नीतू बाथरूम से नहा कर निकली तो लाइट बन्द करना भूल गई, वह पूजा कर रही थी तभी उसकी सास कमलाजी ने बड़बड़ाना शुरू किया कि “बत्ती ऐसे जलाकर छोड़ देती है जैसे बिजली मुफ्त में आती है, बिल भरना पड़े तो पता चले”|
नीतू मायूस होकर सुनती रही, पूजा करते हुए उसकी ऑंखें भर आयीं| नीतू की शादी को 3 साल हुए थे, 2 साल तक सब ठीक चला फिर अचानक उसके पति अक्षय की नौकरी छूट गयी| दोनों बेहद परेशान थे| नीतू का बेटा अभी 6 महीने का था| अक्षय के बहुत कोशिशों के बाद भी जब नई नौकरी नहीं मिली तो उसने अपने पिता मुकेशजी से बात करके घर लौटने का निर्णय किया| मुकेशजी ने अपने पुत्र को ढांढस बंधाया कि तुम यहाँ आ जाओ और दूसरी नौकरी की तलाश करो, परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है| उनके मन में कहीं न कहीं ये डर था कि अक्षय कहीं अवसाद में न घिर जाए,इसलिए वे यथासंभव सहयोग कर रहे थे बेटे और बहू को|
नीतू अपने ससुर का बहुत सम्मान करती थी| वो स्वभाव से अंतर्मुखी थी,जल्दी अपनी बात किसी से नहींं कह पाती थी, बड़ों को पलट कर जवाब देना उसके संस्कारों में नहीं था| कमलाजी नीतू को सुनातीं कि जब उनकी शादी हुई तो उनके आने के बाद मुकेश जी की तरक्की होती गयी पर कोई बहुएँ ऐसी आती हैं कि पति का कामकाज चौपट हो जाता है| नीतू को यह बातें बाण की तरह सीधे हृदय बेधी लगतीं, वो तो पहले ही परेशान थी और कमला जी समय-समय पर सुई चुभोती रहतीं| आर्थिक परेशानी के कारण मुकेश जी ही बेटे और बहू का खर्च उठाते थे और कमला जी एहसान की परतें चढ़ाती जातीं, नीतू का आत्मसम्मान कुचलता रहता|
जब नीतू कहीं बाहर जाने को निकलती तो कमलाजी दो चार सामान लाने को कहकर बोलतीं “अरे तुम्हारे पास पैसे तो होंगे नहीं, चलो मैं देती हूं, वैसे भी अब तो दोगुना खर्च हो गया है, पता नहीं कैसे चलेगा”| नीतू के आत्मसम्मान को फिर से झकझोर दिया था कमलाजी ने| वो वहाँ से चली गई|
इस कहानी को भी पढ़ें:
मुकेशजी बहू की व्यथा उसके चेहरे से पढ़ कर पत्नी से बोले- “क्यों हर बात का एहसान जताती हो तुम बहू से??वो इस घर की सदस्य है तो फिर क्यों उसके स्वाभिमान पे चोट करती हो,इस समय हमारे बच्चों का कठिन समय है, उनको हमारी ज़रूरत है, हम मदद नहीं करेंगे तो कौन करेगा?भगवान की कृपा से हमारे पास सब कुछ है, किसी तरह की कोई कमी नहीं है फिर भी तुम उनका मनोबल बढ़ाने के बजाय तोड़ रही हो|”
कमलाजी पति का मिज़ाज देखकर चुप रह गई पर सुधरने वाली कहाँ थी|
अगर कभी खाना बच जाता तो कमलाजी तपाक से कहती- “मुफ़्त का सामान है तो बर्बाद किये रहो, अपनी रकम लगती तो पता चलता”| ऐसे ही कटु वचन प्रतिदिन नीतू को सुनने पड़ते थे, क़भी कभी तो कमलाजी अक्षय को भी सुना देती थीं| बहुत मानसिक वेदना से गुज़र रही थी नीतू, एक तो पति को तनाव में देखती ऊपर से सासूमाँ आत्मसम्मान चोटिल करने में न चूकतीं| छोटे बच्चे की वजह से नौकरी भी नहीं कर पा रही थी|
