Moral Stories in Hindi : …अरे तुमने मेरी टाई कहां रख दी !! यहीं तो रखी थी मैंने अपने सूट के साथ !!प्रकाश जी ने बाथरूम से निकलते ही तैयार होने के लिए अपने कपड़ों की तरफ हाथ बढ़ाया टाई नदारद थी… जोर से पत्नी मीरा को आवाज दी।
मैंने .. मैने नहीं उठाई आपकी टाई बल्कि मैं तो सुबह से किचन में ही लगी हूं इस कमरे में आई ही नहीं मीरा अपनी सफाई देते हुए कहने लगी।
ऐसा हो ही नही सकता कि तुमने मेरी टाई ना छुई हो क्या उसके पंख लगे थे जो उड़ कर गायब हो गई..!! देखो मीरा मैने तुम्हे कई बार समझाया है मेरे कामों में टांग ना अड़ाया करो एक काम तुमसे ढंग से होता नहीं है अपने काम किया कर लिया करो यही बहुत है मैं तुमसे अपने कोई काम इसीलिए बोलता ही नहीं हूं।आखिर में मुझे ही करना पड़ता है.. प्रकाश जी का गुस्सा चरम पर था।
अब खड़ी खड़ी मुंह क्या देख रही हो जल्दी से चारो तरफ ढूंढो आज मेरे कॉलेज में कार्यक्रम है मेरे सभी पुराने विद्यार्थी आ रहे हैं इसीलिए तो मैं पिछले एक हफ्ते से विशेष तैयारी में लगा रहा……
मीरा जल्दी जल्दी घर के नौकर सोहन के साथ टाई ढूंढने में जुट गई।
ये सोहन भी एक नंबर का निकम्मा है बस बैठे बैठे पगार लेना आता है इसे ….अभी तक टाई नहीं ढूंढ पाया प्रकाश जी अब सारा गुस्सा सोहन पर निकालने लगे थे..
साहब… साहब.. बाहर आती तेज आवाज सुन प्रकाश जी बाहर जाने लगे मैं देखता हूं कौन है मेरे वापिस आने तक मेरी टाई ढूंढ कर मेरे सामने कर देना समझे…!
साहब ये आपकी टाई प्रेस करके लाया हूं आप दे गए थे ना कल रात को …..आते आते थोड़ी देर हो गई कहते हुए धोबी ने उन्हें उनकी टाई पकड़ा दी…!
प्रकाश जी को तत्क्षण कल रात की बात आ गई
जल्दी से बिना कुछ कहे प्रकाश जी ने टाई बांध ली।
अरे आपकी टाई कहां मिली बताया नहीं आपने उनके गले में टाई देख मीरा ने आश्चर्य और उत्सुकता से पूछ लिया जो टाई ढूंढ कर थक गई थी।
वो धोबी अभी देकर गया है हद है अभी लाकर दे रहा है सब एक से एक भुलक्कड़ और निकम्मे हैं कहते हुए कार की ओर बढ़ गए।
बिचारी पत्नी या नौकर की बेवजह हुई मेहनत और बेवजह उन्हें सुनाए तानों के लिए अफसोस करना प्रकाश जी के स्वभाव में था ही नहीं…!जैसे हर किसी को जलील करने में उन्हें सुकून और संतोष मिलता था या इसी में अपनी अकड़ समझते थे।
भव्य सजावट की गई थी आज पूरे कॉलेज की विगत दस वर्षो के सभी पुराने विद्यार्थियों का सम्मेलन था आज।कॉलेज की परंपरा थी प्रति दस वर्ष में सभी पुराने विद्यार्थियों का समागम होता था भारी समारोह किया जाता था सभी विद्यार्थी काबिल और उच्च पदों पर आसीन हो जाते थे अपने कॉलेज आकर अपनी सफलताएं संघर्ष और उपलब्धियों की साझेदारी करते थे सह भोज का आयोजन और साथ ही अपने शिक्षकों के बारे में अपने उद्गार व्यक्त करते थे।अध्ययनरत विद्यार्थियो के लिए यह एक बेहद प्रेरणादाई उत्सव हुआ करता था ।इस वर्ष भी सभी को बेहद उत्सुकता से इस दिन का इंतजार था।
प्रकाश जी के पहुंचते ही कार्यक्रम आरंभ कर दिया गया .. प्रकाश जी कॉलेज के पुराने सख्त और प्रसिद्ध प्राध्यापक थे।
सभी विद्यार्थी अपना परिचय उपलब्धियां और अपने पसंदीदा शिक्षक के बारे में अपने अनुभव और विचार गीत कविता और उद्बोधन के माध्यम से व्यक्त कर रहे थे चारो तरफ बेहद उत्फुल्लित वातावरण था।
अब हमारे कॉलेज के एक पुराने छात्र अपने फेवरेट प्राध्यापक को अपने मोनो एक्ट के माध्यम से अभिव्यक्त करने आ रहे हैं देखिए और पहचानिए……!
