मेरे माँ-बाप की इज्जत नहीं करोगी तो तलाक लेलो

भानु और पति रमेश ने बहुत ही गरीबी में अपना समय बिताया. लेकिन अपने बेटे की परवरिश में कभी कमी नही की. रमेश फल और सब्जियों का ठेला लगा कर घूम घूम कर बेचता और भानु लोगों के कपड़े सिलाई कर घर चला कर भी अपने एक बेटे कृपाल की पढ़ाई करवाई. और बेटे ने भी अपने माता पिता के परवरिश का अच्छा मान रखा. वह अब एक बड़ी सी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता और धीरे धीरे उसने एक बड़ा सा घर भी लिया और घर में सारी सुख सुविधाओं के साथ साथ गाड़ी भी ले ली. देखते ही देखते कृपाल की गिनती अमीर परिवारों में होने लगी.

फिर जैसे ही उसकी उम्र शादी की हुई तो मां पिताजी की बड़ी इच्छा थी की अपने बेटे की शादी एक अमीर पढ़ी लिखी और ऊंचे खानदान में हो.  ऐसे में सबकुछ देख परख कर रमेश और भानु अपने बेटे की शादी अमीर खानदान की बेटी तृषा से करवा देते है. फिर क्या था, तृषा अपने अमीरों वाली हरकतें करती और कृपाल को वह पसंद नही आता. लेकिन एक दिन

“देखिए  आप ने मुझे अगर पहले बताया होता कि आपके साथ-साथ घर में मां बाबूजी की भी सेवा करनी है तो मैं इस घर में कभी शादी नहीं करती मुझे तो बताया गया था कि बस पति की सेवा करनी है…”

“हां तो तुमसे किसने कह दिया की मां बाबूजी की सेवा करनी है, वह तो खुद ही अपना देखभाल करने में सक्षम है, और ज्यादा देखभाल मैं कर लूंगा तुमको तो सिर्फ घर का काम ही करना है ना फिर तुम ऐसा क्यों कह रही हो!”

दरअसल तृषा को अपने सास ससुर की सेवा करने में दिक्कत नहीं थी बल्कि उसको तो इस घर में उनके रहने से ही दिक्कत थी. ऐसे में वह हर आए दिन एक नया बखेड़ा खड़ा करती और अपने सास ससुर को इस घर से निकालने क नए तरीके आजमाती. लेकिन कृपाल के रहते यह कभी मुमकिन नहीं हो पाता था ऐसे में कुछ महीने ऐसे ही बीत जाते है और सुबह एकदम से तृषा चिल्लाती है,

“अरे मेरी साड़ी को किसने हाथ लगाया पता है कितनी महंगी साड़ी है पूरे बीस हजार की साड़ी है ऐसी साड़ी तो तुम लोगों ने सपने में भी नहीं देखी होगी!! उफ्फ पता नहीं कैसे गँवारों  के घर मेरे बाबा ने मेरी शादी करवा दी है. तृषा की आवाज सुन भानु अपने बेटे के कमरे में दौड़ती भागती हुई आती है और अपने बहू से कहती है,




“बेटा दरअसल तुमने ही तो कहा था ना कि साड़ी को ड्राई क्लीन में देना है तो बस मैंने वही तुम्हारी साड़ी अलमारी में से ड्राइक्लीन में देने को ही बाहर निकाली थी…”

“लेकिन माँ जी आपको मेरी चीजों को छूने की कोई जरूरत नहीं है जो करना होगा मैं खुद ही कर लूंगी… और वैसे भी आप दोनों को कहां शर्म आ रही है एक बेटे पर बोझ बनकर आप दोनों पूरा दिन घर पर बैठकर मुफ्त की रोटियां तोड़ रहे है!”

