” बहुत हो गया | आज तुम्हें फैसला करना ही होगा | इस घर में या तो मैं रहूंगी या तुम्हारी माँ | मैं अब इनके साथ नहीं रह सकती | तुम्हें इन्हें गाँव में छोडकर आना ही पडेगा, नहीं तो मैं अपने दोनों बेटे के साथ इस घर से चली जाऊंगी | ” शोभा बेहद गुस्से में बोल रही थी |
” पर मैं अपनी माँ को इस उम्र में कैसे छोड सकता हूँ ? मैं इनकी इकलौती संतान हूँ | ” दीपक ने कहा |
” ये सब मैं नहीं जानती | मैं इन्हें अपने साथ नहीं रख सकती, बस मै इतना जानती हूँ | ” शोभा अभी भी गुस्से में थी |
” पर अब तो पिताजी भी नहीं रहे, फिर यह गाँव में अकेले कैसे रहेगी? ” दीपक बोला |
” तो फिर वृद्धाश्रम भेज दो, जहाँ रहे, जैसे रहे, पर मेरे साथ नहीं रहे, बस | ” शोभा बोली |
” पर तुम्हें परेशानी क्या है? तुम तो इसका कोई काम नहीं करती, उल्टे ये ही तुम्हारी मदद करती रहती है? इसे साथ रखने में तो तुम्हारा ही फायदा है |”
” फायदा, भला क्या फायदा है इन्हें रखने में? न इनके पास पैसे है ं, न हीं इन्हें पेंशन मिलता है | पैसे पैसे को तो मोहताज हैं | अपनी हर जरूरत के लिए हमपर आश्रित है | खाना, कपडा, दवा सारा कुछ तो हम करते हैं | उपर से इनके नखरे अलग, कभी मंदिर में दान देने के लिए, कभी चंदा,कभी किसीकी मदद,
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कभी किसी सहेली के नाती- पोते का जन्मदिन | पडोस वाली लता ने अपने बेटे के तबियत खराब होने का कल दुखडा क्या सुनाया न जाने कहाँ से निकाल कर पैसे दे दिये | घर का काम करने के लिए गृह सहायिका है,अपना काम तो ये कर नहीं पाती हैं, घर का काम क्या करेंगी? पैर का दर्द, घुटने का दर्द तो है ही, उपर से कुछ न कुछ तबियत खराब लगा ही रहता है | हर बात पर कुछ न कुछ बोलती रहती है | मैं अब इनके नखरे नहीं सह सकती | ” शोभा बोले जा रही थी |
“बैठो |” दीपक शोभा को पलंग पर बैठाकर खुद उसके बगल में बैठते हुए बोला – ” सुनो, मेरी बात शांति से सुनो | मेरे पिताजी एक कंपनी में साधारण पद पर काम करते थे | बहुत ही साधारण सा घर था हमारा , पर मेरे लालन- पालन, शिक्षा ,संस्कार में उन्होंने कोई कमी नहीं की | मेरी माँ ने मेरे पिता से कभी कोई शिकायत,
कोई फरमाइश नहीं की | हरकदम पर , हर हाल में मेरे पिता का साथ दिया | इसी कारण मैं इतने अच्छे से पढ़ पाया | अपनी इंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और आज इतनी अच्छी कंपनी में इतने अच्छे पदपर कार्यरत हूँ | तुमने भी तो इसी कारण मुझे पसंद किया और मुझसे शादी की | आज मैं जो भी हूँ, जो कुछ भी पाया हूँ, सब अपने माता- पिता के ही कारण |अगर उन्होंने इतने त्याग, तपस्या, समझदारी से मेरी परवरिश न की होती, तो क्या मैं इतना कुछ कर पाता?
