मेरी माँ के विश्वास को मत टूटने देना – आरती खुराना

“क्या हुआ ललिता इतनी चुप क्यों हो” राजेश ने पत्नी से पूछा।

“आज मां बातों से कुछ उदास लग रही थी” ललिता कुछ सोचते हुये।

“हाँ तो पापा को गए हुए छः महीना हो गया। उनके बिना जीने की आदत डालने में समय तो लगेगा…. इसीलिए उदास होंगी।”

राजेश ने पत्नी की चिंता दूर करने के लिए कहा। लेकिन ललिता के दिमाग मे मां के वो शब्द गूंज रहे,” बेटा ,बहुत फर्क आ गया है घर के माहौल में पहले और अब में…” ललिता को लगने लगा वो जाकर देखे ऐसा क्या हो गया। मन आशंकित हो रहा था। भाई भाभी फिल्मो की तरह मां को वृद्धाश्रम छोड़ कर आ रहे…..और भी जाने क्या क्या ख्याल आया रहे…..पिता के स्वर्गवास के बाद अकेली मां की चिंता बढ़ जाती है। ललिता ने मायके जाने की सोच ली थी।

“राजेश, मैं दो दिन के लिए मायके जा रही हूं । ज्यादा भी रुक सकती हूं। मेरा मन किसी चीज़ में नही लग रहा…तुम घर से काम कर लेना…. पीछे सब सम्भाल लेना।” ललिता ने बेग बनाते हुए कहा।

 

राजेश पत्नी का बैग उठाते हुए,” मैं चलता हूँ साले साहब को फ़ोन कर देता हूँ…लेने आ जायेंगे।”

“नहीं मैं चली जाउंगी… न ही फ़ोन करने की जरूरत है” ललिता रवाना हो गयी।

मायके पहुंचकर,” अरे गुड़िया…. ऐसे अचानक … सब ठीक तो है”

तुलसी में जल चढ़ाती पार्वती जी बेटी ललिता को देख हैरान हो गयी।




दोंनो मां-बेटी एक दूसरे से गले लगकर रोने लगी। मां बेटी दोनो के कलेजे को जैसे ठंडक मिल रही। काफी देर तक वो दोनों ऐसे ही के दूसरे को गले लगाए खड़ी रही।

“अरे अम्मा बुआ को अंदर तो आने दो”  भतीजा बिट्टू दरवाजे पर आकर बोला।

ललिता ने मां के आँसू तो मां ने ललिता के आंसू पोंछे।

“मां तू ठीक है ना,”ललता की बातों में चिंता थी।

“हाँ गुड़िया तुझे ऐसा क्यों लग रहा…. तू ऐसे अचानक सब ठीक तो है” पार्वती जी ने अपनी चिंता व्यक्त करि।

अर्चना को ननद ललिता का अचानक आ धमकाना कुछ अच्छा नहीं लगा। वो पति प्रभात के पास आकर बोली,”सुनते हो ललिता ऐसे अचानक  आ गई है,कही मां ने मेरी कोई शिकायत तो नहीं करी या  कही अपना हिस्सा लेने तो नहीं आई।”अर्चना के मन में आशंका उठी।

प्रभात अपनी दुकान जाने के लिए तैयार हो रहा।

“तुम अपना सी आई डी वाला दिमाग कम चलाया करो।बढ़िया जॉब ,अच्छा खासा पैकेज है राजेश जी का… हम व्यापारियों को फिर भी महामारी का फर्क पड़ा… वो तो घर से काम करके  पूरी सेलेरी ले रहे। ललिता को लालच क्यों होगी।”प्रभात गर्दन झटक कमरे के बाहर आया, बहन से मिला। उसके हाल चाल लिए और दुकान चला गया।




 

अर्चना भी ललिता के मुंह पर तो हंस बोल रही पर मन मन ही उसके आने का कारण जानने को व्याकुल हो रही।