बहू की यह बात सुन भानु और रमेश को बहुत दुख होता है और वह उसी दिन से भानु पहले की तरह ही कपड़े सीना चालू कर देती है. और रमेश भी अपना ठेला लगाकर सब्जियां बेचना चालू कर देता है. इतने में नौकरी के सिलसिले में बाहर गया हुआ बेटा कृपाल घर लौटता है तो घर की यह हालत देखकर वह समझ जाता है कि जरूर उसकी पत्नी ने कुछ बखेड़ा किया होगा जो उसके मां-बाप फिर से वही जिंदगी जी रहे है जो पहले उनकी थी. ऐसे में पति कृपाल अपनी पत्नी से साफ-साफ कह देता है,

“देखो  तृषा बस अब बहुत हो गया अगर तुम्हें इस घर में अच्छे से नहीं रहना और मेरे मां पिताजी की इज्जत नहीं करनी तो तुम खुशी-खुशी इस घर से जा सकती हो और कहोगी तो मैं तुम्हें तलाक भी दे दूंगा, लेकिन अपनी मां पिताजी की ऐसी हालत मैं नहीं देख सकता…”

पति कृपाल की यह बात सुन तृषा भी उसी दिन अपना सामान बांध कर अपने मायके चली जाती है तो वापस नहीं लौटी. और फिर कुछ ही दिन में दोनों का तलाक हो जाता है. और ऐसे ही कुछ साल बीत जाते है.

अब कृपाल अकेला ही अपने मां-बाप को भी देखता है. और ऐसे में भानु पूरे घर को संभाल लेती है. और एक दिन वह अपने बेटे से कहती है,




“बेटा अब मेरा शरीर भी तो बूढ़ा हो रहा है अब कितने दिन मैं तुझे रोटियां बनाकर खिलाऊंगी!! तू दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेता जरूरी थोड़ी ना है कि एक पत्नी बुरी आई तो दूसरी भी ऐसी ही होगी…”

अब मां की बात को कृपाल नहीं टाल सकता था. और उनकी बात मान वह एक सामान्य परिवार की लड़के नमिता  से शादी कर लेता है. और नमिता के घर आते ही खुशियां फिर से लौट आती है. नमिता कृपाल की पहली पत्नि तृषा से एकदम विपरीत थी. वह अपने सास ससुर के पिछले जीवन के बारे में सब जानती थी. इतना ही नहीं नमिता अपने पति का भी पूरा साथ देती. उसके घर में कदम रखते ही कृपाल को मल्टीनेशनल कंपनी का सीईओ बनाया जाता है. इस लिए घर में उसे एक लक्ष्मी का रूप ही मानते. अब तो शहर में कई अमीर घरों और खानदानों में उनकी गिनती हो रही थी. उधर तृषा जो कृपाल से तलाक लेकर दूसरी शादी करके बैठी थी वह अब दो बच्चों की मां थी. लेकिन फिर भी उसके व्यवहार के कारण वहां भी वह उतना ही परेशान रहती थी और अपने ससुराल वालों को भी परेशान करती.

ऐसे में दिन गुजरते गए सालों बीत गए. और अब भानु और रमेश की मृत्यु हो जाती है. लेकिन नमिता और कृपाल का एक बेटा भी होता है जो की वह भी बहुत ही बड़ा काबिल बिजनेसमैन होता है. लेकिन वह अक्सर अपने काम के सिलसिले में ज्यादातर विदेश में ही रहता है.

ऐसे में कृपाल और नमिता एक दिन एक वृद्ध आश्रम में दान धर्म का काम करने की सोचते है, जो कि वह हर महीने एक बार तो वह वृद्धाश्रम या शहर के बाल घर में जाकर दान किया करते थे. और ऐसे ही एक दिन जब वह वृद्धाश्रम गए तो कृपाल की मुलाकात उसकी पहली पत्नी तृषा से होती है, जो की उसकी हालत बुरी हो चुकी थी… बूढ़ी और बेसहारा हो कर आश्रम  में रह रही थी. और यह सिर्फ उसके गलत व्यवहार के कारण ही वह आज एक वृद्धाश्रम में रह रही थी. उसकी हालत देखकर कृपाल उससे पूछता है,

“तृषा तुम्हारी ये हालत कैसे! तुमने तो दूसरी शादी कर ली थी ना और मैंने तो सुना था कि तुम्हारे दो बेटे भी है, फिर तुम आज यहां!”

“बस और क्या कहूं कृपाल जी, मैं आज वही हूं जहां मेरी सही जगह है…” बस इतना कह कर बूढ़ी और बेजान तृषा उपहार लेकर वहां से चली जाती है. और कृपाल तृषा को पीछे से बस देखता ही रहता है, तो कुछ देर तक वह वहीं रुक जाता है.

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!