मतभेद तो हर घर में होते हैं। – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

मम्मी, शाम को हम दुलारी ताई जी के यहां चलेंगे, बहुत महीने हो गये है, उनसे मिलना नहीं हुआ, फोन पर तो मै उनके हाल पूछ लेती हूं,” माही खुश होकर बोली, और कमरे की खिड़की से उसने नजर डाली तो सामने वाले घर में कोई हलचल नहीं पाकर हैरान थी।

मम्मी, “वो ताई जी के यहां पर कोई नहीं है क्या? कितना सुनसान लग रहा है, जैसे महीनों से वहां कोई नहीं रहता हो।” माही ने चिन्तित स्वर‌ में कहा।

तू आज ही तो आई है, पहले चैन से बैठकर मेरे हाथ का गरम खाना तो खा ले फिर बातें करेंगे, और देख खिड़की से बाहर देखने के चक्कर में तेरी चाय भी ठंडी हो गई, सरोज जी ने बात को घुमाते हुए बोला, और रसोई में फिर से चाय बनाने को चल दी।

महीने बाद माही अपने मायके आई थी, अपने परिवार से मिलने को उत्सुक थी, दुलारी ताई जी सबसे बड़ी थी, उसके बाद दो ताई जी और सबसे छोटी सरोज जी थी, माही सबसे छोटी थी तो उसे बचपन से बहुत प्यार भी मिला था। सब भाईयों के बीच में केवल माही इकलौती बेटी थी, सबके बेटे थे तो बचपन से माही सब ताऊजी के बच्चों को राखी बांधती आ रही थी।

सरोज जी की माही इकलौती बेटी थी, उसके बाद उन्हें दूसरी संतान नहीं हुई, प्रभु की यही इच्छा समझकर माही के मम्मी -पापा ने उसका अच्छे से पालन-पोषण किया और कॉलेज की पढ़ाई पूरी होते ही उसके लिए लडका देखना शुरू किया, रोहित उन्हें पहली बार में ही पसंद आ गया।

माही के ससुराल वालों को माही बहुत अच्छी लगी और उन्होंने ये सोचकर भी हां कर दी कि माही की परवरिश बहुत अच्छी हुई है, सब देवरानी और जेठानी में बडा ही प्रेम है, इसी तरह माही भी अपने घर को बांधकर रखेंगी। परिवार में इतना प्यार और एकता देखकर माही के ससुराल वाले गदगद हो गये।

उसकी शादी में माही के तीनों ताऊजी लगे हुए थे, और उनके बेटे भी सेवा में हाजिर थे, दोनों ताऊजी दूसरे शहर में रहते थे , पर शादी की तैयारियां हेतु वो सात-आठ दिन पहले ही आ गये थे।

शादी के बाद भी माही अपने सभी ताई और ताऊजी से बातें करती थी। हमेशा उसके आने की खबर मिलते ही उनके सामने रह रही सबसे बड़ी ताई दुलारी जी पहले आ जाया करती थी, पर जब उसने अपनी मम्मी से पूछा तो वो बोली कि, ‘ तेरी ताईजी अपने मायके गई है, उनके भतीजे की शादी है।”

दो-चार दिन निकल गये, एक दिन माही ने दुलारी ताई जी को फोन लगा दिया, ताईजी आप कब वापस आयेगी, मेरा आपसे मिलने का बड़ा मन है।’

दुलारी ताई जी पहले चुप रही, फिर बोली, लाड़ो मै अब वापस कभी उस घर में नहीं आऊंगी, मै वो मोहल्ला छोड़ चुकी हूं, तुझे मिलना है तो तू चौराहे के पीछे जो मंदिर है, उसके सामने मकान नंबर इक्कीस में आ जाना, हम सब तुझे वही मिलेंगे।’

ये सुनते ही माही सकपका गई, उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसकी ताईजी जिनकी सांसें इस घर में बसती है, वो ये घर छोड़ चुकी है।

मम्मी, आपने मुझसे छुपाया, ऐसा अचानक से क्या हो गया? ताई जी तो आपसे पहले इस घर में आई थी, वो कैसे ये सब कुछ छोड़कर जा सकती है? और आपने भी मुझे नहीं बताया, आखिर ऐसे क्या मतभेद हो गये थे, मतभेद तो हर घर में होते हैं, पर मुझे लगता है, आपके बीच मनभेद हो गये थे, तभी तो ताई जी अपना घर छोड़कर चली गई।

सरोज जी पहले तो चुप रही, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहें? वो तू परेशान हो जाती इसलिए नहीं बताया।