केदारनाथ जी अकस्मात मृत्यु से पूरा परिवार सदमे में आ गया… केदारनाथ जी वसीयत में बेटे के साथ मां को हिस्सेदार  बना कर गए…..मां जो अभी गम से उबरी भी नहीं थी कि बेटे ने जायदाद के कागजो पर उनके साइन ले लिए थे। पार्वती भी यही सोच कर साइन कर  दी कि अब मैं कुछ रख कर करूँगी भी क्या…….आगे पीछे सब इन्ही का है।लेकिन उन्हें अपना आत्म सम्मान तभी प्यारा था। वो जानती थी कि  पति की पेंशन आती है ।बेटी दामाद या किसी भी रिश्तेदार के साथ कुछ लेन देन करने जितना ….उनके पास आ जाता है।बेटा भी महीने का दो हज़ार रुपये देता है। बस प्यार सम्मान मिलता रहे और क्या चाहिए बुजुर्ग इंसान को।

पिता के कमरे में पिता की तस्वीर पर लगे हार ने ललिता को एकदम से हिला कर रख दिया। पापा की चीज़ों को समेट कर उनकी अलमारी में रख दिया था। उनकी हंसी से गुलजार वो कमरा आज इतना शांत दिखाई दे रहा था। मां पापा की जगह पर अकेली बैठी थी अपनी कॉपी में राम राम लिख रही थी। जहां दोनो पति पत्नी की बातें कब बहस में बदल जाती थी आज सिर्फ सनाटा है। अर्चना अपनी माँ और बहन के साथ फ़ोन पर लगी रहती है। जब मन करता है मायके चली जाती है। बच्चे भी दादी के पास अब कम बैठते है। आखिर ललिता ने मौका देख मां की मनोस्थिति जानने की कोशिश की।

 

“मां ,भाई भाभी और बच्चो में काफी बदलाव आ गया….पहले तो बच्चे इस कमरे में रौनक लगाए रखते थे.. भाभी भी इतना मायके नहीं जाती थी।”

“बेटा, बड़ों के नियंत्रण बुरा जरूर लगता है पर अनुशासन तभी रहता है। अब तेरे पिता रहे नहीं…. मैं कुछ कहती नहीं तो जब मन करे जा आती है। मैं समझती हूं तुरंत बोल कर बुरा बनने से बेहतर है। सही समय का इंतजार करो… इसके भाई की शादी हो जाएगी अपने आप जाना कम हो जाएगा। बाकी रही बच्चो की बात तो दादाजी से कोई बात मनवानी हो ,पैसे चाहिए हो सो ही उनके आगे पीछे घूमते थे अब बूढ़ी दादी से किसी को क्या मतलब। ” पार्वती जी सहज भाव से बोली।

“और मां …. भाई… उसने तुमसे सारे कागजात पर साइन लिए वो क्या था…” ललिता ने आगे पूछा।




“बेटा , तुम्हारे पिता के अचानक जाने से सबकुछ बिखरा हुआ सा था। जिनसे पापा को पैसे लेने थे। वो सब गायब हो गए। जिनको हमसे लेने सब प्रकट हो गए। महामारी की वजह से तेरे भाई का व्यापार मंदा हो गया। बच्चो के कॉलेज में ऐडमिशन सिर पर…होस्टल,कोचिंग की फीसें कहाँ से लाता सो कुछ प्रॉपर्टी बेचने की सोची होगी सो मेरे साइन जरूरी थे। बाकी सब बता कर मुझसे साइन लिए है तू जैसा सोच रही वैसा कुछ नहीं।”मां ने बेटी को तसल्ली दी।

“मां तुम कितनी भोली हो…. पापा के जाने के बाद तुमसे कोई कुछ पूछता नहीं  सब अपने मन की कर रहे फिर भी तुम इतनी संतुष्ट कैसे हो” ललिता हैरान हुई।

 

