मनोकामना – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

सिद्धांत! मैं कितनी खुश हूँ, बता नहीं सकती….

अच्छा….. हमें भी तो पता चले तुम्हारी ख़ुशी का  ? 

भाई दूज पर भइया- भाभी दोनों हमारे पास आ रहे हैं, अभी-अभी भाभी का फ़ोन आया था । शादी के बाद मेरी पहली भाई – दूज है । पहले मैंने सोचा था कि हम जाएँगे पर आज भाभी ने कहा कि वो ही आ रहे हैं , है ना ख़ुशी की बात ?

सिद्धांत, कहाँ खो गए ? क्या सोचने लगे ?

सिद्धांत….. क्या हुआ? बोल क्यों नहीं रहे ? क्या भाई-भाभी के आने की खबर से तुम्हें अच्छा नहीं लगा? 

क्या एक कप चाय बना दोगी ? 

चा….य , अजीब आदमी हो, मैं क्या बात कर रही हूँ और तुम क्या बोल रही हो ? 

महक , प्लीज़….. मेरे सिर में दर्द है ।

सिरदर्द ? अचानक ? भाई-भाभी के आने की खबर से ? 

महक ने देखा कि सिद्धांत वहाँ से जा चुका था । वह रुआँसी हो गई और अपने कमरे में जाने के लिए  जैसे ही मुड़ी , सास को सामने देखकर उसकी आँखों से आँसू लुढ़क गए ।

महक बेटा! क्या हुआ? सिद्धांत कहाँ है? ऑफिस से अभी तो आया था । 

मम्मी, वो सिद्धांत…न जाने क्यों? अच्छा भला बात कर रहा था कि अचानक सिर दर्द कहने लगा , अजीब सा हो गया था ।

ऑफिस में ज़्यादा काम की वजह से हो गया होगा …. जा चाय बनाकर दें और थोड़ी देर उसके पास बैठ कर हल्की- फुल्की बातें कर लें । आदमी कभी-कभी बाहर से न जाने कौन सी टेंशन लेकर आता है । 

पर मम्मी, वो तो एकदम सही था , जैसे ही मैंने कहा कि भाई दूज पर भैया- भाभी आ रहे हैं… चुप हो गया और सिरदर्द…..

क्या …क्या….. दोबारा बोलना तो ज़रा …

मम्मी, जैसे ही मैंने कहा कि भाई दूज पर…

ओह मेरा सिद्धांत…. महक ! जा बेटा पहले उसको एक कप चाय देकर आ और देख, वहाँ बैठना मत … प्लीज़ बेटा , अपनी और मेरी चाय लेकर मेरे कमरे में आ जाओ ।

पर अभी तो आप कह रही थी कि उसके साथ बैठकर चाय पिऊँ, हल्की फुल्की बातें करूँ ?

हाँ बेटा, तब तक तुमने मुझे ये नहीं बताया था कि कौन सी बात सुनकर सिद्धांत चुप हो गया था, तुम चाय लेकर आ जाओ ।

थोड़ी देर बाद महक चाय लेकर सास के कमरे में पहुँच गई । 

ये लो मम्मी, आपकी चाय । सिद्धांत को दे आई हूँ पर वह अब भी गुमसुम बैठा है । यहाँ तक कि चाय रखने का भी उसने इशारा किया । 

हाँ बेटा, ऐसा ही है मेरा सिद्धांत, बहुत ही संवेदनशील और भावुक । जब भी राखी या भाई दूज का त्योहार क़रीब आता सिद्धांत को अपनी छोटी बहन पूजा याद आती है ।

बहन ? क्या सिद्धांत की कोई बहन थी मम्मी? पर उसने या आपने तो कभी कुछ नहीं बताया । 

क्या बताती ? मैं तो चाहती हूँ कि उसका नाम भी किसी की ज़ुबान पर ना आए । ख़ासतौर पर सिद्धांत के सामने , पर चाहते हुए भी, इन दो त्योहारों पर सिद्धांत को वो याद आ ही जाती है । 

जब से सिद्धांत ने बोलना सीखा था वो हमेशा कहता था— मम्मी मेरी बहन कब आएगी, ले आओ ना मेरी काकू बहन को । पर चाहते हुए भी मैं दुबारा माँ नहीं बन पा रही थी । एक दो बार डॉक्टर को भी दिखाया पर सब कुछ नार्मल था । धीरे-धीरे समय गुजरता गया और सिद्धांत भी बड़ा होता चला गया पर उसकी बहन वाली इच्छा ज्यों की त्यों बरकरार रही । किसी मिलने जुलने वाले के बच्चा होता तो रो रोकर घर सिर पर उठा लेता – मेरी काकू बहन को क्यों नहीं लाती ? 

