मेरे पापा – Dr रूपल श्रीवास्तव

मैं अपनी मम्मी प्रीती सक्सेना की लेखनी के माध्यम से,,,, अपने पापा,,, महेश सक्सेना जी के बारे में कुछ बताना चाहूंगी,,,

यूं तो हर पिता अपनी बेटी के लिए,, बहुत खास,,, बहुत स्पेशल होते हैं,,, पर मेरे पापा मेरे हीरो हैं,,,

  जबसे होश संभाला है,,, उन्हें अपने बारे में ही सोचते पाया है,, मेरे भैया,,,, स्वप्निल से तीन वर्ष बाद मैं अपने मम्मी पापा और भाई के जीवन में आई,,, मैने आकर अपने परिवार को पूर्ण किया,,, बचपन से मैं अपने पापा की डॉल,, प्रिंसेस रही ।

मेरे पापा हम दोनो भाई बहनों की पढाई को लेकर बहुत ज्यादा सतर्क रहते थे,,, पढाई को लेकर। जो भी जरूरतें होती,,, आधी रात को जाकर लेकर आते,,, कभी आलस नहीं किया।

  छोटी और लाडली होने का भरपूर फायदा उठाया मैंने,, भाई की कोई भी चीज उससे पूछे बिना ले लेती,,,, और उन्हें दिखाकर चिढ़ाती और भाग जाती,, जाकर पापा के पास बैठ जाती,,, भाई गुस्से भरी आंखो से खड़ा खडा मुझे घूरता रहता,,,, और मैं मासूमियत से पूछती,,, क्या हुआ भाई,,,, पापा भाई को देखते,, और कहते,, यहां  क्या कर रहे हो बेटा, जाओ जाकर पढाई करो,,,, भाई गुस्से में पैर पटकता, चला जाता ,,, और मैं अपनी सफलता पर खूब हंसती ,, खूब चिढ़ाती

  पढाई में बहुत अच्छी होने का पूरा, पूरा फ़ायदा उठाती,,, पापा मेरी हर फरमाइश। खुशी खुशी पूरी करते।

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प्रीती सक्सेना स्वलिखित

जब पापा टूर से लौटते,,, बस मेरी चालाकियां आसमान छूती,,, पापा मम्मी ने बहुत बुरी सब्जी बनाई है,, मैं तो खा लूंगी,, पर आप नहीं खा पाएंगे,,, पापा प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ बोलते। क्या खाना है,,, और मैं फटाफट अपनी लिस्ट पकड़ा देती,,, भाई दूर से घूरता रहता मुझे,, और मम्मी से शिकायत करता,, मेरे,, मम्मी पापा ने बेटा ,बेटी में कोई अन्तर,,, कोई भेद कभी नहीं किया,, मेरे घर में दो पार्टी बन गई थी,, एक मेरी और पापा की,, और दूसरी स्वप्निल भैया की और मम्मी की।

पापा हम दोनो भाई बहनों के आइडियल रहे हमेशा,, साधारण परिवार में जन्म हुआ,, कठिनता से पढाई हुई उनकी,, पर उनकी सोच,, उनके विचार,,, इतने,, असाधारण थे,, की हम खुद ताज्जुब में पड़ जाते थे,, बहुत स्मार्ट, इंटेलीजेंट मेरे पापा,, कोई काम उनके लिए असंभव नहीं,, हर बात के लिए एकदम तैयार।

   हम इंतजार करते पापा के टूर से आने का,,, जिससे बाहर जाएं,, घूमें,,,डिनर पर जाएं,, मम्मी रोकती,,, आज ही थके आए हैं,, कल चलेंगे पर मेरे पापा,, रेडी,,, चलो आज बाहर चलते हैं,,, ऐसे में मैं मम्मी के गुस्से का पात्र भी बन जाती,,, पर मैं तो अपने पापा की पक्की चमची,,, इतनी ज्यादा चमची की कार में भी मेरी सीट पापा के पीछे वाली रिजर्व रहती थी,,, और भाई,, मम्मी के पीछे,,, मम्मी का लाड़ला बेटा जो था,,, अभी भी है

पीएमटी की कोचिंग और पढाई के समय मेरे पापा ने जमीन आसमान एक कर दिया,,, कभी भोपाल लेकर एग्जाम दिलाए, कभी दिल्ली,,इंदौर,,,।


मेरा एमबीबीएस में सिलेक्शन नहीं हुआ,,, मैं बुरी तरह टूट गई निराशा हो हो गई,,,, ऐसे में में मेरी मम्मी मेरा भैया और मेरे सबसे बड़े आधार स्तंभ ,,,मेरे पापा ने मुझे संभाला,, चेंज के लिए बाहर घुमाने ले गए हमें,, पूरी तरह पॉजिटिव कर दिया,,, काउंसलिंग में मेरा सिलेक्शन  मध्य प्रदेश के सबसे शानदार,, डेंटल कॉलेज में हुआ,, मैंने पूरे आत्मविश्वास के साथ। ऐडमिशन लिया।

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पढाई पूरी हुई,, मैं पराई हुई,, पापा ने खुश होकर ,, मुझे बिदा किया,,, उस दिन मैंने अपने पापा को फूट फूट कर रोते देखा,, ईश्वर मुझे मेरे परिवार से दूर नहीं करना चाहते थे,,, इसलिए,, मुझे इंदौर के नजदीक शहर की ससुराल दी।

 भाई मेरा गुजरात में पोस्टेड है,, थोड़ा सा दूर है,, ऐसे में भाई के फर्ज भी मेरे पापा निभा देते हैं,, इसलिए मैं उन्हें बचपन से राखी बांधते आई हूं,,,

ईश्वर को हमेशा धन्यवाद देती हूं,, मुझे इतना प्यारा परिवार दिया,, यही प्रार्थना करती हूं,, अगले जन्म में भी मुझे यही पिता मिलें,,, क्योंकि अंतरात्मा से हम एक हैं ।

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