मिठास – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

जैसे ही नीति छत से कपड़े सुखाकर आई उसने देखा कि डाइनिंग टेबल पर रसमलाई का एक बड़ा सा डिब्बा रखा है।रसमलाई के डिब्बे को देखते ही उसकी आंखें चमक उठी।रसमलाई उसकी कमजोरी थी। उसका बस चलता तो अभी डब्बे को खोल रसमलाई पर टूट पड़ती लेकिन नई-नई शादी के संकोच ने उसके हाथ रोक दिए।

तभी उसकी सासू माँ वहाँ आई और बोली “नीति,ये रसमलाई सरला के यहाँ से उसकी बेटी का सम्बंध पक्का होने की ख़ुशी में आई है।इसे फ्रिज में रख दे।अमन(नीति का पति), राजीव(नीति का देवर) तुम्हारे बाबूजी सबको रसमलाई बहुत पसंद है।आज रात डिनर के बाद हम सब मिलकर इसका इसका मजा उठाएँगे।”

यह सुनते ही नीति खुशी से झूम उठी और खुशी-खुशी रसमलाई के डिब्बे को उठाकर फ्रिज में रख दिया। रसमलाई की खुशी में उसने स्पेशल डिनर भी रेडी कर कर लिया और सारी तैयारी करके वह आराम करने चली गई। कुछ देर बाद जब नीति आराम करके बाहर आई तो उसने देखा कि ड्रॉइंगरूम में बुआजी सपरिवार बैठी रसमलाई का लुफ्त उठा रही हैं। यह देख नीति का जी निकल गया “गई रसमलाई”।

बुआजी के जाते ही वह फटाफट किचन में गई और जाकर रसमलाई का डिब्बा देखा तो उसमें मात्र चार रसमलाई बची थी।”अरे! इसमें तो सिर्फ चार रसमलाई है माँ,बाबूजी अमन और राजीव के लिए।” यह देख नीति की आँखों में आँसू आ गये।

तभी सासूमाँ ने उसे आवाज दी “नीति डिनर लगा दो।”

यह सुनते ही ऊपर से खुद को सामान्य करते हुए नीति डिनर सर्व करने लगी। डिनर के बाद अमन ने कहा “सुना है, सरला आंटी के यहाँ से रसमलाई आई है।ले आओ।अब और इंतजार नहीं होता।”

अमन की बात सुनते ही नीति किचन की ओर जाने लगी तभी सासू माँ ने उसे रोकते हुए कहा “नीति तुम बैठो। मैं लाती हूँ।”

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“माँ,मैं ले आती हूँ।”

“नहीं, कहा ना तुम बैठो।मैं लाती हूँ।”

कुछ देर बाद सासू माँ एक ट्रे में पांच कटोरियाँ लेकर आई।यह देख नीति चौंक गई।”माँ,रसमलाई तो चार ही बची थी।यह पांचवीं कहाँ से आई?” उसने चौंकते हुए पूछा।

“बाजार से। मैंने तुम्हारे बाबूजी से मंगाई है।भला ऐसे कैसे हो सकता है? हम सब खाएँ और तुम नहीं। वह भी तब जब तुम्हें रसमलाई इतनी पसंद है।”सासू माँ ने हँसते हुए कहा।

“पर, माँ आपको कैसे पता चला कि मुझे रसमलाई बेहद पसंद है। मैंने तो नहीं बताया।”

“तूने नहीं,अमन ने बताया। हुआ यूँ कि जब सरला का ड्राइवर रसमलाई लेकर आया तब अमन ऑफिस के लिए निकल रहा था तो ड्राइवर ने इसके हाथ में ही रसमलाई का डिब्बा पकड़ा दिया जिसे देखते ही यह बोल पड़ा “वाह! नीति की फेवरेट रसमलाई।आज तो वह बहुत खुश हो जाएगी।” और रही-सही कसर रसमलाई के डिब्बे को देख तेरी आंखों में आई चमक ने पूरी कर दी।” सासू माँ ने उसके गालों पर प्यारी सी चपत लगाते हुए कहा।

“पर बेटा, यदि तू खुद बताती तो हमें ज्यादा अच्छा लगता।आगे से ऐसा मत करना और अपनी पसंद नापसंद खुलकर बताना।अपने घर में कैसा संकोच?” बाबूजी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

बाबूजी की बात सुनते ही नीति की ऑंखों में खुशी के ऑंसू आ गए। “मैं बहुत किस्मत वाली हूॅं जो मुझे इतना प्यार ससुराल मिला।”

“किस्मत वाली तू नहीं बेटा, किस्मत वाले तो हम हैं जिसे इतनी प्यारी बहू मिली। यह घर जितना राजीव और अमन का है उतना ही तुम्हारा भी। चल अब रोना बंद कर और अपनी फेवरेट रसमलाई खाओ।” सासू माॅं ने उसके ऑंसू पोंछते हुए कहा।

“जी ” कहते हुए नीति रसमलाई पर टूट पड़ी और उसे बच्चों की तरह रसमलाई खाते हुए देखकर राजीव बोल पड़ा “भाभी रसमलाई के साथ कटोरी मत खा जाना।” यह सुनते ही सभी खिलखिलाकर हॅंस पड़े और चारों ओर खुशियों की मिठाई छा गई।

साप्ताहिक विषय कहानी प्रतियोगिता- #किस्मत वाली

शीर्षक- # मिठास

लेखिका – श्वेता अग्रवाल

धनबाद, झारखंड।

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