आज मैं मोहताज नाम की बेड़ियों से मुक्त हो गई हूँ , आज मैं किसी की मोहताज नहीं रही , न ससुराल की मोहताज और न मायके की। आज से मैं आत्मनिर्भर हो रही हूँ। अब कोई मुझे मोहताजगी का ताना नहीं मार पायेगा।
यही सब सोच कर मन ही मन ख़ुशी और उत्साह से भरी जा रही थी सोनालिका।
आज सोनालिका के टिफ़िन सर्विस के बिज़नेस का पहला दिन शुरू होने जा रहा था और पहले ही दिन उसके पास कई आर्डर आ गए थे , क्योंकि सोनालिका के साथ खाना बनाने का मुक़ाबला कोई नहीं कर सकता था। साक्षात अन्नपूर्णा थी वो। उसके हाथों से बनाये खाने में स्वाद का जादू था और जब अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए सोनालिका ने अपने बनाये व्यंजनों के कुछ नमूने पीजी में रहकर बाहर का खाना खाने वाले लड़के लड़कियों और कुछ दफ्तरों में काम करने वाले और बाहर की कैंटीन से लंच आर्डर करने वालों को टेस्ट कराये तो उसके बनाये व्यंजनों के स्वाद से सब उसे ऑर्डर देने के लिए उतावले हो गए।
इसलिए सोनालिका को पहले ही दिन काफ़ी अच्छे आर्डर मिल गये थे।
एक तरफ़ सोनालिका अपने टिफ़िन बिज़नेस को लेकर सपने संजो रही थी और दूसरी तरफ आज के सभी ऑर्डर पूरे करने के लिए रसोई में भाग भाग कर खाना बनाने में लगी थी। अभी सोनालिका के बिज़नेस का पहला ही दिन था इसलिए उसने अभी कोई हेल्पर भी नहीं रखा था। खाना बनाकर देकर भी आना था उसने।
लेकिन वो ख़ुश थी कि उसका ख़ुद का काम शुरू हो गया है और उसे ख़ुद पर विश्वास था कि वो अपने इस टिफ़िन सर्विस को अपनी मेहनत से एक दिन इतना बढ़ा लेगी कि हेल्पर भी रख लेगी।
सभी आर्डर पुरे करने और टाइम पर खाना पहुंचाने के बाद रसोई घर को अच्छे से साफ़ करके अपने लिए एक कप चाय बना कर अपनी आराम कुर्सी पर आ बैठी सोनालिका चाय के घूंट भरते भरते खो गई पुरानी यादों में।
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अभी सिर्फ़ 18 साल ही पुरे किये थे सोनालिका ने कि जवान लड़की कह कह कर घरवालों ने उसके हाथ पीले कर दिए और छीन लिया उससे उसका अल्हड़पन। विकास की दुल्हन बनकर मायके से ससुराल आ गई सोनालिका। विकास की उम्र भी कुछ ख़ास न थी , शादी के वक़्त उसकी उम्र रही होगी यही कोई 20 या 21 .. दोनों में ही अल्हड़पन की निशानियां थी।
अभी शादी को साल भी न बीता था कि वक़्त से पहले ही विकास काल के गाल में समा गया , अपनी दुकान से लौटते वक़्त विकास का स्कूटर ट्रक से टकरा गया और विकास ने वही दम तोड़ दिया। सभी को विकास की लाश को देखकर रोने से ज़्यादा सोनालिका को मनहूस कह कहकर रुलाने में मज़ा आ रहा था शायद। सारे नाते रिश्तेदार ससुराल वाले सोनालिका को मनहूस कह कर ऐसे ताने मार रहे थे जैसे विकास को वो ट्रक से टक्कर उसी ने मारी हो या शादी के पहले साल ही विधवा होकर उसे कोई उपाधि मिली हो।
उसकी जब शादी हुई तब वो अल्हड थी , तब उसे शादी का मतलब नहीं पता था और अब जब वो विधवा हुई तो उसे विधवा का मतलब नहीं पता लेकिन उसे इतना समझ आ गया था कि अब उसकी ज़िंदगी ससुराल पर बोझ बन गई है।
आये दिन ससुराल वाले उसे ताना मारते। सास एक रोटी और सुखी सब्ज़ी भी सुना सुना के देती।
“मनहूस हमारे बेटे को खा गई , और अब हम पर बोझ गई , रोटियों के लिए हमारी मोहताज हो गयी। हमसे न खिलाया जायेगा ज़िंदगी भर इस मोहताज को, पति के सहारे पत्नी चलती है ज़िन्दगी की पटरी पर , अब पति ही नहीं रहा तो हो गई है मोहताज , हमसे इस मोहताज का बोझ न उठाया जायेगा , कल जाकर इसे इसके माँ बाप के हवाले कर आओ ” ससुर से बात करते हुए सास के मुंह से ये “मोहताज” शब्द आज पहली बार सोनालिका ने सुना।
अगले दिन सास ससुर दोनों सोनालिका को लेकर उसके मायके आ गए।
” बहन जी, सोनालिका अब आपके घर की बहु है, आप ही इसे घर से निकाल देंगे तो ये कहाँ जाएगी, शादी के बाद ससुराल ही लड़की का घर होता है , मायका नहीं। हमारे आगे अभी दो बेटियां और एक बेटा भी है। कल को उनकी शादी में दिक्कत आ सकती है , और अगर शादी हो भी गई तो बहने इसकी अपने घर की हो जाएँगी और भाई के साथ भाभी आ जाएगी। हम दोनों का क्या है , एक न एक दिन दुनिया से चले जाना है , तो अगर सोनालिका यहां रहेगी तो भाई भाभी की मोहताज हो कर रह जाएगी।”
मोहताज शब्द दूसरी बार सुन रही थी सोनालिका वो भी अपनी माँ के मुंह से।
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सोनालिका की माँ बाबा ने लाख कोशिश की लेकिन सोनालिका के सास ससुर उसे साथ लेकर न गए।
थक हार कर उन्हें सोनालिका को अपने घर रखना पड़ा।
सोनालिका हैरान थी कि जिस घर में उसने जनम लिया आज वो ही घर उसे अपना मोहताज बता रहा है।
दिन भर सोनालिका घर के काम करते थक जाती लेकिन घर में किसी को उसका काम न दिखता। अगर कुछ दिखता तो सिर्फ़ इतना कि वो इस घर पर बोझ बन गई है.
