साधारण रंग रूप मगर गुणवान तनिषा को उसकी जेठानियाँ और ननदे सांवली होने के कम अहमियत देते थे।
तनिषा का रंग रूप भले ही सांवला था मगर मन की एकदम साफ।जो लोग उसे कम पसंद करते फिर भी वह उनके हर काम के लिए तत्पर रहती।
कुकिंग,पेंटिंग, सिलाई, बुनाई हर कार्य में निपुण। वह अक्सर जेठानियों और ननदों को कुछ न कुछ बनाकर भेजती रहती।
इन सबके बाद भी कभी उन्होंने उसका दिल से शुक्रिया न किया। वह इन बातों को महसूस करती मगर अगले ही पल ईश्वर पर छोड़ सब भूल जाती।
कभी कभी उनकी बातों से वह दुखी भी होती फिर भी परिवार से मोह छोड़ नही पाती थी।
उसके ससुराल वालों को लगता था कि सरल मन की तनिषा से जैसा चाहे व्यवहार करो वह महसूस नही करती। एक दिन बातों बातों में रंग रूप और सुंदरता के घमंड में चूर छोटी ननद ने उसके किए को यह कह नकार दिया कि हम लोग उसके घर का पानी भी न पीना पसंद नही करते। तनिषा उसकी बात सुन सन्न रह गई।
जिस ननद के घर वो तोहफे भेजती रही, जेठानियों को कितना कुछ बनाकर भेजती उनके उसके प्रति ऐसे विचार। उस समय तो वह चुप लगा गई लेकिन उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह उनके घर कुछ नही भेजेगी।
अपनी मेहनत अपना पैसा लगा वह उन्हें तोहफे भेजती रहती और उनकी उसके प्रति ऐसी सोच। ऐसे लोगों से मुंह मोड़ना ही ठीक है।उसके बाद उसने ना सिर्फ उन्हें समान भेजना बंद किया बल्कि फोन करना भी कम कर दिया। जब एकाएक तनिषा के यहां से समान आना बंद हुआ तो उन्हें उसकी कीमत समझ आई। जेठानियों और ननदों ने उसे फिर मीठी बातों से फुसलाने की कोशिश की मगर अब उसने उनकी बातों से खुद को बचाकर अपने सगे किंतु मतलबी रिश्तों से मुंह मोड़ लिया।
पूनम भारद्वाज
मुहावरा मुंह मोड़ना