” इसमें कौन सी बड़ी बात है, इतना तो हर माता- पिता अपनी संतान के लिए करते हैं | मेरे माता- पिता ने भी तो मुझे पढाया | ” शोभा बोली |
” हाँ किया है और सही है सब माता- पिता अपनी संतान के लिए करते हैं | पर सबके घर में पैसों की कमी नहीं होती, जो मेरे घर में थी | मेरे माता-पिता ने अपनी हर इच्छा, आवश्यकता, शौक को मेरे लिए कुर्बान किया है | ” दीपक ने उसका हाथ पकडते हुए कहा -” तुम कह रही हो ना कि इसके पास पैसे नहीं है, पेंशन नहीं है, ये हमारी मोहताज हैं | तो बताओ, जब मैंने जन्म लिया तो क्या मेरे पास पैसे थे, पेंशन था | मैं भी तो नौकरी लगने तक अपने पालन- पोषण, पढाई, हर आवश्यकता, इच्छा के लिए अपने माता- पिता का मोहताज था |
इन्होंने तो कभी इसका जिक्र भी नहीं किया | जब हमारी शादी हुई, बच्चे हुए तो इन्होंने ही देखभाल की, तभी हम दोनों अपनी नौकरी भलीभाँति कर पाये और ये सब सुख सुविधा जुटा पाये | तब क्या तुम बच्चों के पालन- पोषण, देखभाल के लिए इनकी मोहताज नहीं थी | सिर्फ नौकरों और आया के भरोसे क्या हमारे बच्चे इतनी अच्छी तरह पलते और क्या हम इतने निश्चिन्त होकर नौकरी कर पाते, इतनी सफलता पाते | आज जब बच्चे थोडे बडे हो गये हैं तो ये तुम्हें भार लग रही है, कल तक तो तुम इसके सहयोग की मोहताज थी |आज जब पिताजी नहीं रहे, इसकी उम्र ज्यादा हो गई तो यह तुम्हें अच्छी नहीं लग रही, मोहताज लग रही है | “
” हां, ये बात तो है | ” शोभा का गुस्सा कुछ कम हो गया था |
” तुम कहती हो कि ये हमारी मोहताज हैं, तो मैं कहता हूँ कि हम आज भी मोहताज हैं , इसके प्यार के, इसके आशीर्वाद के, इसकी दुआयों के | तुम खुद ही सोचकर बताओ, इस संसार में सच्चे ह्रदय से हमारा भला चाहने वाला, हमारे लिए ईश्वर से प्रार्थना करने वाला, हमारी खुशियों में ह्रदय से खुश होनेवाला इससे बढकर कौन है?
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यह पूजा करती है,दान करती है,किसी की मदद करती है,चंदा देती है या किसी को कुछ उपहार देती है तो हमारे भले के लिए हीं ना, हमारे सम्मान के लिए हीं ना | हमारे पास इतने तो है हीं | लता को देने के लिए पैसे मुझसे ही लिए थे | मैं तुम्हें बताना भूल गया था |” दीपक गंभीर स्वर में बोला – बदले में हमसे क्या चाहती है, थोड़ा सा प्यार, ध्यान और सम्मान हीं ना ? हम भी तो अपने बच्चों का पालन कर रहे हैं तो क्या हम अपने बुढापे में उनसे ये नहीं चाहेंगे? आज जहाँ माँ है, कल वहाँ हम होंगे |”
शोभा का गुस्सा थोड़ा कम तो हुआ था पर अभी भी असमंजस में थी |
” मम्मी, पापा, दादी अपने कपड़े बैग में रख रही है | कहीं जा रही हैं क्या? ” शोभा के दोनों बच्चे बारह वर्षिय शौर्य और दस वर्षिय शुभ दौडते हुए आये -” मम्मी, दादी को कहीं मत भेजना | तुम तो आफिस में रहती हो | तुम्हारे पास तो हमारे लिए समय हीं नहीं होता | स्कूल से आने के बाद दादी ही हमारे पास रहती है | खाना गर्म करके देती है, हमारी मनपसंद चीजें बनवाती है, हमारा बहुत ध्यान रखती है | हमारे सारे सामानों को संभालती है | हमसे बहुत प्यार करती है | हमारी कोई भी परेशानी हो तो हमारी बात सुनती है,अच्छे से समझाती है |”
” देख लो, आज भी तुम अपने बच्चों की खुशी के लिए इसकी मोहताज हो | अब बताओ मोहताज कौन किसका हैं ? दरअसल परिवार में कोई किसीका मोहताज नहीं होता | परिवार की खुशी परिवार के सदस्यों के आपसी प्यार, सामंजस्य और सम्मान पर निर्भर करता है | “दीपक बेहद शांत स्वर में बोला |
शोभा को बात कुछ – कुछ समझ में आ रही थी | वह थोड़ी देर चुप रहकर बोली – ” तुम ठीक कह रहे हो | मुझसे गलती हो गई| मुझे माफ कर दो | ” शोभा धीरे से बोली |
” माफ़ी तो माँ से मांगो और मुझसे वादा करो कि आगे कभी ऐसे विचार मन में नहीं लाओगी | ” दीपक उसका हाथ पकडकर माँ के पास ले गया |
” माँ, मुझे माफ कर दीजिए | आप सदा हमारे साथ रहेंगी | आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है | ” शोभा माँ का पांव पकडते हुए बोली |
” मेरी प्यारी बहू ” माँ ने शोभा को उठाकर गले से लगा लिया |
” हूर्रे, दादी हमारे साथ हीं रहेगी | ” शौर्य और शुभ ताली बजाकर हंसने लगे | शोभा, दीपक और माँ भी हंस पडे |
# मोहताज
स्वलिखित और अप्रकाशित
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |