“मेरा गाँव मेरा देश ‘ – सीमा वर्मा

साथियों नमस्कार 🙏

इन दिनों मैं अमेरिका प्रवास पर हूँ।

जहाँ के बड़े- बड़े घर ,शांत-चौड़ी धूल रहित सड़कें , हर वक्त चारो तरफ फैली अपूर्व शांति 

बैकयार्ड में बना विशाल स्वीमिंग पुल जो नदी के किनारे जैसा एहसास  दिलाता है।

मैं जब कभी उसके किनारे लगे हुए झूले पर बैठ 

आँखें मूंद लेती हूँ तो बिल्कुल ‘सतयुग ‘ वाली  फीलिंग आने लगती है। 

लेकिन क्या सच में जा पाती हूँ  उस युग में ?

‘ जबाव ! नहीं ! कहाँ जा पाती हूँ ?

 कहीं दूर नेपथ्य में ध्वनि गूंजती है,

‘ ऐ मेरे प्यारे वतन तुझपे दिल … ‘

अपना वतन ,अपनी जमीं कितनी शिद्दत से याद आने लगते हैं। 

बहरहाल … आज भी दिन के करीब एक बजे इसी मनःस्थिति में उलझी हुई बैठी थी।

 कि अचानक मेरी नजर सड़क के उस पार मंझोले कद, श्याम वर्ण की पैंट-शर्ट  पहनी हुई महिला पर जा टिकी।

पिछले दो-तीन दिनों से उन्हें लगातार यूँही घूमती हुई देख कर मेरी नारी सुलभ जिज्ञासा जोर से उछालें लेने लगी। 

बिटिया की पड़ोसन थीं लेकिन इसे कहाँ फुर्सत कि अगल-बगल झांके।

वे भी आते-जाते जिज्ञासा से मुझको निहारा करतीं सो उस दिन मैं ही निकल पड़ी … यह सोचती हुई कि परदेश में कोई तो मिला बतियाने को।

बहुत खुश हुईं, वे भी मुझको अपनी ओर आते देख कर ,

‘ हैलो, गुड आफ्टरनून ‘ 

कहती हुई मेरी ओर अपने हाथ मिलाने को बढ़ा दिए।

दिमाग पर कोरोना का डर अभी भी हावी है लिहाजा मैंने ,

‘ नमस्कार ‘ कहते हुए संकोचवश दोनों हाथ जोड़ दिए।

जिसे अपनी छोटी-छोटी अनुभवी आंखों से भांपती हुई वे हँस पड़ी,

 ‘ हृए … आर यू… अनु ‘स मॉम ?

शी टोल्ड मी अर्लीयर दैट यू आर कमिंग टू हर फौर समर ब्रेक’

‘ ओ या! आई एम ‘ उनकी वेशभूषा से तो नहीं पर अंग्रेजी बोलने के लहजे से जरूर समझ गयी थी । 

ये वे ही ‘कोमला आंटी’  बिटिया की पड़ोसन हैं जिनके बारे में कल बिटिया  बातें कर रही थी। 

‘ नमस्कार ‘ बहुत खुशी हुई। आप कुछ दिन रुकेंगी ?

 मुझे हिंदी में बातें करती देख वे भी शुद्ध हिंदी पर उतर आईं।

‘हाँ , अभी तो हूँ’

‘फिर … आ जाओ शाम में चाय पर कुछ बातें -शातें करेंगे’

अगर आप चाहें तो मेरे साथ यहाँ के मंदिर भी चल सकती हैं ‘

‘अब यहाँ बच्चों को इतनी फुर्सत कहाँ  कि आपको मंदिर ले जाएं ‘।



‘ अंधे को क्या चाहिए दो आँख ‘

 मैं तो मारे खुशी के पागल हो गई। मुझे तो उनकी पूरी हिस्ट्री जाननी है जो शायद बिटिया को भी मालूम न थी।

मैंने भी खुल कर दोस्ती के हाथ बढ़ा दिए।

अगले दिन शाम में हम बन-ठन कर एक बड़े से गुलदस्ते के साथ उनके यहाँ चाय पर निकलने को तैयार थे।