दुलारी भाभी के बड़े बेटे निरंजन की नौकरी चली गई थी, घर का खर्च चलाना भारी हो रहा था, उनका घर तो पहले से ही कैलाश भाई साहब के कैंसर के इलाज के लिए गिरवी रखा हुआ था, और उस पर ब्याज भी बढ़ता जा रहा था।

भाभी जी ने मुझसे मदद मांगी थी, कि मै कुछ लाख की मदद  करकर  वो रूपये निरंजन को दे दूं ताकि वो कोई  दुकान खोलकर घर खर्च चला सकें, सब लोग बहुत परेशान थे, उन्हें और कोई पैसा देने को भी तैयार नहीं था। उन्होंने ऐसी बात की तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, भला कौन देवरानी जेठानी के बेटे के लिए लाखों रूपए देती है ? और उन रूपयों पर  ब्याज भी नहीं मिलता, तेरे पापा ने भी समझाया, पर मै नहीं मानी तो दुलारी भाभी अपना घर बेचकर 

किराए के घर में रहने चली गई, बस उस दिन के बाद से हमारे बीच में मतभेद पैदा हो गए।

सारी बातें सुनकर माही की आंखें भर आई, तब तक उसके पापा भी आ चुके थे, ‘मम्मी आपने आज जता ही दिया कि देवरानी और जेठानी कभी बहन नहीं हो सकती है, ताऊजी ने पापा को पाला पोसा, उन्हें पढ़ाया-लिखाया, उन्हें कमाने के लायक बनाया, दुलारी ताईजी ने पापा को अपना बेटा समझा और आपको इतने मन से घर में दुल्हन बनाकर लाई।

आप सबसे छोटी थी तो आपको बेटी की तरह रखा, और समय रहते-रहते दादू की जायदाद का सबमें बराबर बंटवारा भी कर दिया, सबके अलग-अलग घर भी हो गये, उसके बाद भी वो मुझ पर अपनी ममता लुटाती रहती थी, निरंजन भैया ने मेरी हर इच्छा पूरी की, राखी पर जो मांगा वो दिलाया और जब उन्हें जरूरत पड़ी तो आपने उनका घर बिक जाने दिया, जिन्होंने आपको घर बनाकर दिया, आपने उनकी ही मदद नहीं की। आपके पास पैसों की कहां कमी थी, आप तो लाखों दे सकती थी।

मेरे ससुराल वाले आप दोनों की एकता और प्यार की प्रशंसा करते नहीं थकते हैं, वो एकता और प्यार कहां चला गया?

अपनी बेटी माही की बात सुनकर सरोज जी का चेहरा उतर गया।

बेटी, मैंने ये सब तेरे लिए किया था, मेरी जायदाद, पैसों पर सिर्फ तेरा हक है, निरंजन का नहीं।

मम्मी, ताईजी और ताऊजी के आप पर इतने अहसान है, आपको उसे उतारने का सही अवसर मिला था, आपने वो खो दिया, माही रोते हुए बोली।

चुप हो जा, बिटिया पापा सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, भाईसाहब और भाभी जी के लिए मुझे भी बहुत दुख होता है, पर मै तेरी मम्मी की जिद के आगे कुछ नहीं कर पाया।

सरोज जी को भी अपनी बेटी और पति की बातें सुनकर आत्मग्लानि महसूस होने लगी। उन्होंने दोनों से माफी मांगी।

मै उनके लिए अब क्या कर सकती हूं? वो रोते हुए बोली।

मम्मी, हम ताईजी और ताऊजी को उनका घर वापस कर सकते हैं, वैसे भी अगले सप्ताह उनकी शादी की पचासवीं वर्षगांठ आ रही है, और जिसने ये घर खरीदा है वो अभी यहां रहने भी नहीं आये है।

माही ने मालूम किया कि जिसने ये घर खरीदा है, वो एक दलाल है जो सिर्फ घर खरीदता है और उसे आगे अच्छे दामों में बेचता है।

अगले सप्ताह वो सब दुलारी जी के घर गये, ताऊजी भी कीमो के इलाज से बहुत कमजोर हो गये थे, निरंजन ने अपना काम शुरू कर दिया था, पर अभी वो सिर्फ घर- खर्च ही निकाल पा रहा था।

भाभी और भाईसाहब आपको विवाह की पचासवीं वर्षगांठ की बहुत बधाईयां, ये कहकर सरोज जी उनके पैरों में गिर पड़ी।

मुझे माफ कर दीजिए, आपने हमें अपने बच्चों की तरह पाला और हम आपके लिए कुछ नहीं कर पाये, लेकिन आज हम आपको एक उपहार देना चाहते हैं, सरोज जी ने मकान के कागज़ात उन्हें सौंप दिए, और अपने सारे मतभेद और मनभेद खत्म कर लिए।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित 

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