उद्घोषणा होते ही सबकी उत्सुकता और तालियां बढ़ने लगी … पर्दा खुला और सबको ऐसा प्रतीत हुआ मानो स्वयं प्राध्यापक प्रकाश जी मंच पर आ गए हों….. वही गेट अप वही चाल ढाल वही टाई वैसा ही सूट हेयरस्टाइल भी वही जैसी प्रकाश जी की रहती थी… कौन है यह कौन है जिसने मुझे इतना फॉलो किया बारीकी से प्रकाश सर का हृदय गर्व और अभिमान से फूल उठा…..और एक बार फिर उन्होंने अपनी टाई की नॉट को पकड़कर ठीक किया….कितना लोकप्रिय हूं मैं कॉलेज में अपने विद्यार्थियों के मध्य सोच कर सिर घमंड से तन गया आस पास बैठे स्टाफ सदस्य उन्हें बधाई देने लग गए थे…. प्रकाश सर ….प्रकाश सर उपस्थित छात्र समुदाय के जोरदार शोरगुल के बीच एक गंभीर स्वर उभरा जिसने सबके साथ प्रकाश जी का दिल धड़का दिया … मोनो एक्ट शुरू हो चुका था……
निखिल ……..
जी सर जी
उपस्थिति लेते हुए प्रकाश का हाथ थम सा गया था।
निखिल खड़े हो जाओ .. ये देखो ये डब्बा है कक्षा का ….कितने दिनों बाद आज स्कूल आए हो क्यों??
जी सर वो … वो
कोई जवाब तुम्हारे पास रहता ही कहां है ये वो वो के आगे भी तो कुछ कहो….प्रकाश के कहते ही पूरी कक्षा में जोरदार हंसी की लहर दौड़ गई जिसमे बिचारा निखिल डूब ही गया।
और आज भी तुम टाई बांध के नहीं आए हो … सारे बच्चे टाई पहनकर आए हैं…..
सर इससे टाई बांधते ही नही बनता होगा एक छात्र ने हंस कर कहा
हां ठीक भी है इसके जैसे लोग जिंदगी में कभी टाई बांधने लायक हो नही पाते हैं ….जानते हो ये टाई कौन लोग बांधते हैं जो बहुत प्रतिष्ठित होते हैं सम्माननीय होते हैं उच्च पदों पर होते हैं …..ठीक ही है तुम तो कभी ऐसे हो नही पाओगे इसलिए टाई कैसे बांध पाओगे ..! फिर से सब हो हो कर हंस पड़े
देखो निखिल ये रोज रोज नहीं आने की बहाने बाजियां छोड़ो और प्रतिदिन स्कूल आने की आदत डालो समझे!!..वैसे भी पढ़ाई लिखाई में तुम्हारा बुरा हाल है अभी परीक्षा हुई हैं …..क्या मार्क्स मिले है तुम्हे जरा सबको बताओ…सभी विषयों में तुम्हें धरती गोल ही दिखी होगी… फिर से पूरी कक्षा निखिल को देख हंस पड़ी थी और अब तो निखिल की झुकी हुई गर्दन मानो झुककर पेट से जुड़ गई थी।
सन्नाटा पसर गया था चारो ओर…. प्रकाश जी आज खुद अपने आपको उस मोनो एक्ट में देख रहे थे सुन रहे थे और अपने शब्दों द्वारा एक मासूम छात्र की आत्मा को जलील होते महसूस कर रहे थे…..
मोनो एक्ट आगे बढ़ा……
सुनो तुम ….क्या नाम है तुम्हारा हां ….निखिल मेरा दावा है कि तुम अपनी जिंदगी में कभी कुछ नहीं कर पाओगे समझे क्या करते हैं तुम्हारे मां बाप बिलकुल ध्यान नहीं देते तुम्हारी तरफ…. लानत है उन पर भी कि ऐसा निकम्मा पुत्र पैदा किया… जरा अपने माता पिता के बारे में पूरी कक्षा को बताओ…. नहीं बता पा रहे हो ना हां ऐसा कुछ बताने लायक होगा भी नहीं जैसे मां बाप वैसा ही पुत्र …! और फिर से पूरी क्लास ठहाको से गूंज उठी ….