और सिद्धांत के बारह साल बाद एक दिन मुझे पता चला कि सिद्धांत का भाई या बहन आने वाला है । 

हाय  ! बारह साल बाद , मम्मी आपको कितना अजीब लगा होगा ? 

पूछ मत , मैं तो शर्म से गड़ गई पर क्या करती क्योंकि अम्मा भी इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी । फिर एक दिन सिद्धांत ने अपनी दादी से सुन लिया कि उसकी काकू बहन आने वाली है । इतना बड़ा हो गया था पर अगले ही दिन सारे पड़ोस में बता आया । कोई प्लास्टिक के खिलौने वाला फेरी लगाता तो ज़बरदस्ती खरीदवाता । 

भगवान की करामात कि रक्षाबंधन वाले दिन सुबह चार बजे उसकी बहन राखी बाँधने आ पहुँची । सुबह उठते ही अम्मा ने उसे बताया तो वह अपने पापा के साथ अस्पताल जाते समय राखी ख़रीद कर ले गया और पूरा दिन अपनी बहन को गोद में लिए बैठा रहा । सिद्धांत को तो जैसे खिलौना मिल गया था । वह स्कूल से घर आकर जल्दी से पढ़ाई का काम निपटाता और अपनी बहन से खेलने लगता । 

अम्मा ने बिटिया का नाम पूजा रखा था । धीरे-धीरे पूजा तीन साल की हो गई और जिस दिन पहली बार सिद्धांत की उँगली पकड़कर स्कूल गई , वह फूला नहीं समा रहा था । 

उसी साल दीवाली के अवसर पर वे दोनों बच्चों और अम्मा के साथ  कुलदेवता पर जोत लगाने गई । अम्मा बहू के साथ पूजा-पाठ में लग गई और दोनों बच्चे वहीं आसपास खेलने लगे ।  अम्मा ने सिद्धांत को ख़ास हिदायत दी थी कि पूजा का ख़्याल रखें क्योंकि  वहाँ एक पुराना गहरा कुआँ था । भाई का हाथ छुड़ाकर पूजा कुएँ की तरफ़ तेज़ी से दौड़ी , इससे पहले की सिद्धांत उसे पकड़ता , वह कुएँ में गिर गई । उस साल वर्षा की अधिकता के कारण कुएँ में खूब पानी था । पूजा के गिरते ही सिद्धांत के मुँह से चीख निकली और वह बेहोश हो गया । बाद में कई घंटों की मशक़्क़त के बाद पूजा के मृत शरीर को बाहर निकाला गया । कई महीनों तक सिद्धांत का इलाज चला , काउंसिलिंग  हुई तब जाकर वह सामान्य हुआ , नहीं तो रात को चीख मारकर रोता था , सोते- सोते पूजा- पूजा करता था । 

मम्मी, शायद सिद्धांत के मन में कहीं अपराध बोध है कि वह अपनी बहन का ख्याल नहीं रख पाया । 

हाँ बेटा, समय हर घाव भर ही देता है । पर भाई- बहन के त्यौहार पर उसकी हताशा और निराशा चरम सीमा पर पहुँच जाती है । बस भगवान से प्रार्थना है कि अब तो एक बेटी हो जाए तुम्हारे, तभी नए रूप में सिद्धांत को पूजा मिलेगी । 

मम्मी, तो क्या मैं भाई-भाभी को भाई दूज पर आने से मना कर दूँ ? 

