कविता और उसका परिवार एक बड़े और सुविधासंपन्न शहर में रहता था। उसके पति एक अच्छी नौकरी करते थे, और घर में सभी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध थीं। हर तरह के सुख-साधन होने के बावजूद कविता का मन अपने मायके के छोटे शहर में बसता था, जहाँ वह अपना बचपन बिताई थी।
एक दिन जब कविता ने अपने पति से कहा कि वह बच्चों की गर्मी की छुट्टियों में अपने मायके जाना चाहती है, तो उसकी सासू मां ने बात सुनते ही आपत्ति जताई। वे तुरंत बोलीं, “कोई जरूरत नहीं है वहाँ जाने की। तुम्हारे मायके के छोटे शहर में न तो कोई अच्छी घूमने की जगह है, न कोई मॉल, न पार्क, न ही सिनेमाघर। वहाँ न तुम्हारे ससुराल जैसा एसी है, न गाड़ी, और न ही कोई नौकर-चाकर। यहाँ तुम्हें आराम से हर सुख-सुविधा मिल रही है, तो हर साल गर्मियों की छुट्टियों में क्यों परेशान होती हो वहाँ जाने के लिए? वहाँ जाकर मिलता ही क्या है?”
कविता अपनी सास की बातों को चुपचाप सुन रही थी। उसने सोचा कि क्या वह उन्हें अपनी बात समझा पाएगी? वह कैसे समझाए कि मायके में भले ही भौतिक सुख-सुविधाओं की कमी हो, लेकिन वहाँ के लोग उसे अपनत्व और प्रेम देते हैं। वहाँ के लोग उसे उसकी परवाह करते हैं, उसे उसके बचपन की यादें ताज़ा कर देते हैं, उसे उसके अस्तित्व का अहसास कराते हैं। बिना सोचे-समझे कविता के मुंह से निकल ही गया, “अपनापन।” इस शब्द ने कविता के दिल में गहरे भावनाओं को उजागर कर दिया।
इस एक शब्द ने उस भावना को दर्शा दिया जिसे वह अपने मायके में पाती थी। भले ही मायके का घर छोटा हो, वहाँ कोई विशेष आधुनिक सुविधा न हो, लेकिन वहाँ की खुशबू, वहाँ का सादगी भरा माहौल और सबसे बढ़कर उसके माता-पिता का प्यार उसे वहाँ खींच लेता है। कविता का मायका उसकी जड़ों का प्रतीक है, जहाँ उसका बचपन बीता, जहाँ उसने जीवन के अनमोल क्षण बिताए। यह उसकी जिंदगी का वह हिस्सा है जिसे वह किसी भी भौतिक सुख-सुविधा से अधिक महत्व देती है।
कविता की सास को इस अपनत्व का महत्व समझ में नहीं आया। वे यह सोचती थीं कि विवाह के बाद जब कविता का अपना घर बन गया है, तो उसे मायके के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। सास का मानना था कि एक बार शादी हो जाने के बाद मायका केवल एक पुरानी याद भर रह जाता है, जिसमें लौटने की कोई जरूरत नहीं होती।
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परंतु, कविता के लिए मायका एक स्थायी संबंध था, जो भले ही अब उसका निवास न था, लेकिन उसके दिल में उसकी जड़े गहरी बसी थीं। वहाँ उसके माता-पिता थे, जो हर बार अपनी बेटी के लौटने का बेसब्री से इंतजार करते थे। वहाँ उसकी पुरानी सहेलियाँ थीं, जिनके साथ बचपन की बातें करना उसे खुशी और सुकून देता था। वहाँ की गली-मोहल्ले में बिताए पलों की यादें थीं जो उसे जीवन की साधारण खुशियों का एहसास कराती थीं। वहाँ का अपनापन उसकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा था।
कविता ने कुछ नहीं कहा, पर मन में सोचने लगी कि वह अपनी सास को कैसे समझाए कि मायके में जाना उसके लिए सिर्फ एक छुट्टी नहीं है। वह कोई सैर-सपाटा नहीं चाहती थी, उसे मॉल या सिनेमाघर की कोई जरूरत नहीं थी। उसे चाहिए था अपने घर का वह माहौल जहाँ वह बिना किसी बोझ के हँस सके, जहाँ उसे किसी दिखावे की जरूरत न हो।
उसने अपने पति से भी इस बारे में बात की। उसने अपने पति को बताया कि मायके जाने से उसे एक नई ऊर्जा मिलती है, जो उसे पूरे साल के काम और जिम्मेदारियों का सामना करने में सहायक होती है। उसने कहा, “मैं जानती हूँ कि यहाँ हर सुविधा है, और तुम सब मुझे प्यार करते हो, लेकिन वहाँ का अपनापन मुझे एक सुकून देता है।”
कविता के पति उसकी बात को समझ गए। वे जानते थे कि उनकी पत्नी को अपने मायके से बहुत लगाव है। उन्होंने अपनी माँ को यह बात समझाने की कोशिश की कि कविता का मायके से यह जुड़ाव सामान्य है और उसकी भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “माँ, भले ही मायके में उतनी सुविधाएँ न हों, लेकिन हर इंसान अपने घर में सुकून महसूस करता है। कविता के लिए वह घर उसके दिल के बहुत करीब है। उसे वहाँ जाने से खुशी मिलती है, तो हमें भी उसका समर्थन करना चाहिए।”
कविता की सास ने अपने बेटे की बातों को सुनकर महसूस किया कि शायद वे कविता की भावनाओं को समझने में नाकाम रही थीं। उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने कविता के जीवन के उस हिस्से को अनदेखा कर दिया था जो उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उन्होंने महसूस किया कि हर महिला का अपने मायके से लगाव होना एक प्राकृतिक बात है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए।
कविता की सास ने कविता से माफी मांगी और कहा, “मुझे माफ करना बेटी, मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ नहीं पाई। तुम अपनी खुशी के लिए अपने मायके जा सकती हो, मैं अब तुम्हें रोकूँगी नहीं।” कविता यह सुनकर बहुत खुश हुई और उसने अपनी सास का आशीर्वाद लिया। उसकी सास के इस फैसले ने कविता के दिल को जीत लिया।
गर्मी की छुट्टियों में कविता अपने बच्चों के साथ अपने मायके गई। वहाँ उसने अपने माता-पिता के साथ कुछ दिन खुशी-खुशी बिताए। उसने अपने पुराने दोस्तों से भी मुलाकात की और उनके साथ पुरानी यादें ताज़ा की। कविता ने इन दिनों में महसूस किया कि भले ही उसकी सास ने उसे मना किया था, लेकिन उनकी माफी से उसके दिल में कोई नाराजगी नहीं रह गई थी। उसे इस बात की खुशी थी कि उसकी सास ने उसकी भावनाओं को समझा और उसकी पसंद का सम्मान किया।
कविता को महसूस हुआ कि ससुराल में अगर थोड़ी समझ और प्यार हो तो जीवन आसान हो सकता है। उसने ठान लिया कि वह ससुराल के हर सदस्य के प्रति उसी अपनत्व की भावना रखेगी जो उसके मायके में उसे महसूस होती है।
मौलिक रचना
सुभद्रा प्रसाद