“देख रहे हो कैसे तुम्हारी माँ मुझे श्राप दे रही हैं और तुम कहते हो इसकी सेवा करने,मैं जीते जी इनकी कभी सेवा नही करूँगी “लीला गुस्से मे बडबडा रही थी रमेश काम से लौट ही था आँगन मे साइकिल खड़ी ही की थी ।
यह रोज की किच किच थी माँ आज कई सालो से बिस्तर पर थी लीला भी इतने सालो से सास की देखरेख करते करते थक चुकी थी कभी कभी खाना बनने मे देर हो जाती तो कभी उनको नहलाने मे या कभी दवाई देने मे तो माँ लीला पर चिल्लाने लगती बुरा भला कहती जिससे लीला गुस्सा जाती थी बार बार कहती मुझसे नही होगा इनकी सेवा एक तो इनकी इतनी देखरेख करो ऊपर से येह श्राप देती हैं ।
रमेश खुद अपनी माँ की सेवा उतनी अच्छी तरह से नही कर पाता जितने अच्छी तरीके से लीला करती हैं फिर भी माँ उससे झगड़ती हैं माँ भी चिड़चिडी हो गई हैं इतने सालो से बिस्तर पर पडे पडे,आज तो लीला माँ के पास नही जाने वाली रमेश ने खुद ही माँ को खिलाया पानी दवाई सब कुछ देकर आया,जब तक कमरे मे आया लीला सो चुकी थी।
सुबह रमेश की देर से नींद खुली,लीला माँ के कमरे मे थी माँ को साफ सुथरा कपडे पहनकर बिस्तर साफ करके चाय पिला रही थी,दवाई देकर जैसे ही फिर से लिटाने लगी तो माँ लीला को आशीर्वाद कर रही थी “तू अगले जन्म मेरी बेटी बनके आना तू तो मेरे बेटे से बढ़कर हैं”
अच्छा कल बुरा भला कह रही थी आज फिर से कह रही हो अगले जन्म मे बेटी बनने के लिए”
अरे तेरी सास बूढ़ी हो गई हैं यह बिमारी ने तो जिन्दगी खराब कर दी हैं न जाने गुस्से मे क्या कह देती हुँ तू बुरा मत मान,अपनी माँ जैसी समझ कर माफ़ कर देना ऐसा करुँ तो”
“माँ जैसा क्यूं माँ ही तो बन गई हो आप इतने सालो से मेरी, जितना भी नाराज रहूँ दूर नही रह सकती आपसे”
रमेश बाथरुम की तरफ चला गया यह सोचते हुए की कुछ दिनो के लिए तो माँ लीला का झगड़ा बन्द हुआ!
सास बहू मे इस तरह के किससे होते रह्ते हैं वह आपस मे झगड़ते जरुर हैं लेकिन एक दुसरे के बिना रह भी नही पाते हैं।
मौलिक स्वरचित
आराधना सेन