मार्गदर्शन – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

पारो !  क्या हो रहा था बराबर वाले घर में सुबह- सुबह….  मेरी जेठानी की  ऊँची- ऊँची आवाज़ें आ रही थी कि 

बेटा , इतने जतनो से पाला और इस कल की आई के लिए हमें छोड़कर जा रहा है । 

अमित कहीं चल पड़ा या सुमित  ? अच्छा हुआ…. इनके साथ ऐसा ही होना चाहिए था । 

हाय बीबीजी , पूछो मत ऐसी लड़ाई हुई कि क्या बताऊँ? वैसे अंदर ही अंदर खटपट तो चलती रहती थी पर कल तो हद ही हो गई, मैं  तो बड़े कमरे में पोंछा लगा रही थी कि रसोई में से भगोना गिरने की आवाज़ आई,  आवाज़ सुनकर जब मैं देखने के लिए रसोई में गई तो मिनी भाभी रोते हुए कह रही थी कि  मुझे  एक गिलास दूध लेने से मना कर दिया है बस ….. समीर भैया ने भाभी से  सामान बाँधने की बात कही क्योंकि  रोज़- रोज़ की कहासुनी से वे तंग हो चुके  थे ।

फिर….?

फिर क्या?  अचानक आँटी जी का हाथ दूध के भगोने पर जा लगा  या उन्होंने जानकर गिराया कि  पूरा दूध बिखर गया । उसके बाद …. बीबीजी , मैं तो वहाँ से निकल आई । अब दोपहर के बाद बर्तन  साफ़ करने जाऊँगी…. सुबह कुछ काम छोड़ आई थी, अब पूरा करूँगी । 

जो जैसा बोता है, वैसा ही काटता है । जेठानी जी को अपने कर्मों को तो भोगना ही पड़ेगा । मेरी सास बताती थी कि ससुर जी की मृत्यु के समय केवल जेठजी का ब्याह हुआ था और तीनों बहनें तथा तेरे अंकल जी बहुत छोटे थे पर जब इन्होंने देखा कि ननदों और देवर की ज़िम्मेदारी है …..तो माँ जी से लड़ाई- झगड़ा करके अपने घर जा बैठी और छह महीने बाद इस शर्त पर आई कि अलग होकर रहूँगी । 

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इनके डर से जेठजी खर्चा भी नपा-तुला देते थे । वो तो माँजी की मदद उनके भाई करते थे और माँजी भी सर्दियों में लोगों के स्वेटर बुनकर , कभी गर्मियों में जवें तोड़कर थोड़ा बहुत पैसा कमा लेती थी । ये तीनों भाई- बहन पढ़ाई- लिखाई में बहुत होशियार थे इसलिए ज़्यादातर फ़ीस माफ़ हो जाती थी । माँजी का साथ तो भगवान ने दिया , पारो ! ….जो तीनों ननदों की शादियों में भी ज़्यादा खर्च नहीं हुआ, तीनों को  ससुरालवाले माँगकर ले गए । और तेरे अंकल ने तब शादी की जब कमाने लगे । नहीं तो, जेठानी जी तो यही सोचती थी कि माँजी उनके सामने हाथ पसारें । बहुत सीधी थी मेरी सास, उन्होंने ज़ुबान से कुछ नहीं कहा पर भगवान दिल की ज़ुबान सुनता है । 

हाँ बीबीजी, ये तो है ही । अच्छा चलती हूँ…. आज तो मेरे भी सिर में सुबह- सुबह दर्द हो गया पर मिनी भाभी भी कम नहीं है , ये तो मेरी आँखों देखी और कानों सुनी है वो भैया को भड़काती रहती हैं । दोनों सास- बहू की एक मिनट नहीं बनती । 

पारो के जाने के बाद रमा ने बड़ी ननद को फ़ोन किया और जेठ  के घर  में घटी सुबह वाली घटना की जानकारी देते हुए कहा 

दीदी, अब पता चलेगा सुमन भाभी को , कि जब बहू- बेटा छोड़कर जाते हैं तो दिल पर क्या बीतती है? और उन्होंने तो अपनी बेक़सूर सास को ज़िंदगी के उस मुक़ाम पर छोड़ा था जब उन्हें बेटे-बहू की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी । 

छोड़ो ना रमा , तुमसे तो बात भी करती हैं सुमन भाभी , पर हम तीनों बहनों से तो रिश्ते ही ख़त्म कर लिए । बताओ, अगर साल में कभी एक आध बार बात कर लें या बुला लें तो कौन सी कमी आ जाएगी? पर ठीक है, हम तो हमेशा अपने भाई के परिवार की कुशलता की कामना ही करती हैं । 

रमा ने ननद के साथ अपने मन की बातें साझा कीं और बाहर बरामदे में बैठकर अख़बार पढ़ने लगी । तभी उसने देखा कि गेट को खोलकर जेठानी सुमन अंदर आ रही है । उन्हें देखकर रमा अख़बार एक तरफ़ रखते हुए बोली—

आइए भाभी….

