Moral Stories in Hindi : दोनों पोता-पोती स्कूल जा चुके थे, सुमित्रा जी ने अपने बेटे और वहू का भी टिफिन तैयार कर दिया था, अपने पति के लिए फिर दलिया बनाने लगी, तभी उनकी बहू राशि बोली, मम्मी जी अभी तो पापाजी सो रहे हैं, क्या सुबह ही नाश्ता कर लेंगे पहले आप सुमित की ओर मेरे लिए चाय बना दीजिए फिर पूरा दिन आपको घर पर ही रहना है,
बहू तुम्हारे पापा को दवाई देनी है उन्हें शुगर है इसलिए ज्यादा देर भूखा नहीं रह सकते।। सुमित्राजी राशि से कहती हैं ,जैसे ही सुमित और राशि स्कूल के लिए निकलते है, सुमित्रा जी अपने बेटे को रमेश जी की दवाई की पर्ची थमाते हुए कहती हैं- बेटा तुम्हारे पापा की दवाई आनी है बस आज रात की ही बची है और थोड़े से फल भी जरूर ले आना,
इससे पहले सुमित कुछ कहता राशि कहती है, मम्मीजी दवाई क्या कम पैसों की आती है जो फल खाने भी जरूरी है, फलो का दाम आसमान छू रहा है, सुमित राशि को आंख दिखाता हुआ कहता है- राशि में अपने माता-पिता की जिम्मेदारी उठाने में सक्षम हूँ
तुम्हें उन्हें कुछ कहने का अधिकार नहीं है क्योंकि मैं अपने माता-पिता के लिए कभी तुमसे कुछ करने के लिए जबरदस्ती नहीं की है – कहते हुए दोनों आफिस के लिए निकल जाते हैं, सुमित्राजी जल्दी से रमेश जी के लिए नमकीन दलिया और अपने लिए चाय और नाश्ता लेकर पति के पास जाती हैं तो पति की आँखों में आँसू देखकर तड़प जाती हैं।
अपने हाथ का सहारा देकर उन्हें बैठाती हैं, और पकड़कर वाशरूम तक लेकर जाती है, मुँह-हाथ धोकर ‘आराम कुर्सी पर उन्हें बैठाती हैं और, दलिया खिलाती है, दरअसल 2 महीने पहले ही रमेश जी को अचानक पैरालाइसिस का अटैक आ गया था, जिसकी वजसे उनके शरीर का आधा हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था लेकिन तुरंत हीअच्छा उपचार और सेवा मिल जाने के कारण धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य सुधरने लगा था।
सुमित्रा जी ने अपने घुटने के दर्द के बावाजूद उनकी सेवा मे कोई कसर नही छोडी थी। सुमित उनका इकलौता बेटा है। 2 महीने में इलाज महंगा होने के कारण बहुत पैसे लग गये थे, रमेश जी की पेंशन भी नहीं थी जो जमा-पूंजी थी बीमारी में लग गयी थी, ले देकर एक घर ही बचा है अब उनके पास, बेटा अपने माता-पिता का ध्यान तो पूरा रखता है
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लेकिन उनके अपने भी सभी खर्चे हैं। बहू बेटा दोनों ही एक ही स्कूल में पढ़ाते हैं। पीछे से सारा काम सुमित्राजी ही देखती है फिर भी उनकी बहू उन्हे कुछ ना कुछ कहती ही रहती है, लेकिन अपने बेटे की गृहस्थी खराब ना हो इसी लिए वे चुप रहती है। इस पर रमेश जी सुनिताजी से कहते हैं सुमित्रा मेरे कारण तुम्हे बहू के ताने भी सुनने पड़ते हैं और घुटनों के दर्द के बाद भी काम का कितना बोझ है तुम पर और फिर मेरी ऐसी बीमारी, मुझे मर क्यों नहीं जाने दिया कहते हुए फूट-फूट कर रोने लगते हैं,
सुमित्रा उनके मुँह पर हाथ रखती हुई कहती है- शुभ शुभ बोलो जी, मेरी हिम्मत तो आप हो, “आप टेंशन मत लीजिए ,वैसे भी मुझे तो आदत हो गई है इन सबकी ” मैं आपको देखकर अपनी बीमारी और थकान सब कुछ भूल जाती हूं, न जाने कहां से इतनी हिम्मत आ जाती है कि मैं इतना सारा काम बिना थकान के कर लेती हूं
वैसे भी हमारा बेटा तो हमारा ध्यान रखता है , बहू की बातों को हमें मन से नहीं लगाना चाहिए आजकल तो बच्चे वृद्ध आश्रम में अपने मां-बाप को पहुंचा देते हैं हमारे बच्चे तो फिर भी हमारा बहुत कर रहे हैं। और वैसे भी मेरे होते हुए आपको किसी बात की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। आप ठीक रहोगे तो मैं भी ठीक रहूंगी।
पूजा शर्मा
“वाक्य कहानी प्रतियोगिता”
पूजा जी ,
नमस्कार। यह कहानी मेरी मां के जीवन से मिलती है इसको पढ़ते समय मां और भाई मानस चित्रपटल पर उभर आए। ऐसा लगा कि यह कहानी मेरी मां ने ही लिखी हो।