उत्तर भारत में जून माह के मध्य की दोपहरियां सूरज की रोशनी के सैलाब के साथ साथ उसका सारा ताप भी ले आती हैं। कस्बे से शहर को जाती सूनी और तपती सड़कें प्यास से व्याकुल मुसाफिर को मृग मरीचिका का भ्रम देती हैं । शहरों का हाल तो और भी बेहाल है। तेज गर्मी , चुन्धयाई धूप और साथ में भीषण उमस, समूचे तन को पसीने से भिगो ही देती है साथ में मन भी बेचैन हो उठता है। किंतु कुछ ही दिनों बाद होने वाली सुधा पावस के आगमन की कल्पना उसे भिगोए रखती है।
बाहर की तीखी धूप और जला देने वाली गर्मी से बेखबर अदिति “क्षीर सागर” के ठंडे और नीम अंधेरे में डूबे डाइनिंग हॉल में चिंता में निमग्न बैठी थी। उसने फिर से मोबाइल ऑन किया। 3:00 बज चुके थे। यहां आए लगभग सवा घंटा हो चुका है। अंश का अभी तक कोई अता-पता नहीं। उसका मोबाइल भी नेटवर्क कवरेज से बाहर आ रहा है। अनजानी आशंकाओं से अदिति का दिल धड़क उठा।
एक ही कंपनी में कार्यरत अंश और अदिति के मध्य पहले दोस्ती हुई , फिर नजदीकियां बढ़ने लगी जो धीरे-धीरे कब प्यार में बदल गई, दोनों को पता ही नहीं चला।
एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाला हंसमुख और खुशमिजाज अंश दिखने में भी कम हैंडसम नहीं था। अदिति की जीवनसाथी की सारी कल्पनाओं पर खरा उतरता था। बस एक ही तो कमी थी उसमें ! लेकिन वह कमी भी शादी के बाद आदिति दूर कर देगी, ऐसा उसे विश्वास था।
आज का दिन, समय और स्थान अंश ने ही चुना था। आज उन्हें अपने रिश्ते पर आखिरी मुहर लगानी थी। पारिवारिक सहमति तो पहले ही मिल चुकी थी।
“लेकिन अंश अभी तक क्यों नहीं आया? उसका मोबाइल भी नहीं लग रहा! कोई मैसेज भी नहीं है!!” अदिति कॉफी के दूसरे कप से सिप लेती हुई फिर से अनहोनी की आशंकाओं के विस्तीर्ण समंदर में डूब गई।
“ओऽऽफ्फ! बाहर कितनी ह्यूमिडिटी है!! यहां आकर चैन मिला है। “
ऊब और परेशानी में डूबे पुरुष स्वर को सुन बहुत देर से चिंतित और आशंकाओं में निमग्न अदिति का ध्यान बगल की टेबल पर आकर बैठ कर साइड में शॉपिंग बैग्स रखते उस अधेड़ जोड़े की ओर गया।
“कितना अंधेरा है यहां!! हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा। न जाने यह लोग रेस्तरां की अधिकतर बत्तियां बुझा कर क्यों रखते हैं?” महिला स्वर में शिकायत थी।
पुरुष हॅऺ॑सा।
“इतना महंगा रेस्तरां तेरे मेरे जैसे शॉपिंग से थके शादीशुदा लोगों के लिए नहीं होता। यहां आने वाले जोड़ों को अंधेरों की ही दरकार होती है।”
“वह सब तो ठीक है ! पहले यह बताओ तुमने पेमेंट के लिए मेरा क्रेडिट कार्ड क्यों यूज़ किया?” गुस्से में सना सवाल उछाला गया।
“मेरे कार्ड की लिमिट खत्म हो गई है ना इसलिए।” सवाल को बेहद शांति से पुरुष ने लपक लिया और ठंडे बस्ते में डाल दिया।
“कुछ दिन पहले ही तो मैंने तुम्हारे अकाउंट में वेंडर के पेमेंट के लिए ₹200000 डाले थे जो तुमने अब तक नहीं किया। तुमने वह रुपए भी खर्च कर दिए और क्रेडिट कार्ड की लिमिट भी खत्म कर दी? कहां गया इतना पैसा ?”
महिला भड़क कर कुर्सी से खड़ी हो गई।
‘रिलैक्स बेबी! रिलैक्स!! रुपया तो खर्च करने के लिए ही होता है ना! तो खर्च हो गया!!”
“लेकिन कहां खर्च किया इतना रुपया?”
महिला स्वर में आई तेजी ने आसपास की टेबलों का ध्यान भी आकर्षित कर लिया था। अब तक सर झुकाए वार्तालाप सुनती अदिति ने भी उन दोनों की ओर देखना शुरू कर दिया।
“सुनो! यहां तमाशा मत बनाओ । घर चल कर शांति से बात करेंगे।” पुरुष स्वर सख्त हो उठा था।
“घर ? घर को तुमने घर छोड़ा ही कहां है! कोई कामकाज तुमसे होता नहीं! बुटीक के भरोसे बड़ी मुश्किल से मैं घर को चलाती हूं। सारी मेहनत मैं करती हूं, तुम्हारे जिम्मे सिर्फ वेंडर्स का पेमेंट छोड़ा है। मुझे अभी और यहीं बताओ, रुपया कहां गया?”
