डॉ सुषमा हड़बड़ा कर उठी , देखा कोई जोर जोर से दरवाजा खटखटा रहा है। मन नही कर रहा था, फिर भी उन्हें उठना पड़ा। खोला तो नौकर ने बताया सुबह ही पटियाला से पापा का फ़ोन था, बुलाया है। समझ गए और दोनों डॉ पति पत्नी गाड़ी लेकर निकल पड़े ।
सुषमा की माँ सत्तर वर्ष की थी, स्वास्थ्य ठीक ही था पर दिमागी रूप से बीमार हो गयी थी, अपने कपड़ों का भी ध्यान नही रख पाती थी। मैने उनको पहले भी कभी खुलकर हंसते नही देखा था, लगा था, सारे संसार से खुंदक खाये बैठी हैं। माँ की जब शादी हुई थी तब ससुराल में पापाजी , दादाजी और एक पुराना नौकर ही था।
पूरे घर की राजरानी वही थी, पर मैने उन्हें कभी भी दादाजी के कमरे में जाते नही देखा था, सारी व्यवस्था करके नौकर को ही भेजती थी। कई बार नौकरानी को बोलते सुना था, भाभी, “आप इतना सबकुछ कैसे सह लेती हैं?”
गाड़ी घर पहुँच चुकी थी, सुषमा भी भूत से वर्तमानकाल में पहुँच चुकी थी। देखा माँ, नाम मात्र के कपड़ो में बाहर दौड़ रही हैं, जाकर जल्दी से पकड़ कर गले लगाया।
अब माँ जोर जोर से रोने लगी, “मुझे ले चलो, यहां मैं नही रहूंगी। किसी तरह समझा बुझा कर वो अंदर लायी, तो अपने कमरे में जाने को तैयार ही न हो, नही वहां कोई बहुरूपिया बैठा है, मैं नही जाऊंगी।”
जब सुषमा कमरे में पहुँची तो देखा बिस्तर पर स्वर्गवासी दादाजी बैठे है, एक पल को वो भी सकपका गयी। ध्यान से देखा तो पापा थे, जिन्होंने बिल्कुल दादाजी जैसे दाढ़ी बढ़ा ली थी, वो बिल्कुल दादाजी नजर आ रहे थे। नौकर ने बताया इसी कारण माँ हमेशा एक डंडा रखती है, नींद में भी चौकन्नी रहती है, बिस्तर पर नही सोती, सोफे पर सोती हैं।
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फिर उसके पापा ने बताया, “कल रात मैं इनके सिर के नीचे तकिया लगा रहा था, तभी इन्होंने चंडी का रूप धारण कर लिया, कई गालियां दी, फिर बोली, “तू फिर से आ गया, अब मुझे अकेली देख पकड़ना चाहता है, मैं विभा की तरह पकड़ में नही आने वाली ।” तभी से वो घर का दरवाजा खोल कर बाहर भाग गई थी।
अब सुषमा माथा पकड़ कर बैठ गयी, धीरे धीरे उसको सब माजरा समझ आ गया। नारी कभी भी सुरक्षित नही थी, अब तो मीडिया के कारण कुछ खबरे बाहर आने लगी है, पहले तो लोकलाज के डर से स्त्रियां जिंदगी की अंतिम सांस तक ऐसी बाते छुपा जाती थी। विभा उंसकी छोटी सी प्यारी सी मौसी थी, जो माँ की डिलीवरी के दिनों में घर आयी थी। मेरे जन्म के दस दिन बाद ही मेरी मौसी के कुएं की जगत से फिसल कर गिरने की बात सब जगह फैल गयी। मेरी माँ का मृदुल और सौम्य व्यवहार कठोरता में तब्दील हो गया। उसी प्रकरण के कारण माँ सुषमा को भी बहुत बंधनो में रखती थी।
उसने अपने पापा से कहा, “आपने दादाजी का हुलिया क्यों बनाया, शीशा देखिए, हूबहू आप दादाजी लग रहे।”
उसके पापा ने दाढ़ी कटवा ली, फिर भी माँ ने उन्हें स्वीकार नही किया। सुषमा माँ, पापा अपने घर ले जाने की तैयारी कर रहे थे, पर वो रात मां ऐसे सोई कि दूसरे दिन का सूरज नही देख पायी। सुबह दाह संस्कार के पहले सुषमा ने दादा जी की फूल चढ़ी तस्वीर को कचरे के हवाले कर दिया, यही उंसकी माँ को सच्ची श्रद्धांजलि थी।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बेंगलुरु
भाभी “आप इतना सब कैसे सह लेती हो?”