नहीं बेटा , सिद्धांत को नार्मल रहना सीखना पड़ेगा उसे सच्चाई स्वीकार करनी पड़ेगी । मैंने और तुम्हारे पापा ने भी तो अपनी बेटी को खोया है और भगवान की इच्छा को स्वीकार किया ।

भाई दूज पर महक के भाई- भाभी आए पर सिद्धांत भले ही दिखावे के लिए , खुश था , उनसे बातचीत कर रहा था लेकिन उसकी आँखें बता रही थी कि वह आज भी अपनी काकू बहन के लिए रो रहा है । टीका करवाने के बाद मेहमान चले गए । थोड़ी देर बाद महक बोली — सिद्धांत, चलो मंदिर चलते हैं पता नहीं क्यों, सुबह से ही बड़ी इच्छा हो रही है । 

हाँ बेटा, घूम आओ । सब्ज़ी भी ले आना । 

शायद दोनों सास- बहू सिद्धांत को व्यस्त रखने की कोशिश कर रही थी ताकि यह दिन किसी तरह गुजर जाए । 

जब वे  मंदिर जा रहे थे तो लोगों  एक भीड़ में से किसी के रोने की आवाज़ आई । 

महक , इतने लोग इकट्ठे क्यों हैं ? कोई एक्सीडेंट हो गया लगता …

जैसे ही वे दोनों भीड़ की तरफ़ मुड़े कि एक इक्कीस- बाइस वर्ष की लड़की लोगों के पैरों के बीच से निकलती सिद्धांत के पैरों से लिपट गई —- भाई! भाई! 

वह रो रही थी । उसके कपड़े जगह- जगह से फटे थे । कुछ मनचले लोग उस पर गंदे कटाक्ष कर रहे थे । 

ए पगली ! तू किससे शादी करेगी ? 

पगली ! नए कपड़े लेगी ? 

शर्म नहीं आती ? इस तरह की बातें करते हुए? अगर इसकी जगह तुम्हारी बहन होती ? 

सिद्धांत की बातें मनुष्यों की समझ में  ही तो आती  पर वहाँ तो उस समय पशु और दानव थे । 

सिद्धांत! चलो अपनी पूजा को घर ले चलते हैं….

पूजा …. तुम जानती हो महक ? 

हाँ मैं जानती हूँ कि तुम अपनी काकू बहन को कितना मिस करते हो , देखो भगवान ने फिर से तुम्हारी मनोकामना पूरी की है , मंदिर किसी ओर दिन चलेंगे, आशीर्वाद और प्रसाद तो मिल ही गया । 

दोनों उस लड़की के साथ को लेकर घर आए । 

मम्मी- पापा, बाहर देखिए हम अपनी पूजा को लाएँ हैं । 

थोड़ी सी सहानुभूति पाकर लड़की ने रोना बंद कर दिया था, थोड़ी सहमी सी थी  पर महक के कहने पर उसने थोड़ा सा खाना भी खाया । 

महक बेटा , ऐसे कैसे एक जवान अनजान और ऊपर से दिमाग़ी हालत ठीक नहीं….. कोई पुलिस का चक्कर ना पड़ जाए? 

मम्मी, जिस देश की पुलिस और प्रशासन ने आज तक इसकी सुध नहीं ली, आप क्या सोचती कि वे यहाँ आएँगे और अगर आए तो देखेंगे । मैं और सिद्धांत इसे लेकर डॉक्टर के पास जा रहे हैं । 

सिद्धांत और महक की कोशिश तथा दवाओं से छह महीने के भीतर ही लड़की पगली के स्थान पर पूजा बन गई । दवाओं और काउंसलिंग के द्वारा एक डेढ़ साल की रिकवरी के बाद कोई कह ही नहीं सकता था कि वह बस स्टैंड पर पड़ी वही अर्धविक्षिप्त लड़की है जिसे लोग पागल कहकर पत्थर मारते थे । 

वह एक ग्रेजुएट लड़की थी जो बदक़िस्मती का शिकार हुई थी । पाँच साल के बाद उसी डॉक्टर के एक परिचित से पूजा का विवाह हुआ जिसके इलाज से उसे नया जीवन मिला था । 

आज फिर भाई दूज है और सिद्धांत अपनी पूजा बहन का इंतज़ार कर रहा था । दीवाली की एक रात ने सिद्धांत के घर में अंधेरा कर दिया था पर सालों बाद वही त्यौहारों का मौसम खुशियों के दीप लेकर  आया था । 

एक बार रक्षाबंधन के दिन काकू बहन के रूप में तो दूसरी बार भाई दूज के दिन पूजा के रूप में सिद्धांत की मनोकामना पूर्ण हुई थी । 

लेखिका : करुणा मलिक

#ख़ुशियों के दीप

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