“दीदी की शादी करा दो माँ, ज़िंदगी भर मैं ये बोझ नहीं उठा सकता। आज पापा कमा रहे हैं तो आप दीदी को खिला रहे हैं, कल मई कमाने लगूंगा , मेरी शादी होगी तो मैं नहीं खिला पाउँगा। मेरे ऊपर भी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ेंगी तो मैं एक और ज़िम्मेदारी क्यों उठाऊंगा।”
अपने से दो साल छोटे भाई से ये शब्द सुनकर सोनालिका ने ठान लिया कि वो अब इस घर में नहीं रहेगी , वो ये मोहताज का तमगा अपने ऊपर से उठा फेंकेगी और आत्म निर्भर बनेगी।
शादी जल्दी होने की वजह से सोनालिका ज़्यादा पढ़ लिख तो नहीं पाई लेकिन उसे बहुत काम उम्र में ही बहुत ही अच्छा खाना बनाना सीख लिया था। सोनालिका ने सोच लिया कि वो अपने इस हुनर से ही अपनी ज़िंदगी को एक नया मोड़ देगी।
सोनालिका ने घर में किसी को बिना बताये अपनी एक सहेली की मदद से एक अलग घर किराये पर लिया , सहेली से कुछ रुपए उधार लिए और मायका छोड़ कर अपने इस घर में आ गई।
मायके में बस इतना कहा कि वो किसी पर न तो बोझ बनेगी और न ही किसी की मोहताज बनेगी।
सीमा मैं जल्दी ही तुम्हारे सारे पैसे लौटा दूंगी , सोनालिका ने अपनी सहेली सीमा से कहा तो सीमा ने उसे हिम्मत बांधते हुए कहा कि “सोना, मुझे पता है तू बहुत मुश्किल से गुज़र रही है और मुझे तुझ पर विश्वास भी है , तूने भी कई बार मेरी मदद की है , तू पहले अपने काम को बढ़ा , पैसे की कोई जल्दी नहीं है , “
सीमा इस वक़्त सोनालिका के लिए डूबते को तिनके का सहारा बनकर आई थी।
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सीमा की मदद और अपने पक्के इरादों से आज सोनालिका ने अपना टिफ़िन सर्विस शुरू कर दिया है।
चाय का प्याला ख़त्म होते ही सोनालिका लौट आई अपने वर्तमान में और बीत चुकी कड़वी यादों को झटकते हुए शाम के आर्डर के लिए मेन्यू सेट करने में व्यस्त कर लिया ख़ुद को।
आज इस बात को 20 साल गुज़र चुके हैं,सीमा के सारे पैसे वो वक़्त पर चुका चुकी है. सोनालिका ने अपने टिफ़िन सर्विस को बढ़ा कर एक रेस्टॉरेंट में तब्दील कर दिया है, कल अकेले दम पर Business शुरू करने वाली सोनालिका ने कई नौकर रख लिए हैं और उसने दोबारा शादी का निर्णय न करके एक बच्ची को गोद ले लिया था , सोनालिका के माँ बाप जब तक ज़िंदा थे वो कभी कभार उससे मिलने आ जाया करते थे , एक दो बार भाई भाभी और बहनें भी मिलने आईं लेकिन सोनालिका को मोहताज कहने वाले उसके भाई बहन उसे आत्मनिर्भर देखकर ज़्यादा आ नहीं पाए।
सोनालिका को किसी की फ़िक्र भी नहीं सिवाय अपनी गोद ली हुई बेटी दुआ के। सोनालिका शुरू से आज तक दुआ से यही कहती आई है कि तू मेरी बेटी है। हालात चाहे कभी भी कुछ भी हो , तू न कभी किसी पर बोझ बनेगी न ही कोई तुझे कभी अपना मोहताज कहेगा।
दुआ को कॉलेज छोड़कर सोनालिका भी निकल पड़ी अपने रेस्टॉरेंट। “स्वाभिमान” की तरफ़। क्योंकि सोनालिका स्वाभिमानी बन चुकी है और अब वो ज़िंदगी जीने के लिए किसी की मोहताज नहीं।
लेखिका : शनाया अहम