” कितनी प्यारी है गुड़िया ?” “सिस्टर! ये गुड़िया नहीं मेरा मेरा नाती है। ” माँ की आवाज़ कानों पड़ते ही विभा की तंद्रा टूटी। वह होश में आ गई थी, लेकिन उसकी पलकें उसका साथ नहीं दे रही थीं। वह चाह कर आँखें नहीं खोल पा रही थी। फिर धीरे- धीरे उसका अतीत पन्नों की भाँति उसके जेहन में खुलने लगा।
वह व्याह कर ससुराल आई और बी. एड. की परीक्षा शुरू होने के कारण, वह एक सप्ताह बाद ही गाँव से शहर पति के साथ आ गई थी। तब से पति के साथ ही उसका ज्यादातर समय पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में पति के साथ गुजरा। ज़िन्दगी एक रफ्तार से आगे बढ़ रही थी। नौकरी और घर गृहस्थी के बीच
चार साल का समय किस प्रकार पंख लगाकर उड़ गया, पता ही नहीं चला। बच्चे के बारे में उसे होश तो तब आया, जब ससुर ने फोन करके बेटे से उसके दूसरे विवाह की बात शुरू की। पति ने लोगों की बेवकूफी कहकर इस विषय पर पिता से बात करने से इंकार कर दिया, लेकिन विभा के कान खड़े हो गए। वह बच्चे के बारे में सोचना शुरू की।
अब वह चिंतित दिखने लगी। वह कभी बच्चे के बात पर माँ की चिंता को अक्सर, कैरियर के नाम पर हँसी में उड़ा देती। बहुत सोचने-समझने के बाद माँ को घटना क्रम से अवगत कराई। माँ बोली -“मैं तो पहले से ही तुम से कह रही हूँ, लेकिन तुम्हारे ही सिर पर नौकरी सवार था। अरे! बाल- बच्चे कौन सा तुम्हारी नौकरी के आड़े आ रहे है। मैं अपने नवासे के लिए जिन्दा हूँ। समय देख कर दोनों
चले आना यहीं पर किसी अच्छी स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाती हूँ। मैं भी तब तक डॉक्टर की पूरी जानकारी ले लेती हूँ। ” विभा को माँ के बातों से बल मिला। वह पति को इस बात पर राजी करने के लिए अवसर की तलाश में थी। एक शाम जब दोनों पार्क में बैठे बात कर रहे थें, कि एक छोटा सा बच्चा लाल कपड़ों में अपने लड़खड़ाते कदमों से उनकी ओर बढ़ रहा था । विभा उठी और उसे गोद में उठा कर प्यार करने लगी।
तभी उसकी माँ पीछे से आ गई और बच्चा अपनी माँ को देखते ही उसके गोद से उतर अपनी माँ के पास चला गया। इस घटना के बाद विभा ने वैभव के सामने अपने बच्चे के बारे में सोचने की बात कही, तो पत्नी का दिल रखने के लिए उसने हाँमी भर दी। गर्मी की छुट्टियों में दोनों पहले प्रयागराज विभा के मायके पहुँचे। दूसरे दिन ही शहर के बड़े स्त्री- रोग विशेषज्ञ से पूर्व निर्धारित योजना के तहत दोनों मिलने गए । डॉक्टर ने प्रारंभिक बैठक में बात-चीत के बाद कुछ परीक्षण कराने का निर्देश देते हुए, अगली बार पंद्रह दिन बाद मिलने की बात कही। परीक्षण के दो तीन दौर के पश्चात डॉक्टर ने विभा में ही
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नियमित अण्डा न बनने की कमी बताई। वह स्वयं के इस कमी को दूर करने के लिए नियमित दवाई लेती रही और डॉक्टर से जुड़ी रही। समय पंख लगाकर उड़ता जा रहा था। बच्चा और बचपन उसके सपनों की दुनिया में प्रति पल का हिस्सा बनता रहा, लेकिन हकीक ठीक विपरीत ठहर सी गई थी। दो चार दिन का मासिक चढ़ाव उसमें जाने कितने सुनहरे ख्वाब सजाता, लेकिन उसकी वापसी उसके अंतःकरण को तार-तार कर देती।
इसी उधेड़बुन में समय का चार साल और आगे खिसक गया। मन्नतों, देव पूजन के दौर में एक ऐसा भी वक्त आया जब मासिक चढ़ाव सात दिन से अधिक गुजरा तो उसके कल्पनाओं को पंख लग गया। वह बहुत खुश हो डॉक्टर के पास अपना दिले हाल बयाॅ करने गई। अपनी बारी का इंतजार करना भी उसके लिए पहाड़ बन रहा था। वह वक्त भी आया, जब वह अपने पति के साथ केबिन में डॉक्टर से मिलने पहुँची।
डॉक्टर पर्ची पर निगाह दौड़ा रही थीं और वर्षा अपना हालेदिल बया करती जा रही थी। अचानक डॉक्टर बोली-” आई एम सॉरी विद्या, लेकिन तुम बेबी कंसीभ करो ये इम्पासबल है। तुम्हें तो अण्डा ही बहुत रेयर बनता है। देखो, तुम किसी तरह की गलत फ़हमी मत पालो। घर जाओ। खुद को परेशान करने से कोई फायदा नहीं है, समझी। ” डॉक्टर के एक एक शब्द उसके पैरों तले से ज़मीन खिसका रहा था।
