आयु 70 वर्ष की हो चुकी थी मैं अपने कंप्यूटर बैठे काम कर रहा था अपने सीक्रेट प्रोजेक्ट पर ,पीछे से धर्म पत्नी ने आवाज लगाई “अरे कहां हो फिर बैठ गए कंप्यूटर पर आपको चैन नहीं है इस उम्र में भी साॅफ्टवेयर इंजीनियर का कीड़ा अब भी है आपके अंदर ,कितने सॉफ्टवेयर बनाओगे और फ्री में दान दे दोगे ,अब तक हम लोग कितने अमीर होते अगर आप रोयलटी भी लेते तो, क्या नासा हो क्या इसरो, प्रसाद की तरह बांटे आपने अपने प्रोजैक्ट,और कितने बच्चों को फ्री में पढ़ा पढ़ा कर ऐसी संस्थाओं को भेजा,पता नहीं कौन सी दुनिया में रहते हो “हमने हल्के से कहा आखिरी दुनिया में “आखिरी कोडिंग करके जैसे ही कंपाइल किया सॉफ्टवेयर रन हो चुका था सक्सेसफुली और इधर हमारी आत्मा भी देह त्याग कर चुकी थी।
धर्मपत्नी कमरे में आयी हमारे कोई प्रति उत्तर ना देने के कारण वह समझ गई उसकी आंखों में आंसू आने ही बाले थे कि उसे कुछ याद आया और उसने हमारी अलमीरा में रखी डायरी खोली जो कि मैंने उसको सख्त हिदायत दी थी कि मेरी मृत्यु के उपरांत यह डायरी तुरंत पढना बिना आंख में आंसू लाये।
उसने डायरी पढ़नी शुरू की मैंने साफ लिखा था बुलेट प्वाइंट्स में
- मेरी मृत्यु पर किसी को रोना नहीं है।
- ज्यादा भीड़ नहीं करनी है।
- मेरे सांइनटिसट मित्र को जल्द से जल्द बुलाना है।
- मेरे शरीर को 10 घंटे से ज्यादा रखना नहीं है।
- मेरे शरीर के समक्ष गीता पढ़नी है,यथार्थ भाव सहित।
- शव यात्रा में कॉमेडी शो की स्क्रीन चलेगी और सब हंसते हुए विदा देंगे।
- कोई भी दसवाँ, तेरहवीं नहीं करनी है ।
- मुखाग्नि के अगले दिन से ही सब अपने अपने कार्यों में व्यस्त होने चाहिए।
पत्नी ने यह सब पढ़कर मेरे सांइटिसट मित्र को तुरंत फोन किया और सारा काम पत्नी ने उपरोक्त तरीके से ही कराया ।
अब देवदूत पीछे खड़े थे हमारी आत्मा के ,बोले “प्रभु चलोगे की और पिक्चर देख कर जाओगे” मैंने कहा- “चलो भाई” ऊपर पहुंचे तो धर्मराज जी ने कुंडली देखी और चित्रगुप्त से कहा यार यह तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर है ऐसा करो इसे अपना असिस्टेंट बना लो ,तुम्हारा सारा डाटा बेस ऑर्गेनाइज करके रखेगा ,इधर चित्रगुप्त को अपनी नौकरी खतरे में लगी ,लेकिन धर्मराज का आदेश था जो मानना ही था ,मेरी आत्मा भी पूरे रोल में आ चुकी थी सारे चित्रगुप्त के स्टाफ को बुलाकर कहा मैने ” देखो पहले मैं आप लोगों को आईटी टेस्ट लूंगा फिर आगे का काम दूंगा पास होने पर” सब लोगों ने ऐसा मुंह बनाया टेस्ट के नाम पर जैसे मैंने उनकी आत्मा की भी आत्मा निकाल ली हो, सब चित्रगुप्त के पास फरियाद लेकर पहुंचे हमें पास करा देना।
खैर यह सब ऊपर चल रहा था उधर नीचे मेरी शव यात्रा में कॉमेडी शो निकल पड़ी उसे पूर्ण करने के बाद सब घर आए और मेरा मित्र मेरे कंप्यूटर पर गया और उसने मेरे उस लास्ट प्रोजेक्ट को देखा देखते ही उसके मुंह से निकला “साले अनुज के बच्चे क**** जाते-जाते भी इस दुनिया को निर्मोही बनाने की सोच कर गया बे तू “
वह चिप वेस्ड बायो टेकनीकल प्रोजेक्ट था जिसमें बायो के डेटा के लिए इसी दोस्त से हेल्प ली थी इस प्रोजेक्ट का नाम मैने “निर्मोही चिप” रखा था। जिससे इंसान के अंदर के सारे इमोशन खत्म हो जाते और मनुष्य निर्मोही होकर प्रभू की ओर प्रस्थान करता।
– अनुज सारस्वत की कलम से
( स्वरचित एवं मौलिक रचना)