संजय ऑफिस चला गया क्या ? रमा , बहू ने जीना मुहाल कर दिया  है…..पता नहीं, घर को तोड़ने पर क्यों अड़ी हुई है?  बिन हुई बात को ऐसे पेश करती है अमित के सामने कि उसे मिनी निर्दोष लगती है और मैं दोषी । अब तुमने तो देखा नहीं पर संजय ने तो अपनी आँखों से सब कुछ देखा है कि मैंने और तुम्हारे जेठ ने इस घर को कैसे जोड़ के रखा था । वो तो जब मैं बीमार रहने लगीं तो माँजी ने ही खुद कहा कि सुमन अलग रसोई कर लें वरना  परिवार की ज़िम्मेदारी  के बीच आराम तक का समय नहीं मिलेगा । और इस मेरी बहू को देख , एक समय की रोटी पकाती है मेरी और सुमित की ….. वे भी पकानी , भारी लगती हैं । सुबह आवाज़ तो इधर भी आई होगी पर तुमने तो बाहर निकलकर ये भी ना देखा कि क्या मामला है, पारो ने भी बताया ही होगा । 

हाँ भाभी , ये तो सही है कि मैंने अपनी आँखों से नहीं देखा कि मेरे आने से पहले आपने क्या-क्या किया पर सुना ज़रूर है कि बापूजी के गुजरने के बाद आप किन शर्तों पर अपने मायके से यहाँ लौटी थी, माँ जी ने किस तरह इन चारों भाई- बहनों को पढ़ाया-लिखाया । 

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पर भाभी , एक बात मैंने अपनी आँखों से जरुर देखी है कि तीनों ननदों को आप कभी टोकती नहीं है । भाभी, संजय के  साथ भी आपने रिश्ता इसलिए बनाकर रखा है क्योंकि अमित ने मिनी से  शादी की ज़िद पकड़ ली थी और मिनी के मामा मेरे भाई के अच्छे दोस्त हैं । 

भाभी, बुरा मत मानना पर आपने जो बोया है , काटना तो पड़ेगा ही । कहते हैं ना कि स्वर्ग और नरक इसी धरती पर है तो माँजी के साथ किए दुर्व्यवहार का दंड तो भोगना ही पड़ेगा । 

रमा….. मैं तो अपना समझकर मन का दर्द बाँटने आई थी पर तुम तो मेरे लिए मन में ज़हर भरे बैठी हो … ये तुम्हारी लाड़ली ननदों का भरा हुआ है ना ? 

भाभी, आप अब भी ईश्वर के इंसाफ़ को समझने की कोशिश नहीं कर रही … मैं तो आपको अपना समझकर याद दिला रही हूँ कि सास का रुप छोड़कर घर में थोड़ा संतुलन बनाना सीखें । परिवार में मैं नहीं… हम का भाव रखना चाहिए । क्या मिनी को पता नहीं चला होगा कि एक बहू के रूप में आपने अपनी ज़िम्मेदारी कैसे निभाई थी, क्या वह अब नहीं देखती कि अपने ससुराल वालों से आपके संबंध कैसे हैं? भाभी!  बाक़ी आप बड़ी हैं, मुझसे अधिक अनुभवी है …. सोच- विचार लीजिए और एक ओर बात ….. अगर कोई गलती हो भी जाए तो स्वीकार करने में देर नहीं करनी चाहिए । 

इतना सुनने के बाद सुमन वहाँ से चुपचाप चली गई । शाम को पति के लौटने पर रमा ने भाभी के आने और उनसे हुई बातचीत को पति संजय को बताया । 

रमा , बरसों की जो टीस मेरे दिल में दबी पड़ी थी, उसे आज तुमने शब्दों में बयां करने का जो साहस किया, सचमुच मैं  तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूँ । आख़िर भाभी को सच्चाई का अहसास तो कराया । उस घटना के पाँच- छह दिन बाद पारो ने रमा से कहा—-

बीबीजी, आदमी औलाद के ही क़ाबू में आता है । यूँ सुना कि आँटीजी ने मिनी भाभी से अपनी गलती की माफ़ी माँगी तब कहीं जाकर उन्होंने उनसे अलग होने का अपना फ़ैसला बदला है । 

रमा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया । तक़रीबन छह महीने बाद रमा की मँझली ननद के बेटे का रिश्ता तय हो गया । पारो के माध्यम से यह बात सुमन तक भी पहुँच गई । अगले ही दिन सुमन रमा के पास आई—-

रमा , मंजू  को फ़ोन तो मिला दो , बात करनी है…..

हाँ मंजू ! मैं सुमन …. तेरी बड़ी भाभी , जब भात न्योतने आओगी ना तो दोनों भाइयों के यहाँ की तैयारी के साथ आना । देख…. बड़ी भाभी होकर भी मैंने गलती की, जिसे मैं स्वीकार करती हूँ ….

जेठानी के रूँधे गले को देखकर रमा ने फ़ोन लेकर कहा —

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दीदी , हम दोनों देवरानी- जेठानी अपनी ननद का इंतज़ार करेंगी, आने की तारीख़ बता देना …. बाक़ी गिले- शिकवे मिलकर दूर हो जाएँगे ।

इतना कहकर रमा ने जेठानी को बड़ी और छोटी ननद का नंबर देकर कहा—-

ये दोनों दीदियों के नंबर है, शायद आप उनको भी निमंत्रण देना चाहेंगी । 

हाँ रमा … तुम जैसी मार्गदर्शन करने वाली हो तो बिगड़ी बात सँभल जाती है ।

करुणा मलिक 

# बेटा , इतने जतनो से पाला और इस कल की आई ……….#

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