही मानने लगा था।
कुछ दिन के बाद केतन का ग्यारहवीं कक्षा में विज्ञान वर्ग में दाखिला मिल गया।
नूपुर मिठाई के डिब्बे लिए हुए, शुभम के घर आ धमकी।
आप यह मिठाई क्यों लाई हैं…,? यह सब औपचारिकता न करें बहन…!
जब आपको भैया कहा है, तो बहन पहली बार भाई के घर खाली हाथ कैसे आ सकती है..?
शुभम ने अपनी पत्नी सोनम और बेटा कुंवर से नूपुर को मिलवाया सभी नूपुर से मिलकर खुश हुए।
अब तो नूपुर वक्त बेवक्त हाथ में उपहारों का टोकरा लिए हाजिर हो जाती। कुंवर भी बुआ- बुआ करते नहीं थकता। शुभम और सोनम, नूपुर को बहुत चाहने लगे थे।
एक दिन नूपुर ने दशहरी आम की डलिया भिजवायी। शुभम उसका उपहार देखकर बहुत खुश हुआ। बहन आपने मेरे मनपसंद दशहरी आम भेजे हैं बहुत-बहुत धन्यवाद। मोबाइल से धन्यवाद कहा। नूपुर अक्सर भाई का हाल-चाल लेने आ जाती थी।
एक दिन शुभम का एक्सीडेंट हुआ। नूपुर भाई का हाल-चाल जानने के लिए ढेर सारे फल लेकर मिलने आई। शुभम के गले लगकर रोने लगी। भैया यह कैसे हो गया..? आपकी यह हालत देखकर बहन पर क्या गुजर रही है..?
शुभम की सगी बहन तानिया एक्सीडेंट सुनकर तुरंत दौड़ी आयी, और भैया की सेवा में जुट गई। नूपुर को आया देख तानिया ने भाई से पूछा भैया यह कौन है..? शुभम ने तानिया को नूपुर से मिलवाया और बोला-
यह नूपुर है…! मेरी सगी बहन से भी बढ़कर है। तानिया को अपने अंदर कुछ टूटने का आभास हुआ, लेकिन कुछ बोल नहीं पाई।
भैया नूपुर की बढ़ाई में बड़े-बड़े पुल बांँध रहे थे। शुभम के स्टाफ वाले सभी लोग देखने के लिए आए। शुभम सभी को नूपुर से मिलवा रहा था लेकिन तानिया को किसी से नहीं। बेचारी तानिया मन मसोसकर रह गई।
शुभम जल्दी ठीक होकर घर आ गए। आज कुंवर का जन्मदिन था। भैया ने तानिया को फोन पर आने के लिए बोल दिया था, और स्वयं सोनम को साथ लेकर नूपुर के घर जा पहुंचे। बहन…! मैं तुम्हें लेने आया हूंँ, कल तुम्हारे भतीजे का जन्मदिन है। नूपुर बोली- भैया मैं कल शाम को समय से पहुंच जाऊंगी।
दूसरे दिन जन्मदिन की पार्टी चल रही थी.. तभी नूपुर ने प्रवेश किया। शुभम और सोनम सब कुछ छोड़कर नूपुर बहन का अभिनंदन करने के लिए आगे पहुंँचे। नूपुर भी भाई के गले लग कर भतीजे के लिए ढेर सारे उपहार ले आई थी।
देखो तानिया..! मैं कहता था न, कि नूपुर हम लोगों को कितना प्यार करती है। देखो तुम्हारे भतीजे के लिए कितने उपहार लेकर आई है..!
हां भैया देख रही हूंँ….। खून के रिश्तों से भी बढ़कर दूसरे रिश्ते बन जाते हैं, तानिया मन ही मन बुदबुदाई।
कुछ बोला क्या तानिया..?
नहीं भैया।
कुंवर जल्दी आओ..! देखो तुम्हारी बुआ आई है। कुंवर अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था,दौड़ता हुआ आया, नूपुर ने उसे गले से लगा लिया। कुंवर भी बुआ के उपहार देखकर खुश हो गया आखिर बच्चे तो बच्चे हैं।
अब केक काटने की बारी आयी। कुंवर तुम्हारी बुआ केक कटवाएंगी..! तानिया आगे बढ़कर जाने लगी, तभी शुभम ने कहा नूपुर जल्दी आगे आओ और भतीजे को केक कटवाओ..!
