मोहताज वाली जिंदगी – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

मम्मी, निवेदिता दीदी आई है! चाहत में अपनी सास रमा जी से कहा, 

रमा जी:  क्या? निवेदिता? वह लोग आ गए मनाली घूम कर? चलो पूछती हूं, यह कहते हुए रमा जी दौड़ती हुई अपने कमरे से बाहर आई, फिर कहा अरे निवेदिता तुम लोग कब आए मनाली से? 

निवेदिता: कल ही आई मम्मी और देखो आपके लिए क्या-क्या लाई हूं? वह क्या है ना? ऋषि कहीं भी जाए सबसे पहले उसे आपका ही ख्याल आता है, आपके लिए यह शॉल और यह स्वेटर लेकर आए हैं, वह तो खुद ही आते, पर उनके ऑफिस का काम तो आपको पता ही है ना? 

रमा जी:  अरे वाह! कितनी अच्छी शॉल और स्वेटर है, सच में ऋषि मुझे किसी भी चीज की कमी होने नहीं देता। 

निवेदिता:  आपको तो हमने कितना कहा कि चलिए हमारे साथ मनाली, पर आप नहीं माने, वरना वहां तो और भी शॉपिंग करवाता वह आपको। 

रमा जी:  नहीं बेटा, मुझसे तो यही की ठंड बर्दाश्त नहीं हो रही, वहां तो मेरी कुल्फी ही जम जाती और तुम्हें तो पता ही है, ठंड में मेरे घुटनों का दर्द कितना बढ़ जाता है, अभी भी काफी दर्द है।

निवेदिता: क्या? दर्द काफी है? आपको जो इन्होंने मालिश की तेल लाकर दिया था उससे मालिश नहीं करती? 

रमा जी: बेटा! अब इन बुढ़ी हड्डियों में इतनी जान कहां है कि जोर लगाकर मालिश कर पांऊ, जितना बनता है करती हूं 

रमा जी की यह बात सुनकर निवेदिता तुरंत चाहत की ओर देखकर कहती है, क्यों चाहत? पूरा दिन घर पर मम्मी के साथ ही रहती हो, उनकी तकलीफ दिखती नहीं तुम्हें? मालिश तुम कर दोगी तो कोई क्या ज्यादा मेहनत हो जाएगी? 

चाहत:  पर दीदी मम्मी ने कभी मुझसे कहा ही नहीं?

 निवेदिता:  वह क्या कहेंगी तुमसे? मोबाइल से तुम्हारा ध्यान हटे तब ना? कोई तुमसे कुछ कहेगा? 

चाहत:  दीदी! आप यहां एक या दो घंटे के लिए आती हो, पूरा घर मैं ही संभालती हूं, आपको कैसे पता कि मैं बस फोन चलाती हूं? घर के काम क्या खुद से हो जाते हैं?

 निवेदिता:  चाहत, मैं कुछ बोलती नहीं इसका मतलब यह नहीं कि मैं कुछ जानती नहीं, सब पता है मुझे की किस तरह तुम मम्मी पर अत्याचार करती हो और उन्हें दाने-दाने को मोहताज रखती हो और भी बहुत कुछ कहना चाह रही थी निवेदिता. पर रमा जी ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक दिया। 

चाहत हैरान होकर बस दोनों को देखे जा रही थी और सोच रही थी कि दीदी यह सब क्या बोल रही है? मैंने मम्मी को खाना नहीं दिया? मम्मी यह सब कहती है मेरे बारे में और मुझसे दीदी और जेठ जी की बुराइयां करती रहती है। कहती थी कि घर की जिम्मेदारियो से बचने के लिए, उन्होंने अलग रहना शुरू किया है। और दीदी को यह जताती है कि यही सब कुछ करते हैं उनके लिए, और हम बस अत्याचार करते हैं, चाहत ने आगे कुछ नहीं बोला पर वह इस बात को भूली नहीं, वह इसका सही वक्त पर हिसाब करेगी, यही सोचकर वहां से चली गई। 

 

अगले दिन रमा जी चाहत को आवाज लगा रही थी, तभी उसका पति रौनक आकर कहता है, मम्मी चाहत को अचानक अपने मायके जाना पड़ा। उसकी मम्मी की तबीयत काफी खराब है आप सो रही थी इसलिए आपको जगाया नहीं। आप जल्दी से अपना सामान पैक कर लीजिए। ऑफिस जाते वक्त मैं आपको भैया के घर ड्रॉप कर दूंगा। 

रमा जी:  ऋषि के घर? पर क्यों?

