…”कुहू… ना मेरी गुड़िया… वहां मत जा…!”
” मम्मा जाना…!”
” नहीं बेटा… अभी नहीं…!”
” नहीं… मम्मा जाना…!”
कुहू एक ही रट लगाए बैठी थी…
पर मम्मा जाने के लिए… मां को होना भी तो चाहिए…
सुमन ने खींचकर उसे सीने से लगा लिया…
” मैं हूं ना बेटा… मासी… मैं ही तेरी मम्मा हूं…अब से…!”
कुहू थोड़ी देर के लिए लिपट गई… फिर मां की रट लगाने लगी…
अकेले मां के हाथों से पला बच्चा… मां के सिवा किसी को जल्दी अपना नहीं बना पाता…
एक महीने बाद सुमन का ब्याह था…
इसलिए रजनी अपनी 2 साल की बेटी कुहू के साथ मायके आई थी…
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हंसता खेलता परिवार… अचानक मातम के गहरे कोहरे में डूब गया…
पिछले शाम सुमन और रजनी कुछ काम से बाजार जा रहे थे…
जाना जरूरी था… मगर कुहू साथ जाने की जिद लेकर रोना शुरू कर दी…
नानी के लाख मनाने पर भी… वह उनके पास नहीं रुकी… तो सुमन ने ही उठा लिया…
” ठीक है चलो ना… एक घंटे तो लगेंगे… ले लेते हैं इसे भी…!”
” पर सुमन… स्कूटी पर सामान के साथ इसे पकड़ने में दिक्कत आएगी… नहीं हो पाएगा…!” रजनी ने कहा था…
” सब हो जाएगा… देख लेना… चलो ना… सामान आगे लटका दूंगी…!”
जाते समय सुमन कुहू को लेकर पीछे बैठी थी… मगर आते वक्त सामान अधिक हो गया… और स्कूटी में लटक भी नहीं पाया…
इसलिए रजनी सामान और कुहू दोनों को मैनेज कर पीछे थी…
घर आते-आते… बिल्कुल घर के सामने वाले मोड़ पर…
एक बच्चा भाग कर स्कूटी के सामने आ गया…
उसको बचाने के चक्कर में… स्कूटी का संतुलन बिगड़ गया…
रजनी… कुहू सामान दोनों को बचाते बचाते धड़ाम से जमीन पर आ गिरी…
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गिरते ही उसका सर वहीं एक बिजली के खंभे से इतनी तेज टकराया… की अस्पताल पहुंचते पहुंचते उसने दम तोड़ दिया…
जिस घर में ब्याह की शहनाइयां बजने वाली थी… वहां मातम की आवाज गूंज उठी…
सुमन इस पूरे वाकए के लिए खुद को जिम्मेदार मान रही थी…
” काश… मैं ही पीछे होती… तो मेरी ही जान जाती… दीदी को क्यों दिया पीछे बैठने…!”
उसकी बहकी बातें सुनकर… सभी उसे सांत्वना देते…
“इसमें तुम्हारी क्या गलती… जिसके साथ होना था… उसी के साथ होता ना… आगे रहती तो भी… पीछे थी तब भी… और “मृत्यु तो जीवन का सबसे बड़ा सत्य है”…इसपर किसी का क्या बस चलता है…!”
शादी की तारीख को अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया गया…
अतुल और सुमन पिछले एक साल से एक दूसरे से मिलते जुलते थे… जब से शादी ठीक हुई थी… दोनों ने कितने ही घंटे साथ में बातें करते बिताई थी…
अतुल ने सुमन का दर्द समझा… शादी की तारीख… जब तक सुमन ना कहे…टालने को तैयार हो गया…
छः महीने तो मातम में ही निकल गए…
इस बीच सुमन सचमुच में कुहू की मां बन गई थी…
उसके लिए उसे छोड़ना बिल्कुल भी संभव नहीं लग रहा था…
दोनों का एक दूसरे के लिए प्यार बिल्कुल मां बेटी जैसा ही था…
कुहू के पिता जिग्नेश ने… उसे एक दो बार ले जाने की कोशिश भी की…
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उसके घर में… दादी के पास उसे छोड़ने की भी कवायत की…
मगर वह कहीं भी नहीं रह पाई…
बच्ची सुमन से अलग होते ही रो-रो कर जान बहाल कर लेती थी…
घर वालों ने सोचा कि… अतुल के बजाय जिग्नेश से ही सुमन का ब्याह कर दिया जाए…
मगर सुमन और अतुल दोनों एक दूसरे का साथ छोड़ने को तैयार नहीं थे…
साल बीतते बीतते अतुल के घर वाले भी शादी के लिए दबाव बनाने लगे…
मगर सुमन कुहू को छोड़कर आने को तैयार नहीं थी… और अतुल के घर वाले बच्ची के साथ उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थे…
अजीब उथल-पुथल भरी हो गई थी उनकी जिंदगी…
पर इन सबके बीच जो एक चीज सबसे प्यारी और सुकून देने वाली थी… वह था नन्ही कुहू और मासी से मां बनी… सुमन का प्यार…
इसी तरह कशमकश के बीच 2 साल बीत गए…
जिग्नेश ने दूसरी शादी कर ली… अब वह अपनी बेटी को साथ रखना चाहता था…
पर कुहू अब भी तैयार नहीं थी… वह अपनी नई मां को कभी मां नहीं मान पाई…
हार कर जिग्नेश को … कुहू को सुमन के पास वापस छोड़ना पड़ा…
आखिर अतुल ने ही अपने माता-पिता को मना लिया…
सुमन को कुहू के साथ स्वीकार करने के लिए…
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जिग्नेश की रजामंदी से… अतुल और सुमन ने शादी करके कुहू को गोद ले लिया…
रजनी के चले जाने के बाद… जो वादा सुमन ने कुहू से किया था… मासी से मम्मा बनने का…
वह उसने पूरा किया… जीवन के अंतिम क्षण तक… वह कुहू के लिए उसकी मम्मा ही बनी रही…
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा
ये जीवन का सत्य है