नूपुर भी मुस्कुराती हुई भतीजे का हाथ पकड़ कर केक कटवाने लगी। तानिया को बहुत बुरा लगा, कि मैं तो सगी बहन हूंँ। हांँ मैं नूपुर के जैसे महंगे-महंगे उपहार देने में सक्षम नहीं हूँ।
सचमुच आज की दुनिया दिखावा के पीछे भाग रही है क्योंकि नूपुर कुछ ज्यादा ही फिल्मी रिश्ता निभा रही है।
केक काटने के बाद कुंवर पहला निवाला मम्मी के मुंह में डालने लगा, शुभम बोला नहीं कुंवर..! पहला निवाला बुआ को खिलाओ। उसने नूपुर को पहला निवाला खिलाया, इसके बाद अन्य सभी को।
नूपुर ने पॉकेट से एक ब्रेसलेट निकाल कर कुंवर के हाथ में पहना दिया कुंवर बहुत खुश हुआ।
तानिया यह सब देखकर मन ही मन दुखी हो रही थी लेकिन क्या कर सकती है। क्योंकि, वह नूपुर के जैसा दिखावा नहीं कर पा रही थी।
पार्टी खत्म हुई। तानिया, भैया- भाभी से विदा लेकर चलने लगी। तानिया…! मैं तुम्हें घर छोड़ कर आता लेकिन नूपुर को छोड़ने जाना है, इसलिए तुम्हें नहीं छोड़ने जा सकता। बाहर जाकर कोई ऑटो कर लेना। तानिया दुखी मन से विदा होकर वापस चली गई।
नूपुर को एक साड़ी और 5100 रुपए भेंट देकर शुभम स्वयं उसके घर छोड़ने गया।
वापस घर आकर शुभम और सोनम, नूपुर द्वारा दिए गए उपहार देखकर खुश हो गए। आपस में दोनों बातें कर रहे थे, कि नूपुर ने बहुत खर्च कर दिया है। वही तानिया के उपहार पर नजर भी नहीं डाली।
केतन पढ़ाई में तो बहुत कमजोर था। मामा प्रिंसिपल है, इसलिए विद्यालय में उसका दबदबा ज्यादा ही था। देखते देखते एक साल निकल गया। केतन भी ग्यारहवीं कक्षा से बारहवी में पहुंँच गया।
नूपुर का शुभम के घर हमेशा आना जाना लगा रहता था। शुभम भी उसे अपनी बहन से बढ़कर ही मानता था। नूपुर विवाह वर्षिक से लेकर बच्चों के जन्मदिन आदि का हमेशा ध्यान रखती, और आगे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती। कहने को तो नूपुर मुंह बोली बहन थी, लेकिन सगे भी उससे बहुत पीछे हो गए थे।
केतन के बारहवीं की फाइनल परीक्षाएं होने वाली थी। नूपुर ने कहा- भैया आप केतन का ध्यान रखिएगा। उसका अच्छा परसेंटेज बनना चाहिए।
अरे…! कैसी बात करती हो बहन… भांजा है मेरा, उसका ध्यान नहीं रखूंगा तो किसका रखूंँगा। तुम निश्चिंत रहो…!