 रौनक:  मम्मी, मेरे ऑफिस से आने का कोई समय नहीं होता और चाहत की मम्मी की तबीयत पता नहीं कब तक ठीक हो और उसे आने में कितना वक्त लगे? ऐसे में आप अकेली यहां कैसे रहेंगी? मैंने भैया भाभी से बात कर ली है, आप चलिए 

 

इसके बाद रमा जी चली जाती है निवेदिता और ऋषि के पास रहने, निवेदिता शुरू-शुरू तो बड़े शौक से रमा जी का काम करती रहती थी। फिर धीरे-धीरे उसे भी चिढ़ मचने लगी, कभी नहाने को गर्म पानी दो तो, कभी पीने को, कभी घुटनों की मालिश कर दो तो कभी पूजा करवाने मंदिर ले चलो। निवेदिता मन ही मन सोचती शायद चाहत भी उनसे परेशान होकर उनके साथ वैसा व्यवहार करती होगी। चाहत क्या अत्याचार करेगी इन पर, यह तो खुद अत्याचारी है? एक दिन निवेदिता दोपहर का सारा काम खत्म कर बस लेटी ही थी कि तभी रमा जी ने कहा, निवेदिता जरा गर्म पानी करके ले आओ, चूरण खाना है, गैस बदहज़मी सी लग रही है। 

इस बार निवेदिता चिढ़ जाती है और कहती है, मम्मी अभी-अभी तो लेटा था और आपको कितनी बार मना किया है कि पकौड़े मत खाइए, पर आपको तो अपनी ही मन की करनी होती है हर बार, रुकिए लाती हूं। यह कहकर निवेदिता रसोई में चली गई, जब वह वापस आई तो वह दरवाजे से ही सुनती है कि, रमा जी फोन पर चाहत से कह रही थी, तुम कब आओगी चाहत? एक मम्मी की ही सेवा करोगी इस मम्मी को भूल गई क्या? तुम्हारे बिना मेरा भी जीना मुहाल हो गया है, हर एक चीज़ का मोहताज बना दिया है निवेदिता ने, कुछ भी मांगने से डर लगता है, हर बात पर चिढ़ जाती है, मेरा तो दम ही घुटता है यहां, जल्दी वापस आ जाओ बेटा। निवेदिता यह सब सुनकर हैरान हो जाती है, उसने सोचा इतना सब कुछ करने के बाद भी मम्मी मेरे बारे में ऐसा कह रही है? और यही सारी बातें तो मम्मी कभी चाहत के बारे में बोलती थी, अब समझ आया चाहत उस दिन इतना क्यों भड़क गई थी? पर मम्मी अब आपको सबक सिखाना जरूरी हो गया है। यह कहकर निवेदिता कमरे के अंदर आई और रमा जी से कहा, मम्मी अपना सामान बांध लीजिए, कल हम एक नई जगह पर जाने वाले हैं, 

रमा जी:  पर कहां?

