देवीना शाम को मायके आती है, वह खाना खाकर, रात में मां से बात करने बैठ कर रह जाती है, उसे बात करते -करते देर हो जाती है, और उसकी भाभी भी काम निपटा कर अपने कमरे में सोने चली जाती , तब वह कहती है- माँ आज मैं यही सोऊंगी। तब मां बोलती -हां हां देवीना क्यों नहीं….और पापा ने सोचा चलो हम दूसरे कमरे में चले जाते हैं, क्योंकि माँ बेटी खुब गपशप करेंगी। इनकी बातें तो इतनी जल्दी खत्म न होने वाली…. आखिर देवीना को रहने कहां मिलता है…. यही सोचकर वे भी बातें करने देते हैं….
देवीना और उसकी माँ काफी बातें करते हैं, कम से कम एक घंटे बाद वह सोने को सोचती है और चादर फटकारती है तो चादर काफी गंदी दिखती है तब वह माँ से कहती है – ” माँ भाभी दिन भर क्या करती रहती है? देखो तो चादर कितनी गंदी है ,माँ हमसे तो इसमें ना सोया जाएगा, उनसे नहीं कहती हो क्या..हर हफ्ते चादर धुलाई किया करे। आपके तो हमारे लिए काफी नियम थे अब क्या हुआ? ” तब उसकी माँ उर्मिला जी कहती है- ” अरे हमारी सेवा करती, घर का ,सबका का ख्याल रखती है, तो क्या कम है, जो तू कमी निकाल रही है।
चल चादर फटकार ले या आलमारी से दूसरा चादर निकाल कर बिछा ले। ” देवीना जैसे तैसे चादर फटकारने लगती तो बिस्तर के नीचे काफी सामान मिलता है। तब भी उसे शिकायत रहती है कि हर सामान की एक जगह होती है। वो कहती -माँ भाभी से कहा करो, हर सामान जगह पर रखा करो। जैसे तैसे वह चादर फटकार करके सो जाती है ।
इस तरह वह सुबह देर से उठती है तो उसे ही झाड़ू लगाना पड़ता है। तब पलंग के नीचे से ढेर सारा कचरा निकाल कर देवीना भाभी को दिखाती है भाभी ये क्या है…. तब उसकी भाभी नीलम कहती – दीदी एक तो बैठक रुम है और साथ ही यहाँ सबका बैठना उठना ज्यादा होता है ,इसलिए ज्यादा गंदा होता है। क्यों भाभी पलंग के नीचे भी झाड़ू लगा लो तो इतना कचरा हो कैसे…
दीदी क्या मतलब आपका मैं ठीक से सफाई नहीं करती हूं….
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तभी उसके भैया और पापा भी आ जाते है। तब उनकी बात सुनते हैं, तो भैया कहता- देखो दीदी तुम यहां हमेशा नहीं रहती तो मीन मेख क्यों!!इससे उसे बुरा लगता है । तब वह बोलती- अरे वाह भैया बहुत खूब….. क्या तरफदारी कर रहे हो भाभी की….. तब माँ भी कहती है क्यों बात को बढ़ा रही हो, देवीना….. इसके बाद और बुरा लगता है। तब वह कचरा सूपा में रखकर पापा को दिखाने लगती है, तो उसके पापा को लगता है वाकई बहुत सारा कचरा है, तो कहने लगते मधु देखो तो इतना कचरा कैसे, तुम तो रोज झाड़ू लगाती हो ना तो फिर कैसे…..
तब उसकी सास बोलने लगती सब बैठे रहते हैं तो सामने- सामने झाड़ू लग जाती है और फिर नीलम के पास एक ही काम नहीं होता उसके पास दूसरे काम भी होते हैं…. तब देवीना बिस्तर के नीचे से कागज,पालीथीन रुमाल दवाई की स्लिप भी निकाल कर दिखाने लगती है तब उसका भाई अजय कहता- तुम यहाँ माँ से मिलने आई हो, या नीलम की कमी निकालने आई है तुम क्या चाहती हो घर में सुख शांति न रहे । रोज और सासों जैसी मां नीलम को ताने देती रहे। तब देवीना कहती है- भैया तुम बीच में न बोलो तो अच्छा है ..
.तब भैया कहता कैसे न बोलूं एक तो नीलम दिन रात काम में लगी रहती है ,अकेले जिम्मेदारी उठा रही है और तुम दो दिन के लिए आकर घर की शांति भंग कर रही हो। अगर माँ कुछ नहीं बोलती तो तुम आग में घी क्यों डाल रही हो तुम्हें क्या मिलेगा!!!
तब वो कहती- क्यों मां हमारे लिए बहुत अनुशासन थे, तुम हर काम समय से कराती थी। तब मां बोलती बेटा हम तुम्हारी मदद करते ,थे तुम्हारी बड़ी बहन भी थी एक अकेली नीलम कितना काम करे।तभी गुस्से में देवीना कहती -मां अब तुम भी पक्ष ले रही हो। तब पापा कहते- देवीना बेटा तुम हमारे घर आग में घी मत डालो ,
तुम दो दिन के लिए आई हो, खुशी- खुशी आई हो, प्रेम से रहो और चली जाओ। तुम्हें इस घर के मामले में बोलने का हक नहीं है। और खासकर जिससे कि झगड़े की स्थिति निर्मित हो। इस तरह पापा की बात सुनकर देवीना को बहुत बुरा लगता है। तो कहती हां अब पराई हो गई हू इसलिए कह रहे हैं। तब पापा उसे समझाते है बेटा जिससे घर में कलह हो ऐसी बात ही क्यों करो। अगर तुम भाभी की कमी निकालोगी तो क्या नीलम बहू को अच्छा लगेगा।
तब वह चुप रह जाती है। जब पापा और भैया वहां से चले जाते हैं तब मां समझाती है देख देवीना पहले का समय और था। और अब स्थिति अलग है पहले चार लोग मिलकर काम करते थे। अब अकेली नीलम करती है। मैं तो बीमार रहती हूं अगर तेरे यहाँ भी सास और जेठानी साथ न दे तो भीअकेले तू क्या कर पाएगी। नहीं ना…
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तो क्यों आग में घी डालने का काम करती है, न पापा के क्रोध को बढ़ा,,न ही भाई के क्रोध को,,तुझे क्या मिलेगा। तेरे प्रति भाई का सम्मान न रहे क्या ये अच्छा है? तू क्या चाहती तुझे भाभी कभी सम्मान से न देखे क्या ये सही होगा,,ये तू मत बोला कर, तब वह समझ जाती है। और मां से कहती- हां मा मुझे दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। इस तरह वह खुशी खुशी दो दिन रहकर चली जाती है।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया
# आग में घी डालना