केतन के प्रैक्टिकल में शुभम ने पूरे अंक दिलवाये और परीक्षा के समय भी उसका ध्यान रखा गया। नूपुर अच्छे से जानती थी –
“कि जब तक शुभम का सहयोग नहीं मिलेगा तब तक उसका बेटा का बारहवीं निकालना मुश्किल है।”
कुछ दिनों के इंतजार के बाद केतन का रिजल्ट आ गया। उसने 61% से बारहवीं पास कर लिया।
नूपुर उदास होकर शुभम से बोली… केतन का और अच्छा परसेंटेज आने की आशा थी।
कैसी बातें कर रही हो नूपुर..! केतन बहुत कमजोर विद्यार्थी था। उस हिसाब से उसके बहुत अच्छे नंबर आए हैं। मैंने अपनी तरफ से बहुत प्रयास किया है।
हांँ… मुझे मालूम है नूपुर उचटते मन से बोली।
जब तक दोनों पति-पत्नी वहां रहे, तब तक नूपुर का मिजाज उखड़ा- उखड़ा सा रहा। आज उन्हें वह अपनापन नहीं लग रहा था जो हमेशा लगता था लेकिन कुछ बोल नहीं पाए और वापस घर आ गए।
एक महीना निकल गया। नूपुर का न कोई फोन और न कोई खबर। शुभम ने फोन करके पूछा-
क्या बात है नूपुर..! न ही तुम्हारा कोई समाचार और न ही काफी दिनों से घर आई हो। व्यस्तता ज्यादा है कहकर नूपुर ने फोन काट दिया।
इतने दिनों में तो वह कम से कम दस बार आती थी।
रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला है, शुभम ने सोचा अब वह रक्षाबंधन में ही आएगी। तानिया हमेशा की तरह भाई को राखी बांधकर चली गई। न ही भैया, भाभी ने तानिया को रोका और न ही वह रुकी।
यह क्या..? रक्षाबंधन में नूपुर का इंतजार करते -करते सुबह से शाम हो गई, लेकिन नूपुर नहीं आई। शाम को पति, पत्नी नूपुर के घर पहुंचे। वहां देखा नूपुर के घर में एकदम जश्न का माहौल था। नूपुर के सगे और दूर दराज के सब भाई आए हुए थे। घर में खूब चहल-पहल थी।
बहन..! सारा दिन निकल गया, तुम्हारा इंतजार करते हुए, तुम आई क्यों नहीं…?
मेरे चार भाई हैं उनके यहां जाना जरूरी था। पहले सगे रिश्ते निभाए जाते हैं, इसके बाद मुंँहबोले।
शुभम और सोनम दोनों सुनकर सन्न रह गए। उसे नूपुर से ऐसी आशा नहीं थी।
मुंँहबोले रिश्तो का क्या अस्तित्व है। आज है, कल नहीं रहेंगे। सगे तो अपने होते हैं, इसलिए मैं अपने सगे रिश्तों को ज्यादा महत्व देती हूंँ।
बहन तुमने तो दो साल से यह भाई बहन का रिश्ता अपनों से बढ़कर निभाया है। नूपुर कुटिल मुस्कान मुस्कुराते हुए बोली भैया..! जब आप अपनी सगी बहन को मेरे सामने महत्व नहीं देते हैं, तब आप मुझे क्या महत्व देंगे।
मैने तो केतन के लिए आप लोगों से रिश्ता बनाया था। केतन आपके कॉलेज से निकल गया, अब आपसे कैसा रिश्ता..?
दीदी हम लोगों ने आपको दिल से माना है सोनम बोली।
कितना जानती हो तुम मुझे…! जो दिल से मानने लग गई। तानिया को तुम विवाह के बाद से ही जानती हो, उसके साथ तुम्हारा रिश्ता मैं देख चुकी हूंँ। वह बड़े-बड़े उपहार नहीं दे पाती है, इसलिए उसके साथ रिश्ता मेरे से छोटा कर दिया।
शुभम मानो आसमान से नीचे गिरा, उसे नूपुर से ऐसी आशा नहीं थी।
सच ही कहा तुमने… जो सगे रिश्ते नहीं चला पाते, वह मुंह बोले रिश्ते क्या चलाएंगे?
तुरंत नूपुर के घर से दोनों पति-पत्नी निकलकर तानिया के घर गए। तानिया ने बहुत खुले दिल से दोनों का स्वागत किया। तानिया भैया-भाभी को देखकर बहुत खुश हुई। हाथ में साड़ी और मिठाई का डिब्बा तानिया को थमाते हुए शुभम बोले यह तुम्हारे रक्षाबंधन का तोहफा है।
तानिया तपाक से बोल पड़ी… नहीं भैया! आप दोनों लोग मेरे घर आए हैं, यही मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी है। भैया मुझे उपहार की जरूरत नहीं, बस हम भाई-बहन का साथ और विश्वास की डोर में सदा बंधे रहे, यही मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफा है।
तानिया मुझे माफ कर देना..! मैंने हमेशा तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है, लेकिन तुम अपना कर्तव्य समझ कर सभी तीज त्यौहारों में बराबर घर आती रही। भैया..! बेटियां अपने मायके के अपमान का घूंँट पीकर भी वह कभी अपने पति और बच्चों को नहीं बताती हैं। उनका अपना घर परिवार होने के बावजूद भी वह मायके को अपना घर समझती है। वह सिर्फ अपनों का साथ चाहती हैं।
सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
लेखिका
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
हल्दिया, पश्चिम बंगाल