मदर्स डे – सरिता कुमार : Moral Stories in Hindi

यह दिन मुझे बहुत तड़पाता है इसलिए नहीं की मुझे मेरी ‘मां’ की याद आती बल्कि एक मासूम सा भोला भाला बच्चा याद आता है बहुत पुरानी बात है 2003 की बात। नौसेरा बार्डर पर रोज कोई न कोई हादसा होना सामान्य था।इसी वजह से कभी बात होती थी तो कभी नहीं भी हो पाती थी ।

मन में अनेकों चिंताओं ने डेरा जमा लिया था। मैं अकेली कुछ शारीरिक रूप से बीमार और तीन बच्चों की देखभाल फिर सासूमां की भी जिम्मेदारी। मन बड़ा व्यथित रहता था। उस समय छः साल का बच्चा ज़िद्द करने लगा कि “मुझे पैसे दो, मार्केट जाना है ” पहले तो टालने की कोशिश की,

फिर समझाया उसके बाद वो जमीन पर लोट लोट कर रोने लगा “प्लीज़ मुझे 15 रूपए दे दो ….!” यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया शायद पहली बार मैंने उसे जमीन से ऊपर उठाया और पटक दिया …. उसकी दादी मां ने आकर उसे पकड़ लिया और मुझे डांटने लगी। मैं उठी पर्स ली और तीनों बच्चों को लेकर चल पड़ी । आर्मी का सेपरेट क्वाटर्स कॉलोनी में कुछ नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है ।

समय देखते हुए छोटे गेट से बाहर निकली और चॉकलेट बिस्कुट के दुकान के पास जाकर खड़ी हुई और बोली जाओ जो भी लेना है ले लो । बच्चों ने आपस में कुछ बात की और आगे बढ़ने लगे , मैंने झिरका उन्हें तब प्योली ने कहा उसे मदर्स डे के लिए गिफ्ट लेना है मॉम ….! मुझे काठ मार गया , सांप सूंघ गया ….. ओह तो यह बच्चा मेरे लिए गिफ्ट लेने के वास्ते घंटों रोया , जमीन पर लोटा ,

मां की डांट  के साथ थोड़ा सा पटका भी गया …. व्यक्त नहीं कर सकती हूं कैसा दर्द हुआ मुझे । मैंने बीच सड़क पर उसे गोद में उठा लिया बहुत प्यार किया उसे पैसे दिएं लेकिन पहले अग्रवाल के दुकान से काजू की बर्फी खरीदी , लस्सी पिलाई फिर तीनों बच्चों ने मेरे लिए गिफ्ट खरीदा 22 वर्ष हो गए हैं इस घटना के लेकिन आज भी याद कर के आंखें डबडबा जाती हैं । वो बच्चा अब बड़ा हो गया है ।

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उसने मोबाइल दिया , टैबलेट दिया , सिल्क की साड़ियां दी लाखों रुपए का सामान दे चुका लेकिन मेरे लिए सबसे कीमती वो छोटा सा काला रंग का एक फोटो फ्रेम है जिसमें एक मां और एक बेटा है और हैप्पी मदर्स डे लिखा हुआ है । साथ ही दो बेटियों का दिया हुआ वो उपहार भी सुरक्षित रखा हुआ है ।

उन छोटे छोटे बच्चों से अपने मन की पीड़ा और चिंता नहीं बता सकती थी कि उनके पापा हर पल मौत का सामना कर रहें हैं,  इसलिए मेरा प्राण सुखा हुआ है । वर्तमान में सभी चिंताओं से मुक्त हूं । बच्चें सब बड़े हो गए हैं उन्हें मिल गया है उनके हिस्से का आसमान जहां स्वछंद होकर मन चाही उड़ान भरने लगे हैं और मुझे मिला है

सम्पूर्णानंद । दुश्मन देशों की सीमाओं पर अपनी श्रेष्ठ सेवा देकर लौटें हैं मेरे‌ हमसफ़र , मेरे हमनवां  , मेरे रहगुजर , मेरे जानें जहां , मेरे जानम । और सिर्फ सुरक्षित सकुशल ही नहीं लौटें हैं बल्कि विशेष सेवा मेडल और अतिरिक्त सम्मान सहित आनरेरी लेफ्टिनेंट का रैंक लेकर ।

आज की तारीख में मैं दुनिया की सबसे खुशनसीब इंसान हूं जिसे अपनी एक जिंदगी में दोनों जहां की खुशियां हासिल हुई हैं । मेरी सभी पारिवारिक , धार्मिक , नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह भली-भांति पूरा हो चुका है । बेटी दामाद बेटा बहू नाति नातिन सभी से घर आबाद है और जिंदगी खुशहाल है ।  

 

स्वरचित ( संस्मरण ) 

लिटरेरी जनरल सरिता कुमार , फरीदाबाद

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