गाँव के चौराहे पर हलचल मची थी। वहाँ एक नया मंच बनाया गया था, जिस पर बड़ा सा बैनर लगा था: “मोहताज कौन?”
लोग इस अजीब से सवाल पर चर्चा कर रहे थे। सबको उत्सुकता थी कि आखिर यह सवाल क्यों पूछा जा रहा है।
संध्या समय जब सूरज ढलने को था, तब एक युवक नवीन मंच पर आया। वह पढ़ा-लिखा था और गाँव के युवाओं के लिए आदर्श था। उसने माइक उठाया और सीधा सवाल किया:
“मोहताज का मतलब क्या होता है?”
भीड़ में खुसर-पुसर शुरू हो गई।
किसी ने कहा, “जिसके पास कुछ न हो।”
दूसरे ने कहा, “जो दूसरों के सहारे जिंदा रहे।”
तीसरे ने जोड़ा, “जिसका जीवन दूसरों की दया पर निर्भर हो।”
नवीन मुस्कुराया। उसने माइक संभालते हुए कहा, “आप सबने सही कहा, लेकिन क्या वाकई सिर्फ गरीबी या दूसरों पर निर्भरता ही मोहताजी है? चलिए, मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
बच्चों को अकेले रहने की आदत ना डालें – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi
नवीन का ऐसा कहते ही वहां उपस्थित सभी लोग कौतुहल से नवीन की ओर देख रहे थे और नवीन ने कहानी सुनानी शुरू करी। कहानी कुछ इस प्रकार थी-
गाँव में एक साधारण किसान, राघव, रहता था। वह मेहनती और ईमानदार था। दिन-रात मेहनत करता ताकि अपने परिवार का पेट पाल सके। उसकी पत्नी सुमन और दो छोटे बच्चे ही उसकी दुनिया थे। सब कुछ अच्छे से चल रहा था लेकिन एक साल बारिश ने धोखा दे दिया। फसल बर्बाद हो गई, और राघव को साहूकार से कर्ज लेना पड़ा।
राघव ने सोचा था कि अगले साल फसल अच्छी होगी, और वह कर्ज चुका देगा। लेकिन अगले साल भी हालात बदतर हो गए। कर्ज का बोझ बढ़ता गया, और साहूकार ने उसकी जमीन और घर अपने कब्जे में ले लिया।
राघव अब अपने परिवार के साथ गाँव के बाहरी इलाके में एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने लगा। अपना सब कुछ गंवा देने के कारण उसे अब काम के लिए दूसरों के खेतों में मजदूरी करनी पड़ती थी।
गाँव वालों की प्रतिक्रिया राघव के प्रति बदल गई थी जो लोग पहले उसकी मेहनत के कायल थे वे अब उसका उपहास उड़ा रहे थे।
गाँव के लोग राघव को ताने मारने लगे।
“देखो, कितना बड़ा किसान था, अब मोहताज बन गया।”
“बिना सोचे-समझे कर्ज लिया, अब भुगत रहा है,” ठाकुर साहब ने कहा।
“ऐसे लोगों का क्या भरोसा! आज तुम्हारे खेत में काम करेगा, कल तुम्हारे पैसे लेकर भाग जाएगा। यह तो भरोसे के लायक नहीं जो भी इसे कम दे रहा है अपने जोखिम पर दे,” एक औरत सुशीला ने जोड़ा।
राघव इन बातों को चुपचाप सहता। उसे पता था कि उसका काम बेकार हो गया था इसलिए उसे यह सारी कड़वी बातें सुनाई पड़ रही थी लेकिन उसके अंदर आत्म-सम्मान बचा था। वह किसी से मदद नहीं मांगता था। वह दिन रात मेहनत कर रहा था जिससे उसके दिन बदल जाएं।
वह कड़ी मेहनत कर रहा था परंतु घर की स्थिति देखकर कभी-कभी उसका मनोबल टूट जाता था।
उसके बच्चे जब भूख से रोते, तो राघव का दिल टूट जाता। एक दिन उसकी बेटी रोते हुए बोली,
इस कहानी को भी पढ़ें:
“पापा, क्या हम हमेशा ऐसे ही रहेंगे? क्या हम कभी अच्छा खाना खा पाएंगे?”
राघव ने उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में आंसू थे।
“नहीं, बेटा। तुम्हारे पापा मोहताज नहीं हैं। मैं तुम्हारे लिए अच्छा जीवन जरूर दूंगा,” उसने वादा किया।
एक रात गाँव में भयंकर बारिश हुई। नदी का पानी पूरे गाँव में भरने लगा। लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। राघव ने अपनी झोपड़ी और सामान की परवाह नहीं की। वह सीधे गाँव के चौराहे की तरफ भागा।
वहाँ उसने देखा कि कई लोग पानी में फंसे हुए थे। उसने बिना समय गंवाए एक टूटी हुई नाव पकड़ी और बच्चों और बुजुर्गों को बचाना शुरू कर दिया। रातभर वह लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाता रहा। उसकी पत्नी और बच्चे भी उसके साथ थे, मदद करते हुए।
अगली सुबह जब पानी कम हुआ, तो गाँव वाले चौराहे पर इकट्ठा हुए। हर कोई राघव की तारीफ कर रहा था। ठाकुर साहब, जो उसे हमेशा ताने मारते थे, उसके पास आए और बोले,
“राघव, तुमने साबित कर दिया कि असली अमीरी दिल में होती है। हम तुम्हें गलत समझते थे। तुम तो हमारे गाँव के असली हीरो हो।”
राघव मुस्कुराया और बोला,“मैंने कुछ अलग नहीं किया। जो भी पहले करता था वही किया लेकिन मुझे यह समझ नहीं आता कि आप मुझे मोहताज क्यों कहते हैं?”
गाँव के बुजुर्ग ने आगे आकर कहा,
“राघव, हम समझते थे कि जिसके पास पैसा न हो, वह मोहताज होता है। लेकिन आज हमने सीखा कि मोहताज वह है, जिसके पास इंसानियत और साहस न हो। तुम कभी मोहताज नहीं थे। मोहताज तो हम थे, जो तुम्हारे दिल को नहीं समझ सके।”
इस प्रकार नवीन ने कहानी पूरी की और कहा,
“दोस्तों, मोहताज का मतलब सिर्फ गरीबी नहीं है। राघव की कहानी से आप लोग यह सब तो समझ गए होंगे।असली मोहताज वह है, जो दूसरों की मदद करने से मुँह मोड़े। हमें शब्दों और उनके अर्थों को समझने की जरूरत है। अगर आज से हम एक-दूसरे की मदद करें, तो कोई भी इस गाँव में मोहताज नहीं रहेगा।”
तालियों की गूंज के साथ नवीन का भाषण खत्म हुआ। गाँव के लोगों ने उस दिन से “मोहताज” शब्द का सही अर्थ समझा और उसे अपने व्यवहार में अपनाया।
समाप्त
प्रस्तुतकर्ता
डा. शुभ्रा वार्ष्णेय