“यार! परसों इंडिया और इंग्लैंड का वनडे मैच था ना। इंडिया के जीतने की पूरी गारंटी थी। उसी पर सारा रुपया लगा दिया। सोचा था, जीत गया तो तुम्हें नई गाड़ी गिफ्ट दूंगा। बदकिस्मती से इंडिया हार गया और मेरे रुपए डूब गए।”
महिला सर पकड़ कर धम्म से कुर्सी पर बैठ गई। धीमी धीमी सुबकियां वातावरण में फैलने लगी । पुरुष चुपचाप अपने मोबाइल में कुछ देखने लगा।
कुछ देर बाद रूंधे हुए शब्द बाहर निकलने लगे।
“पापा पहले से जानते थे कि तुम्हें जुए सट्टे का शौक है। मुझे उन्होंने बहुत समझाया था। लेकिन प्यार में अंधी मैं सोचती रही कि शादी के बाद तुम्हारी यह आदत छुड़वा दूंगी। कितनी गलत थी मैं। अच्छी खासी तुम्हारी बैंक में नौकरी थी। वहां से भी रुपया गबन कर सट्टे में लगा दिया। अपने गहने बेचकर बैंक का रुपया लौटा कर तुम्हें जेल जाने से तो बचा लिया लेकिन तुम्हारी नौकरी नहीं बचा पाई।”
पुरुष ने अपनी निगाहें मोबाइल से नहीं हटाई। टेबल अटेंडेंट के आने पर धीमे स्वर में उसने कॉफी का आर्डर दिया, जो कुछ देर बाद आ गई। अब दोनों के बीच की बातचीत बहुत धीमी थी। चाह कर भी अदिति सुन नहीं पाई।
कुछ ही देर में दोनों पति पत्नी अपनी अपनी कॉफी खत्म कर वहां से चले गए।
अदिति ने फिर से अंश को फोन मिलाया ।
इस बार रिंग जा रही थी। फोन उठा लिया गया।
“अंश! तुम्हारा फोन आउट ऑफ नेटवर्क क्यों आ रहा था?”
“सॉरी यार ! मैं रेस्त्रां के बेसमेंट में था ।वहां नेटवर्क नहीं आता।”
अंश की आवाज में एक लहराहट थी जिसका कारण अदिति से छुपा नहीं था।
“कितनी देर में यहां पर आ रहे हो?”
“बस 10 मिनट में पहुंचता हूं।”
वास्तव में 10 मिनट बाद “क्षीर सागर” के गेट पर अंश खड़ा उस नीम अंधेरे में अदिति को ढूंढने का प्रयास कर रहा था।
कुछ ही देर में दोनों आमने सामने बैठे थे।
“तुम लेट कैसे हो?”
“सॉरी बॉस! घर से निकला तो सामने ही विक्रम मिल गया। उसके साथ दो पुराने दोस्त और भी थे। वे माने नहीं और मुझे अपने साथ “परफेक्शन” में ले गए जहां थोड़ी बीयर पीनी पड़ी।”
“तुम्हें पता है कि तुम्हारा यह शौक मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। मेरा कजन सिर्फ इसी शौक के कारण एक्सीडेंट होकर मौत का शिकार हुआ है। “
“सॉरी !सॉरी !!सॉरी!!! मैंने तुम्हें विश्वास दिलाया तो है कि मैं शादी के बाद यह पूरी तरह छोड़ दूंगा।”
अदिति की आंखों में अविश्वास था।
“कोई बात नहीं। लेकिन तुम आज बात करने काबिल नहीं बचे हो। फिर कभी बैठ कर बात करते हैं।”
कहते हुए अदिति ने अपना पर्स उठाया, काउंटर पर पेमेंट किया और बाहर निकल गई। अंश उसके पीछे पीछे आया, लेकिन तब तक वह अपनी स्कूटी उठा, बिना पीछे देखे जा चुकी थी।
अब उसका सर दुख रहा था। वह कुछ ही दूर स्थित “शीश महल” में चली गई।
पास के टेबल पर एक आंटी और एक लड़की बैठे थे।
“कभी भी यह मत सोचना कि तुम्हारा बॉयफ्रेंड अपनी आदतें बदल लेगा।”
“नहीं आंटी ! उसने मुझे प्रॉमिस किया है कि शादी के बाद यह सब हरकतें बंद कर देगा।”
“मैं तुम्हें अपने अनुभव से समझा रही हूं। अगर किसी से शादी करो तो यह मान कर चलो कि जो वह आज है वही मरते दम तक रहेगा। अगर तू उसे आज की स्थिति में सहन कर सकती हो, तो ही शादी करना।”
“आंटी! मैं उसे सुधार दूंगी!”
“मैंने भी यही गलती की थी। इंसान का बच्चा कोई मौसम नहीं जिसका बदलना अपरिहार्य हो।आज शादी के 30 साल बाद भी मेरा हस्बैंड नहीं सुधरा। वह आज भी इधर उधर मुंह मारने की आदत नहीं छोड़ पाया।”
अदिति चुपचाप दोनों की बातें सुन रही थी। कुछ देर बाद उसने अंश को फोन लगाया।
“सॉरी अंश! मैं आज के बाद तुम से मिलना नहीं चाहती दोबारा संपर्क का प्रयास मत करना।”और उसने फोन काट दिया।
दो ही मिनट बाद अंश का फोन नंबर अदिति ब्लॉक कर चुकी थी।
स्वरचित और मौलिक
मधुसूदन शर्मा