मेरी किस्मत में तो बस रोना ही लिखा है – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

अंकिता ने मेंहदी लगाने वाली के सामने जैसे ही अपना हाथ आगे बढाया अंकिता की बुआ सांस जोर से चिल्ला पड़ी अरे , अंकिता तुम कैसे मेंहदी लगवा सकती हो ये तो सुहागिनें लगाती है न और तुम ,,,,,,,,,।अरे भाभी तुम्हारी बहू को जरा भी अकल नहीं है कि मेंहदी तो सुहागिनें लगाती है ये नहीं ,,,,,, लगवा सकती अंकिता की बुआ सांस सुषमा बोल रही थी ।

दरअसल अंकिता के जेठ के लड़के की शादी थी , घर में अच्छी खासी चहल पहल थी ।घर की बड़ी जैसे बुआ सास और दादी वगैरह जैसे अंकिता पर ही नजरें गड़ाए बैठी थी कि वो क्या कर रही हैं ।दो साल पहले अंकिता के पति की रोड़ एक्सिडेंट में मृत्यु हो गई थी

तब से ही उसके जीवन में टोका टोकी शुरू हो गई थी तुम ए नहीं कर सकती तुम वो नहीं कर सकती।तुम वैधव्य को प्राप्त हो गई हो तो तुम्हें साज सिंगार करने का खुश रहने का कोई हक नहीं है । क्यों कि तुम्हारे जीवन में वो नहीं रहा जिसकी वजह से तुम्हारे जीवन में खुशियां थी तुम्हारा संजना संवरना था ।

लेकिन इसमें अंकिता की क्या ग़लती है कोई काम होता शादी ब्याह होता कहीं पार्टी में जाना होता तो उसका भी मन करता कि वो भी अच्छे से तैयार हो । लेकिन वो बड़ा संकोच करती कैसे तैयार हो अब कौन टोंक देगा पता नहीं ।

अरे लाल रंग की साड़ी क्यों पहनी हो या इतनी तैयार क्यों हो या आज कुछ पूजा वगैरह है उसमें तुम मत आना वगैरह वगैरह। क्या करें बिचारी अभी छोटी सी उम्र तो थी उसकी ।और हर घर के फंक्शन में घर का कोई न कोई रिश्तेदार ऐसा होता है जो सबसे ज्यादा नज़रें ऐसे लोगों पर ही गड़ाए रखता है ।

शाम को बारात जानी थी और आंखों में आंसू भरे अंकिता अपने कमरे में बैठी थी ।उसका तैयार होने का मन ही नहीं कर रहा था ‌। क्या पहने और कैसे तैयार हो कि उसको कोई न टोके समझ ही नहीं आ रहा था। अंकिता ने बारात में न जाने का फैसला ले लिया और कमरा बंद करके बैठ गई।

शुभम जो चाची से बहुत लगाव रखता था मंडप के नीचे खड़ा अपनी तैयारी पूरी कर रहा था लेकिन वो बार बार इधर उधर देख रहा था कि अंकिता चाची नहीं दिखाई दे रही है । वहीं पास में अंकिता की सांस और बुआ सांस और भी लोग खड़े थे शुभम को इधर-उधर देखने पर पूंछ लिया

क्या बात है बेटा क्या ढूंढ रहा है किसी को नहीं मां वो चाची  दिखाई नहीं दे रही है । होगी वो यही कहीं तू क्यों परेशान होता है बारात निकलने का समय हो रहा है बेटा तू अपनी तैयारी पूरी कर । नहीं मम्मी उन्हें भी बुलाओ कहां है वो ,,,,,।

बात आई गई हो गई कोई भी अंकिता को बुलाने नहीं गया ।बारात चली गई और दूसरे दिन विदा होकर आ भी गई पर, अंकिता वही घर पर ही रही ।सबके तीखे नजरों से बचकर अपमान का घूंट पीकर अपने कमरे में ही बैठी रही ।

