अरे रीता सुना तुमने वो मिश्रा जी की बिटिया है ना निभा , शहर जा रही है, बच्चा गोद लेने के लिए,,,, कमला काकी अपनी पड़ोसन रीता के पास बैठी फुसफुसा रही थीं।
बात ही ऐसी थी कि दबे दबे सारे गांव में बात फैल गई थी,
इस गांव तो क्या पूरे इलाके में ऐसा नहीं हुआ था, की कोई अनाथ आश्रम से बच्चा ले आया हो।
निभा बुआ अनोखा काम करने जा रही थीं
हरेश मिश्रा की बिटिया निभा बुआ चार भाइयों की इकलौती बहन थीं, उनके पिता हरेश मिश्रा ने खूब कमाया था, पास के मार्केट में अपनी दुकान थी उनकी, जमीनों की भी कमी न थी,बेटे भी कमाऊ पूत थे, अब भला निभा बुआ को कोई की कमी क्यों होती,,, नाजो से पली थीं वो,,, गांव की सारी लड़कियां उनके वो कपड़े और जूते देखने जाती, जो उनके भाई शहर से लाते।
उनकी शादी भी बड़े धूम धाम से हुई, अच्छे घर का इकलौता, कमाऊ लड़का था, लड़के के माता पिता का देहांत हो गया था, और बहनों का भी विवाह हो चुका था, कुल मिलाकर ससुराली झंझट नहीं था निभा बुआ को, शादी के बाद वो मायके में ही घर बनाकर रहने लगीं थीं, इसीलिए गांव ले सारे बच्चे उन्हें बुआ ही कहते थे, अब सारे गांव की ही बुआ बन चुकी थीं वो,,,,।
सारे सुख थे निभा बुआ के पास बस संतान का सुख नहीं प्राप्त हुआ, हर इलाज हो चुका था उनका, आखिर डॉक्टर्स ने ये बता दिया कि निभा बुआ के भाग्य में संतान का सुख नहीं।
पंद्रह वर्ष बीत चुके थे निभा बुआ के शादी को,पर निभा बुआ थोड़ा भी निराश नहीं होती थीं, स्वभाव से ही चंचल और हँसमुख थीं वो।
सब ने उन्हें सलाह दिया, भाई के बच्चो को या नन्दो के बच्चों गोद ले लो घर की संपति घर में रह जायेगी, पर उन्हें लगता भाइयों के बच्चे इतने सुख सुविधा में पल रहे हैं, उन्हें किस चीज की कमी थी। निभा बुआ एक नवजात बच्चा गोद लेना चाहती थी, जो उन्हें ही माँ कहे, समझे, कोई दूसरा सांझी न हो, वह अपनी “मातृत्व” का सुख पाना चाहती थीं।
होता तो यही था,अगर कोई महिला बांझ हो तो पुरुष दूसरा विवाह कर लेता था, यहां तक कि अगर किसी की सिर्फ बेटियां होती तो वह बेटे के लिए भी दूसरी शादी कर लेता, लेकिन निभा बुआ के पति उनसे बहुत “प्यार” करते थे, उन्होंने निभा बुआ का “समर्थन” किया।
वह बच्चा गोद लेने के लिए राज़ी थे।
बहुत अफ़वाहें फैली, खानदान में भी थोड़े विरूद्ध हुए,,, पर निभा बुआ अपने फैसले पर अटल थीं,,, वह शहर जा ही रहीं थी कि पास के मार्केट में जो नर्सिंग होम था, वहां से कुछ खबर मिली,,, वहां के डॉक्टर के संपर्क में निभा बुआ रहती थीं, वहीं पर एक गरीब औरत ने एक बच्चे को जन्म दिया था, वह पति द्वारा प्रताड़ित महिला थी, उसके आगे पीछे कोई नहीं था, शराबी, जुवाड़ी,पति उसे मानसिक और शारीरिक रूप से यातनाएं देता था, परिणाम स्वरूप वह बच्चे को जन्म देते समय इस दुनिया से चल बसी थीं, और पिता ने बच्चे को लेने से इंकार कर दिया था, निभा बुआ वहां पहुंच चुकी थीं, बच्चे को गोद में लेते उनको बड़ा ही सुखद अनुभव हुआ।
कानूनी रूप से भी उनके पति ने उस बच्चे को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। जिस दिन वो अपने बेटे को घर ले आईं पूरा गांव रोशनी में नहा गया था, चारो मामा खुशी में मिठाइयां बांटते नहीं थकते।
निभा बुआ बच्चे को गोद में लेकर बोतल से दूध पिलाते, इसकी सारी जिम्मेदारियां पूरी करते जैसे मातृत्व के सुख से तृप्त हो जातीं।
लोगों ने पहले बातें बनाई फिर स्वीकार कर लिए, फिर हुआ यूं कि उसी पुरानी सोच के इलाके में बसने वाले तीन बेटियों के पिता बन चुके अवधेश मांझी ने भी बेटे के लिए दूसरी ना कर एक बेटा गोद ले लिया।
लोगों की सोच धीरे धीरे बदलने लगी, परिवर्तन आना था, आने लगा, पर पहल किसी ने की तभी यह परिवर्तन हुआ।
मौलिक एवं स्वरचित
सुल्ताना खातून