“बेटा, बदलाव प्रकृति का नियम है। मैं तो आसानी से हर माहौल में सामंजस्य बिठा लेती हूं। तेरे पिता के बाद मैं अपने परिवार के साथ हूँ। मुझे मान सम्मान भी मिलता है। पहले की तरह हर छोटी से छोटी बात पर पूछना या बताना अब नहीं है पर मैं खुश हूं.मेरी चिंता छोड़ दे……कल जब हाथ पैर साथ नहीं देंगे…….तो बेटा बहु  सेवा ही करेंगे। वो कुछ गलत करेंगे……उसकी चिंता कर …..मैं अपना आज क्यों खराब करूँ। क्यों न ईश्वर में मन लगाऊं। तुम चार दिन आई हो हँसी खुशी से रहकर जाओ, कोई चुभती बात मत कहना…. मेरे बाद तुम्हारा  व्यवहार ही तुम्हारे  मायके से  सम्बन्ध तय करेगा।”पार्वती ने बहुत ही  कम शब्दो मे गहरी बात समझा दी।

ललिता को समझ आ गया था। भाई,भाभी भतीजो में  समय के साथ आये बदलाब   को मां ने बहुत सकारात्मक रूप से अपना लिया वो बहुत ही समझदारी से संतुलन बना कर बैठी है। कम से कम बोल कर वो अपना ज्यादा से ज्यादा  समय ईश्वर में लगाती है। पिता की पेंशन ने उन्हें आत्म निर्भर बना रखा। बेटे बहु से मिल रहे सम्मान  में वो खुश है साथ ही बेटी को रिश्तो को लंबे समय तक बनाये रखने की सीख दे दी।

एक दिन बेग बनाते हुये ललिता से भाई ने पूछ लिया….” बहन कैसे आई कैसे जा रही… धंधा मंदा चल रहा… थोड़ा परेशान हूँ सो तुझसे बैठ कर बात करने का मौका न मिला” प्रभात ने कहा।




अर्चना के सारे कान रसोई से ज्यादा भाई बहन कि बातो में लगे थे।

 

“कुछ नहीं भाई, जब हम मोहल्ले वाले स्कूल जाने लगे थे  तब शुरू शुरू में मां बार बार चेक करने आती थी। हमे कोई तकलीफ तो नहीं, पोटी, सुसु खाना सबका पूछ कर जाती। क्योंकि वो जानती थी घर से बदला माहौल मिलेगा तो बच्चो को एडजस्ट होने में समय लगेगा। वैसे ही पिता के जाने के बाद मेरे इस घर मे बदले माहौल में मेरी माँ  कैसे एडजस्ट कर रही वही देखने आई। पर मैं भूल गयी आज भी वो मां है और हम अब भी बच्चे….. वो तो बड़ी आसानी से एडजस्ट हो गयी।”

प्रभात और अर्चना अच्छे से समझ गए। ललिता किस बदले माहौल की बात कर रही।

“मेरी मां को विश्वास है कि उन्होंने किसी का गलत नहीं किया सो उनके साथ ईश्वर कभी गलत नहीं होने देगा।सो भाई मेरी माँ के इस विश्वास को कभी टूटने मत देना”

अर्चना को अपनी सोच पर बेहद अफसोस हो रहा जिस बहन  को हिस्से का लालच आ गया होगा सोच रही थी…..वो तो सिर्फ यहां अपने मां का हाल चाल लेने आए थी और वो भाई से हिस्सा नहीं अपनी माँ की खुशियां चाहती है ।

धन्यवाद दोस्तो

मेरी कहानी में मैने पार्वती जी के रूपमे एक ऐसी इंसान की रूपरेखा तैयार की है जो अपने जीवन में आये बड़े से बड़े बदलावों के साथ सामंजस्य बिठा लेती है। रिश्तो को संभाल कर रखने और एहतियात से निभाने का गुर जानती है।  सच मे एक हमारी सोच ही है जिस से हम अपनी दुनिया को स्वर्ग या नरक बना सकते है ऐसे इंसान ही है जो हर परिस्थिति में खुश  रहते है।

 

हो सकता है आप मेरे विचारो से सहमत न हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।

आपकी दोस्त

आरती खुराना

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