 पर बिटिया असमंजस में … ,

‘ पापा आप ? वहाँ अंकल तो हैं नहीं ‘

‘क्यों ? आंटी ने तो बिंदी लगा रखी थी ‘

‘ उफ्फ … आप समझती नहीं हैं मतलब  वे यहाँ नहीं रहते वापस इन्डिया चले गये हैं ‘

फिर श्रीमान जी घर पर ही रुक गए।

मैं अकेली ही चल पड़ी।

बगल में ही घर के दरवाजे पर बड़े से नेमप्लेट पर ,

“डॉक्टर नेमीचंद जैन ” देख कर मन कचोट गया।

वे मेनडोर पर खड़ी दिखीं मुझे देख कर सीढ़ियों से नीचे उतर पड़ी,

‘ कमॉन , मिसेज मेहरा वेलकम टू होम , माई स्वीट होम ‘ 

वाकई घर स्वीट होम ही था।

इतना बड़ा,सुन्दर और विशाल मैं यह सोच कर हैरान थी यह अकेली इसमें कैसे रहती होगीं। चकाचक साफ-सफाई और सजावट बेजोड़ थी। 

कोमला भी नयी पेस्टल पिंक कलर की बाँह कटी टौप और निकर में ए वन लग रही थी उसे देख कर मैं ने एकबारगी अपनी चौड़े पार की पोचमपल्ली साड़ी निहारी और झेंप गयी,

‘कहाँ मैं और कहाँ वो ?

मुश्किल से पैंतालीस से पचास के बीच सधी हुई स्मार्ट अमरीकन मस्त झक्कास दिख रही थी।

उसने भी मुझे उपर से नीचे तक निहारा और लगा जैसे हजार वाट की जल रही उसकी आंखे मेरी सादगीपूर्ण सजावट देख भक्क से जल कर बुत गयी थी।

तभी चारो तरफ गौर करती मेरी नजर साइड टेबल पर रखी हुई कोमला और उसके पति के पेयर फोटो पर जा कर टिक गई थी।

मंत्रमुग्ध सी मैं उधर ही बढ़ गई। पीछे कोमला भी आकर खड़ी हो गई थी ,

‘ ही इज माई हसबेंड ‘

‘ ओ हाउ स्वीट , कितनी सुन्दर जोड़ी है तुमदोनों की पर वो है कहाँ ?  ‘

मेरा इतना पूछना था कि वो ऐंठ गयी,

‘  डैमफूल, पागल हो गया है।

मत पूछो, सारी उम्र यहाँ काट ली अब देशभक्ति की लगन लगी है ‘

‘कहता था,

कोमला पाश्चाताप की अग्नि में जल रहा हूँ। सारी सुख-सुविधा का त्याग कर वापस जाना चाहता हूँ ।

मेरा देश, मेरी मिट्टी बुला रही है। मीलियन,विलीयन की सम्पत्ति मेरे किस काम की ‘ 



‘ वो तो मुझे भी ले जाना चाहता था। 

लेकिन मैं उस जैसी कोई पागल थोड़ी ही ना हूँ, कि चली जाती बसएक दिन गुस्से में आकर मैंने  कह दिया ,

‘तुम्हें जाना है तो जाओ पर मैं नहीं जाने वाली कहीं भी बस उसकी तो जैसे जान में जान आ गई ‘

एक मैं ही उसके राह की बाधा बनी हुई थी अब वो भी हट गयी ‘

इतना कहते हुए ही जैसे उसकी सांस फूल गयी थी। 

झट से टेबल पर पहले से ही निकाल कर  रखी हुई वाइन की ग्लास को उठा कर गटागट पी गयी।

वो गीत सुना है आपने ,

‘ सैंया बिना घर सूना-सूना ‘ 

शायद इसी हताशा को मिटाना चाह रही है। 

ऐसा सोच मैंने उसके कंधे को थपथपाते हुए पास रखी कुर्सी पर बिठा दिया।

थोड़ी देर चुप रही ,

 मानों खुद को आत्मसात करने की कोशिश कर रही हो बोली ,

‘ जानती हैं मिसेज मेहरा,

 हम दोनों ने एक साथ ही मेडिकल कॉलेज में पढ़ते हुए अन्तर्जातीए प्रेम विवाह किया था।

वो यानी कि ‘ नेमि ‘ ऐब्रौड नहीं आना चाहता था। 

लेकिन मेरे प्रेम में पड़ा वो खिंचता चला आया। 

आखिर कब तक रुकता ?

