मोहताज – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

आंखो के लिए भी नीचे काले काले रंग निशान ,चेहरा पीला सा पड़ गया था।

हाथ पैरों में तो मानो जान ही नहीं रही।

अकेले कमरे में घुट घुट कर बैजान सी हो रही थी।

वो बिंदास रहने वाली पूजा।

जैसा नाम वैसा ही व्यवहार ।

सबसे मिलना जुलना हसना ,हसाना मानो फूल सी काया

हरे हरे पत्तों के बीच मुस्कुरा रही हो।

आराम तो उसके लिए हराम था।

सारे दिन कुछ ना कुछ करते रहना ।

और कोरोना के चलते अचानक कमरे में अकेले रहना तो कठोर कारावास की सजा हो गई थी।

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एक दिन पास में रहने वाली शांति दादी आई और पूजा के पति सिद्धार्थ जिसे प्यार से सब सिद्धू कहकर बुलाते थे।

दरवाजा खटखटाया और आवाज पर आवाज लगाने लगी।

अंदर से सिधू बाबू चिल्लाते रहे दादी जिस घर में कोरोना मरीज होता है वहां जाना अभी अच्छा नहीं होता आप लोट जाओ।

पर दादी भला किसी की क्यों सुने?

जोर जोर से दरवाजा पीटने लगी।

घर के बाहर लोग समझा समझा कर थक गए अभी ये लोग दरवाजा नहीं खोल सकते ।

पर दादी नहीं मानी।

आखिर कार सिद्धू बाबू को एक खिड़की खोल कर कहना पड़ा ” दादी साहब जब पूजा ठीक हो जाएगी तब

आपसे मिलने आ जाएगी।”

दादी बोली ” बेटा मेरी उम्र तो देख पैर तो कबर में लटक रहे है “

मुझे कुछ हो भी जाए तो क्या देख मै पूजा बिटिया से बात करूंगी तो वो जल्दी ठीक हो जाएगी मुझे उसके साथ उसके कमरे में रहने दे।”

थोड़ा खिलाऊंगी पिलाऊंगी हसाऊंगी तो देखना कितना

फर्क पड़ेगा।

दादी की हठधर्मिता के आगे मोहल्ले वालो को भी हार माननी पड़ी।

अब शांति दादी पूजा के साथ पूजा के कमरे में थी।

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हल्की फिरोजी कलर की साड़ी का पल्लू सिर पर ओढ़े

गोरवर्ण दादी जिसके चेहरे पर अनगिनत तजुर्बे की झुर्रियां थी।

हसते हसते तो सफेद रंग की नकली दातो की पंक्तियां

हिल जाती थी।

दादी बार बार उसे सही करती रहती थी इसीलिए कई बार घिन्न भी आने लगती थी।

पर दादी को बोले कोन?

हमारी संस्कृति इसकी इजाजत ही नहीं देती ।

पूजा दादी को देख चौक गई अनायास ही मुंह से निकल पड़ा ” दादी साहब आपको पता है ना ? मुझे कोरोना हुआ है आप क्यों आई तो यहां?

दादी साहब पूजा के और नजदीक चली गई बोली ” मेरी उम्र तुझे लगे पगला गई है क्या ?

मेरा करोना क्या बिगड़ेगा?

मै तो चाहती हूं मेरे बच्चे स्वस्थ्य रहे।

अब मुझे परेशान तो कर मत बता क्या खाएगी ?

सिद्धू से बनवा दूंगी और मेरे हाथो से खिलाऊंगी देखतो

कैसे पीली पड़ गई और अपने साड़ी के पल्लू से पूजा का मुंह पोछने लगी।

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पूजा को लगा जैसे साक्षात देवी उतर आई हो।

चेहरे पर मुस्कान आ गई।

दादी आप कितनी अच्छी हो ?

बेटा ” देखा ना अकेले रहना कितना बुरा लगता है अब तुम लोग तो फिर भी मोबाइल से वक़्त काट लेते हो हम जैसे तो……..

वो भी नहीं कर सकते हमें तो तुम लोगो के खिले खिले चेहरे दिख जाएं तो ही गंगा नहा लेते है।

और फिर तरह तरह की गोल मटोल इधर उधर की बाते खाना पीना दो चार दिन में तो पूजा के चेहरे की रंगत बदल गई।

और दस पंद्रह दिन में पूजा एक दम ठीक हो गई।

पूजा बोली ” दादी सा आपका आभार में जिंदगी भर नहीं भूलूंगी”

दादी साहब ने पूजा के सिर पर हाथ रखा और बोली ” बेटा आभार मत कहो बस इतना ध्यान रखना हम बुजुर्ग

सिर्फ प्यार और अपनों के एहसास के भूखे होते है ।

बुढ़ापा तो एक ना एक दिन सबका आता है बस चाहती हूं जब तक जीऊ लोगो के चेहरे पर मुस्कान लाती रहूं।

और तुम भी ऐसा ही करना।

तुम्हे नहीं पता हम किसी को खुशी देते है तो हमारी खुशी दुगुनी मिलती है।

पूजा दादी से वैसे ही प्रभावित हो चुकी थी गद गद होती हुई बोल” दादी साहब आपकी बात मैंने गाठ बांध ली है जब तक जीऊंगी शान से बिल्कुल आपकी तरह ।

जो खुद ही किसी का सहारा बनने की हिम्मत रखता हो

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उसके पास तो स्वयं भगवान का साथ होता है।

दादी साहब बोली बेटा इस जीवन में खुद के लिए संघर्ष

खुद ही करना पड़ता है ।

मुझे देखो ,जवानी में ही पति खो दिया,बेटा खो दिया

अगर अगर परेशान होकर जीती तो कब तक कोई सहारा बनता ।

इसीलिए खुशियां बांटने के काम को ही सहारा बना लिया।

और इसीलिए आज अपनी खुशियों के लिए किसी की मोहताज नहीं हूं ।

बस बदले में दुआओ की झोली भर जाती है ।

और ऊपर तो शायद वही काम आती है।

पर एक उम्र बाद लगता है कोई अपना हो जिसके पास बैठ कर हम लोग भी अपना मन हल्का कर सके।

रुपए पैसे की ,खाने पीने की कमी नहीं खलती है।

और कहते कहते दादी साहब लुढ़क गई।

कोरोना की चपेट में जो आ चुकी थी।

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पर पूजा से पूजा का पुनर्मिलन करवा चुकी थी।

केवल पूजा ही नहीं मोहल्ले में सभी का ध्यान रखने के कारण आज सबकी आखे नम थी।

एम्बुलेंस पूजा के घर खड़ी थी आज दादी साहब के अंतिम दर्शन हेतु दूर से ही सनेहजन हाथ जोड़े खड़े थे।

सबको एहसास हो रहा था जैसे अभी दादी बोलेंगी

” लो चली मै सबकी दुआओ को साथ लेकर…

वास्तव में लगा दादी अपनी खुशियों के लिए किसी की मोहताज नहीं थी।

उनमें खुश रहना और खुशियां बाटने का हुनर था।

और  वो एक ओर सीख दे गई थी की खुद संघर्ष कर खुश रहने से स्वाभिमान बना रहता है।

 दीपा माथुर

#मोहताज

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