एक एक शब्द मानों प्रकाश सर की आत्मा पर हथौड़े सा प्रहार कर रहा था.. सबके मध्य बैठे प्रकाश सर कक्षा में जलील होते हुए निखिल के साथ आज खुद जलील हो रहे थे……! बैठना असहनीय हो गया था उनके लिए आंखों में अश्रु झिलमिला उठे थे… अपनी उपहास पूर्ण जलील करने वाली शब्दावली का तीखापन आज मानो उन्हें सरेआम निर्वस्त्र कर गया था।
एक कमजोर निरीह छात्र निखिल उनकी आंखों के समक्ष दृश्यमान हो उठा था और दिमाग में वे सारी घटनाएं चलचित्र की तरह सजीव हो गई थीं।
आदरणीय सर मैं आपको मंच पर बुलाना चाहता हूं….
निखिल की आवाज से वह वर्तमान में आ गए थे और विवश मुस्कान ओढ़े मंच पर आ गए थे।
सर मैं कृतज्ञ हूं आपके इन शब्दों का जिन्होंने मेरी आत्मा को छलनी जरूर किया लेकिन सर मेरी मां मुझे रोज समझाती और विश्वास दिलाती थी “..नहीं बेटा तुम्हारे सर तुम्हे बहुत प्यार करते हैं उनका उद्देश्य तुम्हे जलील करना नहीं बल्कि तुम्हे आगे बढ़ाना लड़ना सिखाना है तुममें एक आग पैदा करना है ताकि तुम अपनी इस गलीच जिंदगी के मकड़जाल की गिरफ्त से पूरी ताकत से आजाद हो सको और अपने मां बाप को भी आजाद कर सको….”और बस तभी से मेरे लिए आपके ये शब्द मंत्र की तरह बन गए….
….अपनी जिंदगी में कुछ बहुत ही बेहतर करने की अग्नि भी प्रज्वलित करते गए…. मैं आज बहुत ही कामयाब हूं और अथक संघर्ष करने का हौसला मुझे हमेशा प्रकाश सर के इन्हीं शब्दों से मिलता रहा … इस मोनो एक्ट को करने का मेरा उद्देश्य यही था कि शिक्षक के कटु वाक्य भी हमारी भलाई के लिए ही होते हैं….मेरा उद्देश्य उन शब्दों और वाक्यों को अभिव्यक्त करना था जो मेरे लिए चिंगारी बने सर इसीलिए आप ही मेरी जिंदगी के एकमात्र फेवरेट टीचर हैं और ताउम्र रहेंगे …. बहुत श्रद्धा निश्छल सम्मान और कृतज्ञता से निखिल ने प्रकाश जी के पैर छू लिए तो प्रकाश जी जो अभी तक आत्मग्लानि और जलालत में कुंठित हो रहे थे लपक कर गले से लगा लिया।
सर लेकिन आज तक टाई बांधना मैं नहीं सीख पाया मुझे हमेशा लगा टाई बांधने लायक तो बस सर आप ही हैं …निखिल ने हंसकर कहा।
निखिल तुम्हारे सम्मान और श्रद्धा का मैं कृतज्ञ हूं … प्रकाश सर कृतज्ञ स्वर में बोल पड़े…”आज से तुम मेरे विद्यार्थी नहीं मेरे गुरु बन गए हो जिंदगी का इतना बड़ा पाठ मैने आज तुमसे सीखा है अगर मेरे जलील करने वाले शब्द और वाक्य किसी की जिंदगी के मंत्र बन सकते हैं तो उनकी जगह अच्छे प्रेरणा प्रद और उत्साही शब्दो और वाक्यों का प्रयोग तो और भी कमाल का होगा…. आज और अभी से मैं सभी के प्रति अपने व्यवहार में शब्दावली में यह परिवर्तन करूंगा….!
तुम मेरे गुरु हो इसलिए आज अपनी यह टाई मैं अपने हाथों से तुम्हें पहनाऊंगा … इसे मेरा प्रायश्चित समझ लेना..!!
जोरदार तालियों के बीच प्रकाश सर बहुत गर्व और आनंद से निखिल के गले में अपनी टाई बांधने में मगन हो गए थे…!
लतिका श्रीवास्तव