बात 19_20 साल पुरानी है, मेरे पास ट्यूशन पढ़ने एक बच्ची आती थी, ,,,,,,,,मिनी हां,यही तो नाम था उस बच्ची का, ,,,,,,,,एकदम अपने नाम की तरह नन्ही_ सी। पतली _दुबली, सांवला रंग, मनमोहक मुस्कान, हमेशा तितली सी चहकती, फुदकती रहती ,,,,यहां ,,,,,से ,,,,,वहां। नाम ही बस मिनी था उसका, थी एकदम “पॉवर हाउस” ,,,,,,,,,, दौड़ दौड़ कर
ऐसे काम करती, जैसे पंख लगे हो। मोहल्ले में सभी की चहेती, किसी को कभी भी मदद की जरूरत हो, मिनी को आवाज़ दो,,,,,, मिनी हाज़िर।
पढ़ने में भी बहुत तेज थी, कभी बैठकर पढ़ना तो जानती ही नही थी, यूंही चलते _फिरते पढ़ लेती,13_14साल की कच्ची उम्र, लेकिन समझदारी बड़ों जैसी । मां अक्सर बीमार रहा करती थी । इसलिए बच्ची
घर के काम _काज में भी पूरा हाथ बटाती थी।
मोहल्ले में ही पिताजी की एक छोटी_सी किराने की दुकान थी। घर खर्च निकल जाता था । मिनी
कभी कभी अपने पापा की मदद करने दुकान भी पहुंच जाती। हिसाब में पक्की थी, इसलिए पिताजी भी कभी जरुरी काम से जाना होता तो थोड़े समय के लिए उसके भरोसे दुकान छोड़ जाते। पिताजी का व्यवहार भी बहुत अच्छा था। मोहल्ले के लोग छोटी मोटी रोजमर्रा की खरीददारी इसी दुकान से करते। मैं भी अक्सर उसी दुकान से सामान लेती। कभी _कभी तो मिनी से कहती तो, वो दौड़ कर सामान घर पहुंचा देती।
पता नही,क्यों मुझे वो बच्ची बहुत अच्छी लगती, मेरे दिल में उसके लिए कुछ प्यार जैसा था, किसी दिन वो बच्ची दिखाईं ना देती, तो मै बैचन हो जाती, ,,,,,,,,,क्या बात है, ,,,,,,,,,तबियत तो ठीक है उसकी । वैसे तो मुझे अपने ट्यूशन के सभी बच्चे बहुत प्यारे थे, लेकिन मिनी मेरी फेवरेट थी, शायद हो सकता है, एक वजह यह भी हो, मुझे उसमे बचपन की अपनी छबि दिखाईं देती थी।
कुशाग्र इतनी कि __तुरंत किसी भी बात को समझ लेती। शांत, सरल स्वभाव की
उस बच्ची को कभी डांट _डपटकर पढ़ाने की नौबत नही आई। मुझे उस बच्ची के उज्ज्वल भविष्य को लेकर बहुत आशाएं थी।
मार्च का महीना था, मिनी के सभी
मुख्य विषयों की परीक्षाएं हो गई थी, नैतिक शिक्षा और कंप्यूटर जैसे पर्चे रह गए थे, दो दिन से मिनी नही आई थी, मैने पता किया तो पता चला, उसे अचानक से बुखार आया और चक्कर खा कर गिर पड़ी, हॉस्पिटल में भर्ती किया, डॉक्टर ने इलाहाबाद रेफर कर दिया, तुरंत इलाहाबाद के लिए रवाना हुए, लेकिन बच्ची ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया, सुनते ही मेरे होश उड़ गए,,,,,,,,
किसी तरह घर आई लेकिन लग रहा था जैसे किसीने मेरा दिल निकाल लिया हो, हाथ _पैर सुन्न पड़ रहे थे, दिल भरा था, आंसू अपने आप बहे जा रहे थे, लेकिन मुंह से आवाज़ नही निकल पा रही थी,,,,,,,,, मैं कई दिनों तक इस हादसे से उबर नहीं पाई थी।
उस दिन पहली बार मैने महसूस किया कि
खून के रिश्तों से बड़ा भी कोई रिश्ता हो सकता है,,,,,,
“दिल का रिश्ता”,,,,,,,,,,,,,, मिनी जहां भी हो बेटा सदा खुश रहना,तुम सदा मेरे दिल में हो, और हमेशा रहोंगी।
#दिल_का_रिश्ता
मीना माहेश्वरी स्वरचित
रीवा मध्य प्रदेश