मेरी राखी बहन निधि – रूचि पंत : Moral Stories in Hindi

” सीमा अब चलो भी” विनोद ने मौका पाकर दबे होंठों  से अपनी पत्नी से कहा।

“आप जब भी मेरे भैया के यहा आते है हर आधे घंटे में आपका ‘जल्दी चलो जल्दी चलो’ का अलार्म बजने लगता है। अरे साल में एक बार ही तो आती है राखी! आज के दिन मैं आपकी एक नही सुनने वाली।” सीमा खिन्न होकर कहती है।

” अब बांध तो दी राखी, खाली खिलादी मिठाई, दे दिया उन्होंने नेग, तुमने कोने में जाकर गिनकर पर्स में भी रख लिये, तो अब किस बात पर यहा जमी बैठी हो।” विनोद गुस्साए कहता है।

” बचपन में इतना लड़ते झगडते थे, अब जब हम अपनी-अपनी दुनिया में बस गये है ना, तबसे भाई पर बडा प्यार आने लगा है।” सीमा फोन पर लगे अपने भाई को देखकर कहती है।

“त्योहार बस तुम दोनों का नही है! “

” मतलब? हमारा ही तो है”

” तुम्हारी भाभी अपनी नन्द के तीन घंटे से विराजमान हो जाने के कारण खुद अपने भाई को राखी बांधने नही जा पा रही है। वहा देखो उनका चहरा कैसे बार-बार घड़ी की ओर देख रहा है। समझो भी,उन्हे हमारे जाने का कबसे इंतजार है। “

” अच्छा ठीक है, विनोद मुझे लग रहा है कि भाभी को मेरी खरीदी साड़ी पसंद नहीं आएगी। साड़ी के बदले में उन्हे कुछ पैसे दे देती हूं। क्यो ठीक है ना”

” फिर इस साड़ी का क्या करोगी? “

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” अरे किसी और को दे देंगे, वो मेरी सगी भाभी है। ऐसी छोटी सी बात के लिए रिश्ता थोड़ी ना खराब कर लूंगी। लाओ पैसे” वो विनोद की जेब में कुछ देखती है।

” ये गुलाबी लिफाफा आपकी जेब में क्या कर रहा है?और इसमें निधि क्यो लिखा है, ये कौन है?”

” अपने भाई भाभी से फुरसत मिलेगी तब तो जाकर मेरी जिंदगी में भी कोई बहन है इसका पता चलेगा। “

” शादी से पहले तो आपने कुछ नही बताया, अब ये बहन कहा से आ गई?”

” तुम यहा से चलो फिर रास्ते में बताता हूं। “

वहा निधि के घर


” सूरज वो मेरे पड़ोसी हुआ करते थे। ना उनकी कोई बहन थी ना मेरा कोई भाई था। एक दिन रक्षाबंधन के दिन उनकी मम्मी उन्हें मेरे घर ले आई।”

” दीदी मेरे नौ साल के बेटे विनोद की कोई बहन नही है। “


” यहा हमारी निधि का भी कोई भाई नही, देखिए घर के सभी दरवाजे, गमले, अपनी साइकिल और हमारे कुत्ते शेरू को तक नही छोडा। जहां मन वहा राखी बांधी फीर रही है।”

” दीदी जो मैं सोच रही हूं क्या आप भी सोच रही हैं?”

“आपके सोचने से पहले मैं सोच चुकी हूं, अब आईये अंदर, आओ बेटा विनोद, ऐ री निधि इधर आ देख तेरा नया भाई आया है!”

“और पाचंवी क्लास से मैं उन्हें हर साल राखी बांधती रही, जब वे कालेज और उसके बाद नौकरी करने लगे तो राखी पोस्ट करती रही पर पिछले साल उनकी और इस साल मेरी शादी हो गई और उनसे सम्पर्क टूट गया अब, अब क्या कंरू? ” निधि दुखी होकर करती है।

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” शादी के बाद आदमी बदल जाता है और तुम इतनी परेशान मत हो, वे तुम्हारे एक साधारण से राखी भाई थे उससे ज्यादा कुछ नही। बुरा मत मानना पर खून के रिश्तो की तुलना ऐसे बाहारी लोगों से बिल्कुल नही की जा सकती” सूरज ने कहा।

तभी घटी बजी

” तुम बैठो रीता आई होगी, जाओ जरा, कुमकुम, मिठाई, नेग आदि थाली में सजाकर ले आओ।”

” जी”


सूरज अपनी सुनी कलाई लेकर दरवाजा खोलने चला गया और वो उदासी लिये पलपल अपने विनोद भईया को याद कर राखी की थाली सजाने लगी उसने उनके लिये खरीदी राखी भी रख दी और निराश होकर हाॅल की ओर आने गई ।

” निधि”

निधि की इंद्रिया जागृत हुई कि कैसे उसके विनोद भैया की आवाज उसके हाॅल में गूंज रही है?

” विनोद भईया आप? यहा कैसे?”

“मेरी बहना, अब राखी के दिन मुझे और कहा होना चाहिए? मौसी से तुम्हारा पता कल ही पूछा, तुम ज्यादा दूर नही थी तो पूरे तीन घंटे लगातार गाड़ी चलाकर देखो पहुंच भी गया। चलो मेरी कलाई अभी भी सूनी है, आओ जल्दी से बांध दो राखी।” विनोद अपना हाथ बढाकर कहता है।

निधि अपने आंसू पोंछकर उसी थाली से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने लगी। वही सीमा ने अपनी भाभी को देने वाली साड़ी निधि को उपहार में दे दी जो उसे बहुत पसंद भी आई। बड़ा प्यार बड़ा माहौल चल रहा था कि इसी बीच सुरज को फोन आया।

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” क्या हुआ आप इतने उदास क्यों दिख रहे हैं? रीता दीदी का फोन था?” निधि ने उसके फोन काटने पर पूछा।

“उसकी ननद सुबह से जमी बैठी है और जाने का नाम ही नहीं ले रही। कहती है मेरी राखी किसी और से बनवा लीजिएगा। मैं सगा भाई हूं उसका, बताओ ये कोई बात हुई?”

सीमा आज क्या गलती करने वाली थी उसे भलीभाँति समझते देर ना लगी।

“भाई साहब आप चाहे तो रीता दीदी की तरफ से मैं राखी आपको बांध देती हूं। ” सीमा ने प्रेमपूर्वक कहा और सूरज ने भी त्यौहार मना लिया।

“मानते है ना, रिश्ते बनाने और निभाने के लिए खून का होना जरूरी नही होता।” निधि ने उनकी जाती हुई गाड़ी को हाथ हिलाते हुए सूरज से कहा।

” ये रक्षाबंधन त्यौहार है ही कुछ ऐसा, जिसमें अपना हो या कोई पराया सब अपने ही लगते है।”

आपकी
रूचि पंत

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