धीरे-धीरे मेरे प्रेम की डोर हल्की और

 ‘माँ भारती’ की पुकार मजबूत होती चली गईं ‘

‘बेबकूफ कहीं का वहाँ बिना सुविधा के जहाँ बिजली भी मात्र घंटे दो घंटे के लिए आती है  सड़ रहा होगा ‘

‘ हुंह … सड़ने दो, मेरा क्या मैं तो सुख -चैन से गाड़ियों पर घूमती हूँ ‘

‘ तो आप कभी नहीं जाती उसके पास ‘ मैं हैरान पूछ पड़ी ,

आपकी तो लव मैरिज थी ना या  सिर्फ़ एकतरफा प्यार था ? ‘

मैं पूछना तो यही चाह रही थी लेकिन संकोचवश

पूछ नहीं पाई।

इस बार थोड़ी जोर से बोली वो …

‘ दिमाग खराब हुआ है क्या मेरा जो उन नंगे-भूखे मरीजों के बीच दिन अपनी जिन्दगी बिताऊँ ? ‘

‘ ओ मतलब आपने एक पागल से  प्यार किया था ? ‘

भौंचक रह गई कोमला ,



‘ ये क्या कह रही हैं मिसेज मेहरा मैंने पागल से प्यार किया था ?’

‘ वही जो आप सुन नहीं पा रही हैं ,

‘ माटी की पुकार ‘ को मेरा मन खराब हो चुका था।

थोड़ी देर बाद ही किसी तरह चाय पी कर मैं भारी मन से उनकी दास्तान सुन निकल आई थी। 

निकलते वक्त अनायास ही नेमप्लेट पर नजर चली गईं।

‘ स्वीट होम ऑफ 

मिस्टर ऐन्ड मिसेज डॉक्टर नेमिचंद्र जैन “

जिसे मन ही मन सलाम कर मैंने कोमला से विदा लेना चाहा उसने मेरे हाथ मजबूती से थाम रखे हैं।

 

बहरहाल उसकी कहानी सुन कर मुझे जो महसूस हुआ … 

वो यही कि हर चीज आपके हाथों में है।

अगर आप अपने अंदर चल रही अंदरुनी लड़ाई से जीत गए तो बाहरी युद्ध चाहे मानसिक स्तर  पर ही क्यों ना हो जीतना बहुत आसान है।

 क्योंकि तब आपके अंदर मौजूद सारी ताकतें आपकी मदद करने को एक हो जाती हैं।

 यही उन डॉक्टर साहब के साथ भी हुई होगी।

 वे किसी भी तरह अपने मन को मना नहीं पाए होगें ,

‘ कि यही मेरी नियति है। विदेशी भूमि पर रह कर विदेशियों की सेवा करता रहूँगा।

और बाकी की बची जिन्दगी मैं ऐसे ही जीउंगा ‘ जैसा की कोमला ने सोच लिया। 

उनके लिए … 

‘ इन्डिया कॉलिंग ‘ 

ज्यादा महत्वपूर्ण रही और कम उम्र में ही सरकारी नौकरी से वी.आर. एस ले अपना सब कुछ समेट कर फिर कभी दोबारा न आने के लिए वो वापस चले गए।

 

एवं आंध्रप्रदेश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में अपना बड़ा सा अस्पताल खोल कर मुफ्त या थोड़े पैसों में बेहतरीन इलाज मुहैया कराने को सदैव तत्पर रहते हुए सादा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

हमारे गौरवशाली देश के ऐसे सपूत को मैं दिल से नमन करती हूँ।

‘ये जो देश है मेरा’ सन्देश है मेरा, हृदयेश है मेरा ‘

काश कि उनकी डॉक्टरनी पत्नी ने भी कुछ ऐसे ही त्याग करने की सोची होती।

 

प्रिय पाठकों यह कहानी नहीं अपितु सत्य घटना है। सिर्फ़ गोपनीयता रखने हेतू पात्रों के नाम परिवर्तित हैं।

#त्याग 

सीमा वर्मा / नोएडा

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