दूसरे दिन बारात आने के बाद जब अंकिता शुभम को दिखी तो शुभम ने पूछा लिया अरे चाची आप कहां थी बारात में भी नहीं दिखीं  मैं कबसे आपके बारे में पूछ रहा हूं कोई बता ही नहीं रहा है । कुछ नहीं बेटा वो जरा सिर में बहुत दर्द था

अरे चाची कोई दवा ले लेती आपको तो चलना था न । कुछ नहीं जाने दो हमारी किस्मत में रोना ही लिखा है बेटा कैसी किस्मत पाई है आंखों में आंसू भरकर अंकिता चली गई ।जरूर दादी ने कुछ कहा होगा चाची को हर वक्त टोका टोकी करती रहती है । क्यों परेशान करती रहती है चाची को वो तो वैसे ही दुःखी हैं । अच्छा अच्छा चल चुप रह और शादी की बहुत सारी रस्में बाकी है उसे निपटा जल्दी जल्दी ।

अंकिता की बड़ी बहन संगीता ने जब यह सब सुना तो बहुत बुरा लगा उसको। संगीता कहने लगी अगर किसी इंसान के साथ कोई एक्सिडेंट हो जाता है तो उसका मनोबल बढ़ाना चाहिए हिम्मत देनी चाहिए जिससे उसका दुख कम हो सके कि उस इंसान को और दुखी करना चाहिए।हर बात में उसको टोंक टोंक कर हर समय उसको पुरानी बातों को याद दिलाकर और दुखी करते रहना चाहिए । परेशान न हों अंकिता हम है तुम्हारे साथ।

अंकिता की जेठानी के बेटे की शादी के बाद संगीता के बेटे की दो महीने बाद शादी थी । दोनों बहनें एक ही शहर में रहती थी । संगीता ने कहा तुम अपने घर से रोज हमारे यहां फंक्शन में आओगी तो रोज तुम्हारी सास टोक टोंक कर तुम्हें परेशान करेगी

ऐसा करो तुम अपना और बच्चों का जरूरी सामान लेकर एक हफ्ते को हमारे घर पर ही आ जाओ बार बार आने जाने की जरूरत नहीं है और कोई तुम्हें किसी बात के लिए रोकेगा भी नहीं । हां ये अच्छा आइडिया है दी ।

अंकिता अपना और बच्चों का एक हफ्ते के कपड़े वगैरह और जरूरी सामान लेकर संगीता के घर आ गई ।और यहां के पूरे फंक्शन में खूब मौज मस्ती की और खूब हाथ भर-भर कर मेंहदी भी लगवाई । संगीता ने अंकिता से कहा जो मन करे वो पहनो और खूब अच्छे 

से तैयार हो ।अब अंकिता की उम्र ही क्या थी अभी 40 की ही तो थी उसका मन भी करता था बनने संवरने का ।तो आज अंकिता बहुत खुश नजर आ रही थी ।

दोस्तों यदि किसी के साथ ऐसी कोई दुर्घटना हो जाती है तो  जाने वाला तो चला गया उसको कौन रोक पाया है लेकिन जो इंसान जिंदा है उसके साथ इतनी ज्यादती क्यों। उसकी क्या ग़लती होती है ‌‌‌क्या उसको जीने का हक नहीं है  , खुश होने का हक नहीं है । पहले चलते थे रूढ़िवादी ता कि पति के ही साथ सारी खुशियां होती थी पति के चले जाने पर पत्नी सती हो जाया करती थी । लेकिन अब ये सब खत्म हो गया है ।पति के चले जाने पर यदि बच्चे हैं तो पत्नी को उसका भी ख्याल रखना पड़ेगा। यदि वो खुश नहीं रहेगी तो बच्चों को कैसे संभालेंगी।समय के साथ उसको भी तो अपनी मर्जी से जीने का हक है ।उसको इतना बड़ा गम ईश्वर ने दे दिया है तो उसको भुलाने में उसकी मदद करें न कि हर समय याद दिलाए कि तुम बेचारी हो वैधव्य को पा चुकी है तुम्हें खुश रहने का कोई अधिकार नहीं है

ये ग़लत है इसका विरोध करने की शक्ति हर एक महिला में होनी चाहिए । आपकी क्या राय है बताएगा 

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

16 जून ।

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