वह चुपचाप पति के साथ घर पहुँची और बाथरूम में खुद को बंद कर जी भर रोई। उसकी फूली हुई आँखें परिवार वालों को उसका हाले दिल बयाँ कर गया। आज पहली बार वैभव ने अपनी नाराजगी पत्नी से सजताते हुए बोला- ” अब बहुत हुआ। मुझे कोई बच्चा नहीं चाहिए। आप डॉक्टर के पास आने- जाने का सिलसिला बंद कर दीजिए । ” पति की नाराजगी में झुंझलाहट साफ झलक रही थी, इसलिए विभा को स्वयं के रोने पर पछतावा हो रहा है। वह कुछ बोलने की बजाय चुप रहना बेहतर समझी।
उसका अंतर्मन इस बात को अब भी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था, कि उसका भावी जीवन बिना संतान के गुजरे। समय बितता जा रहा था। एक दिन पति का मूड अच्छा देख विभा ने डॉक्टर मित्र का जिक्र छेड़ते हुए कहा कि ” आपको याद है अमित जी ने कहा था कि “भाभीजी जब आप एलोपैथ से थक जाइएगा, तो एक बार होमियोपैथ में
जरूर दिखाइएगा। ” पति ने कहा- “छोड़ो यार, मैं तुम्हारे साथ बहुत खुश हूँ, मुझे और किसी की आवश्यकता नहीं है। ” पति को अपनी बात समझाते हुए लहजे में बोली-” नहीं मैं बस इतना कह रही हूँ, कि जब आप अपने दोस्त मिलेंगे तो इस विषय पर उनसे चर्चा कीजियेगा।” “चलो अच्छा, वादा नहीं करता, लेकिन याद रहा तो इस पर बात करूंगा। “
शाम का समय था, वह शाम के आरती की तैयारी में लगी थी तभी काॅल बेल बजा ” इस वक्त कौन हो सकता है? मन ही बड़बड़ाते हुए दरवाज़ा खोली, तो वैभव को देख तपाक से बोल उठी-“अरे! आज आप जल्दी कैसे ?” “कुछ नहीं तुम जल्दी तैयार हो जाओ। अमित ने बुलाया है। अपने सारे रिपोर्ट ले लेना।
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” विभा के पैर में अनायास ही तेजी आ गई। वह फटाफट संध्या वंदन कर जल्दी के लिए भगवान से माफी मांग तैयार होने लगी। दोनों को अमित के दवाखाना पहुँचने में सवा सात बज गया था। वहाँ दवाखाना में बैठे मरीज को निपटाने के बाद अमित, वैभव और विभा के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ । जाँच के रिपोर्टर और व्यक्तिगत अनुभव सुनने के बाद डॉक्टर ने उन दोनों पति-पत्नी से छ: महीने की मोहलत मांगी । दवाइयाँ शुरू
की, वक्त बलवान रहा। पहले ही माह का चढ़ाव विभा में विश्वास तो नहीं जगा पा रहा था। आज वह जाने क्यों खुश नहीं हो पा रही थी। चाह के भी उसकी आँखों में सपने अपनी जगह नहीं बना पा रहे थें। उसकी आँखें जिस हकीकत के लिए इतना तरसे, उसकी संभावना की उम्मीद भी, चाहत की प्यास नहीं जगा पाई। धीरे-धीरे पंद्रह दिन का समय गुजर गया। डॉक्टर के सलाह पर प्रेगनेंसी टेस्ट कराने का सौभाग्य सिर्फ आया ही नहीं
बल्कि सकारात्मक रिपोर्ट भी आया। लेकिन ना उम्मीदी ने उसके जेहन को इस तरह उतर गयी थी, कि वह चाहकर भी ख्वाब नहीं जगा पा रही थी। वक्त के साथ समय गुजरता जा रहा था। वह बच्चे की हरकत भी नहीं महसूस कर रही थी। एक बार मन हुआ, कि इस बारे में डॉक्टर से बात करे। लेकिन जाने क्यों, ईश्वर को सारी परिस्थितियाँ सुपुर्द कर वह मौन रहना उचित समझी। जिसका आगमन ही वह ईश्वर की कृपा मान रही थी।
उसके सुरक्षा का भरोसा भी उन्हीं के हाथ सौंप दी। पंद्रह दिन बाद सातवें महीने में उसे बच्चे के हरकत का एहसास भी होने लगा। सातवाँ, आठवाँ और नौवाँ महीना उसके लिए भले परेशानी और तकलीफ से भरा रहा, लेकिन वह इस वक्त में भरपूर जीना चाह रही थी। उसे अपने परेशानियों और तकलीफों से शिकायत के बजाय प्यार था। जब वह नियमित चेकप के लिए प्रसूति डॉक्टर से मिलने गई, तो डॉक्टर ने उसे तुरंत भर्ती होने की सलाह दी। बारह घंटे की तैयारी के बाद अंततः आॅपरेशन थियेटर की यात्रा के बाद मातृत्व के इस एहसास का जद्दोजहद् उसके सामने चित्रपट की भाँति घूम गया।
पूनम शर्मा, वाराणसी