पहली बार अपने पापा के के लिए कुछ लिखने जा रही हूं,, मेरे पापा,, श्री बी. पी. सक्सेना,, एक ईमानदार, कर्तव्य निष्ठ, अफसर थे,,, बहुत ज्यादा शांत,,, सरल,, व्यवहार था पापा का,, उनकी दुनियां,, बस कलेक्ट्रेट तक जाना और लौटकर,,, एक बार अपने सभी बच्चों से मिलना, पढाई का पूछना,, बस यहीं तक सीमित था,,
मम्मी बताती थीं,, पापा बहुत खुबसूरत कविताएं लिखते थे, और मम्मी उन कविताओं की राग बनाया करती थीं,,, इतनी प्यारी कवितायें,, कि आज़ भी गुनगुनाती हुं तो खो जाती हूं।
पापा मम्मी की बहुत इज्ज़त करते थे, मेरी मम्मी,,,,, । राजस्थान रियासतों में दीवान के पद पर सुशोभित रहे,,, दीवान गुलाब राय सक्सेना की बड़ी बेटी,, सरला सक्सेना थीं ।
मेरे पापा ने मम्मी को हमेशा बराबरी का दर्जा दिया,, हर काम,, मम्मी की सलाह से ही पूरा करते थे,, ऐसे में मम्मी का सिर्फ,, 54 साल की उमर में उनसे दूर चले जाना,, पापा बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया,,, मेरा दिल कचोटता,,, क्यों मम्मी को ऑपरेशन के लिऐ मैने इन्दौर बुला लिया, मैं कितनी अभागी बेटी थी,,,
कि मेरी मां की अर्थी मेरे घर से उठी,,,,, इस बात की कसक मुझे आज भी है,,,। मम्मी की मृत्यु के बाद,, पापा को छोटे दोनो भाई, जबलपुर ले गए ,,,, भाई भाभी,, छोटी बहन,, सभी पापा का ध्यान रखते पर,, पापा में तो जीने की इच्छा ही खत्म हो गई थी,, कोई उत्साह ही नहीं बचा था उनमें,,, किस्मत से पतिदेव का ट्रांसफर जबलपुर हो गया ,,,,
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और जीजी भी उन दिनों जबलपुर में ही थी,, कुछ कुछ दिनों के अंतराल से हम दोनों बहनें साथ ही चले जाते ,,,सबके साथ पापा से भी मिल आते,, उनकी पसन्द की चीजें बनाकर ले जाते,, और खिला आते। पापा ,,,मम्मी के इतने आदी हो चुके थे कि उनके बिना जीना ही उन्हें गवारा न था।
बिल्कुल एकाकी, चुप हो गए,,, जितनी बात करो बस उतना जवाब देते,, फिर ,, चुप हो जाते,,,, इतनी रौबीली शक्सीयत वाले पापा को देखकर खून के आंसू रोते हम पर कुछ न कर पाते।
मेरा लगाव,, बचपन से पापा की तरफ़ बहुत ज्यादा था,, पापा को हाई शुगर थी,, वाकर की सहायता से चल पाते थे,,, मैं पापा से पूछती,, पापा कैसा लगता है ,अभी आपको,, पापा फीकी सी मुस्कुराहट से कहते,,, बेटा,,, ऐसा लगता है,, मैं फटाफट उठकर ,,,,अपने सभी काम कर लूं,, किसी की हेल्प न लूं,, पर लाचार हो गया हूं,,,
पापा को अच्छा साहित्य पढ़ने का बहुत शौक था,,, शायद उनका ये शौक मुझे उनसे विरासत में मिला है।
8 फरवरी ,, मेरे पापा का जन्मदिन,, उसके पहले ही हम सब भाई बहनों ने प्लानिंग करना शुरु कर दीया था,,, मैं ग्रीटिंग ले आई,,, पापा के लिए अपनी सुन्दर भावनाएं लिखी,,, दोनो बच्चों ने अपने नाना के लिऐ सुन्दर कार्ड बनाए उसमें पेंटिंग की,,, मैं पापा के लिए इंग्लिश नोवल लाई,,, ,,, पापा के लिए ये शतरंज लाए, वो बहुत अच्छी शतरंज खेलते थे,,,
शाम से ही पूरी गिफ्ट्स पैक कर ली और दूसरे दिन के इंतजार में करीब 11 बजे हम सो गए,,,, रात करीब 1 बजे,, लगातार फोन की कर्कश आवाज़ ने नींद से उठने को मजबूर कर दिया,,,, भाई ने जीजी को बताया,,, और जीजी ने मुझे,,,, मंजू,,, जल्दी आओ,,, मैं घबरा गईं,, क्या हुआ जीजी,,, सब ठीक है न???? वो बस बोले जा रहीं जल्दी आ जाओ,,,,
जब असहनीय हो गया तो फूट फूट कर रो पड़ी,। मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया, मैं बोले जा रही,,,, मेरे पापा को कुछ नहीं हो सकता,,,, आज तो उनका जन्मदिन है,,,, इतनी देर में इन्होंने बच्चों को गर्म कपड़े पहनाए टोपे लगाए, कड़ाके की ठंड, थी,,,, स्कूटर से हम भाई के घर के लिए निकले,,,,,,, असहनीय था अपने मृत पिता को नीचे लेटा हुए देखना,,
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भाई ने बताया रात ठीक 12 बजे उसने पापा को जन्म दिन विश किया,,, पापा ने Thx कहा,,, भाई ने अच्छे से रजाई उढ़ाई उन्हें,,, और गुड नाईट कहकर लाइट बंद कर अपने घर में आ गया,,, भाई बोला न जाने क्यों मुझे कुछ ठंडापन सा महसूस हुआ ,,,, जैसे ही पापा के कमरे में आया,,, ठंडापन और ज्यादा महसूस हुआ,,,,। जैसे ही लाइट ऑन की,,,
देखा पापा शान्ति से आंखे बंद करके सोए है,,, पर कोई आहट नहीं है,,,, तुरंत Dr को बुलाया डॉक्टर के अनुसार शुगर के मरीज होने के कारण साइलेंट अटैक आया,, और पापा को हम सबसे दूर ले गया,,, मातृ हीन तो ही चुके थे,, पितृ हीन भी हो गए,,,, मात्र 67 बर्ष की उमर में पापा चले गए,,, गए भी अपने जन्म दिन के दिन।
कहते हैं ,,, बड़ी पुण्य आत्माएं होती हैं,, वो,,,जिनका,, जन्म और मृत्यु दिवस एक ही दिन होता है,,, पापा के लिए लाई गईं, सभी गिफ्ट्स, उनकी अर्थी पर रखी गईं,,, सोचा न था,,,, इस तरीके से पापा को उपहार देंगे हम।
भावनाओं में बहकर ,,,,भूल ही गईं की फादर्स डे पर मुझे लेख लिखना है,,, मैं तो अपने पापा को ही लिख गई ।
प्रीती सक्सेना
मौलिक
इंदौर