आये दिन कमलाजी नीतू के सामने अपनी प्रशस्ति गाती कि पहले इस घर में कुछ भी नहीं था, वो तो मेरे कदम रखते ही घर का नक्शा बदल गया,पर तुम्हारे कदम शायद अक्षय के लिए शुभ नहीं है तभी तो उसके साथ सब लोग परेशान हैं| नीतू मन ही मन सोचती की इसमें मेरी क्या गलती? ये तिरस्कार भरा जीवन मैंने तो नहीं चुना| इतना कहने के बाद कमलाजी ने बेटी के भाग्य का बखान करना शुरू किया- “ऋचा भी अपने पति के लिए बड़ी भाग्यवान है, उसके जाने के बाद दामादजी का व्यापार बढ़ता ही जा रहा है|”
नीतू अपनी तरफ किया हुआ इशारा समझ गयी,अपने घायल आत्मसम्मान पे आंसू रूपी मरहम लगाने अपने कमरे में चली गई|
सुनते रोते, समय बीत गया, 8 महीने बाद अक्षय की नौकरी मुम्बई में लग गई| मुकेशजी ने कहा कि पहले जाकर रहने की व्यवस्था कर लो फिर नीतू और बच्चे को ले जाना| अगली ही रात को अक्षय निकल गया, 4-5 दिनों में उसने घर भी ढूंढ लिया और नीतू से कहा कि 10 दिन बाद तुम्हे लेने आऊँगा|
4-5 दिनों बाद ऋचा अपनी बेटी के साथ आई, बेटी और नातिन को अचानक देखकर कमलाजी खुशी से झूम उठीं| पर अगले ही पल ऋचा की उदासी पढ़ ली उन्होंने| पता चला कि ऋचा के पति का व्यापार में बहुत घाटा हुआ है, बहुत कर्ज़ हो गया है, पाँच में से तीन शोरूम बिक चुके हैं| ये सब सुनकर कमलाजी और मुकेशजी पर मानो वज्रपात हो गया कि एक औलाद कष्ट से उबरी और दूसरी उलझ गयी|
इस कहानी को भी पढ़ें:
ऋचा ने बताया कि उसकी सास उसे बहुत ताने देती हैं, कोई आर्थिक मदद करती हैं तो दोगुना एहसान जताती हैं, मेरे आत्मसम्मान पर रोज़ चोट करती हैं| पर आश्चर्य ये था कि कमलाजी के विचार एकदम बदल गए थे| वो बोलीं- “तुम्हारी सास को इतनी अकल नहींं है ऐसे समय में बहू और बेटे को भावनात्मक सहारे की ज़रूरत होती है, उन्हें तो तुम दोनों के साथ खड़ा होना चाहिये था”|
बस नीतू से रहा नहींं गया, उसके सब्र का बाँध टूट गया वो ऋचा के सामने बैठकर बोली- “मम्मीजी आज आपमें इतनी समझदारी कहाँ से आ गयी?कल तक जब मैं इसी परिस्थिति में थी तब आपने मेरी मनोदशा क्यों नहीं समझी कि मुझे भी भावनात्मक सहारे की ज़रूरत है| दूसरे के आगे हाथ फैलाना बहुत पीड़ादायक होता है, मैंने 8 महीने इस दंश को सहा है| मेरा आत्मसम्मान जो लहुलुहान पड़ा है, वो क्यों नहीं देख पायी आप??? क्या आत्मसम्मान का आंकलन भी रिश्ते के हिसाब से किया जाता है, मैं बहू हूँ तो मेरा आत्मसम्मान नगण्य है|
नीतू ऋचा से बोली- “दीदी मुझसे बेहतर आपकी पीड़ा कोई नहीं समझ सकता, आप धैर्य रखिए सब ठीक हो जाएगा,हम सब मिलकर इस कठिन समय को पार कर लेंगे|”
मुकेशजी अपनी पत्नी से बोले- “एक बात जान लो कमला, मानुष बली नहींं होता है, समय बलवान होता है| आज जब बेटी पर संकट आया तो तुम्हारा नज़रिया एकदम बदल गया, पर यह भी सोचो कि तुमने बहू और बेटे को कितनी ठेस पहुचाई है| ये टीस ताउम्र इनके दिल में रहेगी| आज ऋचा की सास और तुममें क्या फर्क रह गया?”
कमलाजी आत्मग्लानि से भर उठी थीं, उन्हें अपराधबोध हो रहा था कि बहू के साथ उनकी करनी की भरपाई उनकी बेटी कर रही थी| और मन में वो दृढ़ निश्चय कर चुकी थीं अपनी बेटी की स्थिति संभालने की और बहू के दिल में अपने लिये प्यार और सम्मान भरी जगह बनाने की|
दोस्तों, हम जो दूसरे को देते हैं,समय वही हमें या हमारे प्रिय को वापस लौटाता है| तो क्यों न प्यार और सम्मान दिया जाए और शेष बातों को नकार दिया जाए|
– सिन्नी पाण्डेय