 निवेदिता:  आप बस चलिए, देखना कितना मजा आएगा? अगले दिन निवेदिता, ऋषि रमा जी को लेकर एक वृद्धाश्रम में जाते हैं, वहां पहुंचकर रमा जी के हाथ पैर ठंडे होने लगे, उन्होंने हकलाकर कहा, तुम लोग मुझे यहां क्यों लेकर आए हो? समझ आया तुम लोगो पर मैं बोझ बन गई हूं ना? बुलाओ मेरे रौनक को, उसे तो आज तक मैं कभी बोझ नहीं लगी, उसी के पास रहूंगी मैं अबसे, तब तक पीछे से रौनक और चाहत भी आ जाते हैं और रौनक कहता है, मम्मी आपको चाहत परेशान करती है और भाभी भी परेशान करती है ना? तो सोचा अब से आप यही रहेंगी, ताकि आपको यह लोग कभी परेशान ना कर सके, हम दोनों भाई हर दिन आया करेंगे आपसे मिलने, ठीक है ना? 

रमा जी:  क्या? लानत है ऐसी औलाद पर! जो अपनी बुढ़ी मां को यूं लावारिस की तरह वृद्धाश्रम में छोड़ रहे हैं,

 चाहत:  मम्मी! अपने बच्चों पर लानत करने से पहले ज़रा अपनी करतूतो को भी एक बार याद नहीं करेंगी? मम्मी, यह आपको भी पता है आपके बेटे ऐसे नहीं है, पर आप मां होकर जो काम करती आई है क्या वह सही है? जिस उम्र में आपको सबको प्रेम से रहना मेल मिलाव रखना सीखाना चाहिए, उस उम्र में आप दो भाइयों के बीच फूट डाल रही है, आपने कभी इसका परिणाम सोचा है?

निवेदिता:  मम्मी, खाने पीने की अगर कमी हो तो फिर भी इंसान संभाल लेता है। पर जो एक ही घर में रहकर आपसी मनमुटाव रखता है, तो वह प्यार के लिए मोहताज हो जाता है और वह घुटने लगता है, जिसे संभाला नहीं जा सकता। अब आपको तय करना है, प्यार और शांति से रहना है या हमसे दूर रहना है?

चाहत:  और पता है मम्मी? मैं मायके भी जानबूझकर गई थी, मेरी मम्मी की तबीयत का तो बस बहाना था। इरादा तो मेरा दीदी और आपको मेरा काम बताना था। क्योंकि आपको लगता था दीदी आपका ख्याल मुझसे ज्यादा रखेगी और दीदी को लगता था मैं आप पर अत्याचार करती हूं, चलिए सबको सही चीज़ आखिर दिख ही गई, अब आपका फैसला क्या है मम्मी जी? 

रौनक:  अब बस भी करो, बहुत हो गया। मम्मी को अपनी गलती समझ आ गई है, अब ज्यादा उनको डराओ मत। चलिए अब घर, आप चाहे कुछ भी करो मम्मी, आपकी जगह वृद्धाश्रम में कभी हो ही नहीं सकती।

 ऋषि:  हां मम्मी, हम बेटों के रहते आपको वृद्धाश्रम में रहना पड़ेगा? आप यह कभी मत सोचना 

सभी घर आ जाते हैं जहां सभी हंसी मजाक कर रहे थे वहीं पर राम जी बिल्कुल खामोश थी क्योंकि आज वह अपना वजूद देखकर आई थी वह कुछ कहती थी तो किस मुंह से जहां उन्हें इस उम्र में अपने बच्चों को सही रास्ता दिखाना चाहिए था वही उनके बच्चों ने उन्हें सही का पाठ पढ़ाया 

 

दोस्तों, आज जब हम वृद्धाश्रम में आने वाले बुजुर्गों को देखते हैं, तो हम तुरंत ही उनके बच्चों को कोसने लगते हैं, पर हर वक्त बच्चों की भी गलती नहीं होती, हां मानती हूं माता-पिता कुछ भी करें, पर उन्हें वृद्धाश्रम भेजने का अधिकार किसी का नहीं होता, पर कभी-कभी बुजुर्ग यह नहीं समझते की समय के साथ-साथ बदलाव जरूरी है, जो नहीं कर पा रहे हैं बदलाव, तो समय की मांग के हिसाब से चलने के लिए, उन्हें विवश होना ही पड़ेगा।

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#मोहताज

VM

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