…थोड़े दिनों बाद ही दिवाली है…..सुमेर अत्यधिक उत्फुल्लित और उत्साहित था …इस बार आराम से अपनी पत्नी और बच्चों के साथ स्वतंत्रता पूर्वक दिवाली मनाऊंगा….पिछली दिवाली पर मां पिताजी थे….हर बात पर टोका टाकी….ये ऐसा करना था ..वो वैसा करना चाहिए था….!!
उसकी तो बहस हो गई थी पिता जी से….. साफ कह दिया था उसने अब से आप लोगो के साथ दिवाली नहीं मनाऊंगा ..कुछ मजा नहीं आता है…पिताजी तो एकदम चुप से रह गए थे लेकिन मां ने जरूर टोका था …अरे बेटा त्योहार के दिन ऐसा नहीं कहते …तीज त्योहार तो पूरे परिवार को जोड़ने का काम करते हैं….सबके साथ ही मनाए जाते हैं….खासकर ये दिवाली का त्योहार……”लेकिन जुबान से निकली बात इस तरह इतनी जल्दी फलीभूत हो जाएगी ये तो सुमेर ने भी नहीं सोचा था…!
दिवाली के चंद दिनों बाद ही उसका ट्रांसफर ऑर्डर आ गया था और वो दूसरे शहर आ गया था अपनी पत्नी और बच्चों के साथ……..!
…..आज पत्नी शुभी के साथ शाम को दिवाली की शॉपिंग करने जाऊंगा …. दोस्तों के साथ दिवाली पार्टी करने पर भी शुभी के साथ प्लान करना है…!…इस विचार से उत्साहित होकर उसने जल्दी जल्दी ऑफिस का काम निबटाया और जल्दी से घर पहुंच गया ….अरे शुभी कहां हो ….अपने हाथ की एनर्जेटिक चाय पिला दो फिर फटाफट शॉपिंग के लिए चलो…आज दिवाली की मनमाफिक खरीदी करेंगे कोई रोक टोक नही है….सोचता हूं इस बार यहां अपने सहकर्मियों और दोस्तों के लिए भी गिफ्ट्स खरीद लूं!!
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….सुमेर ने घर पहुंचते ही शुभी को आवाज लगाई…..कोई प्रत्युत्तर ना आने पर ढूंढते हुए किचन तक पहुंच गया ….. अस्त व्यस्त शुभी सुमेर को देख रुआंसी हो उठी ….इतनी कोशिश कर रही हूं शकरपारे ठीक से बन ही नहीं पा रहे हैं…मां कितने बढ़िया बनाती हैं….काश मां यहां होती ….!….मां दिवाली पर शकरपारे जरूर बनाती थीं सुमेर को भी याद आ गया…..
मां को याद कर रही हो शुभी तुम.!!!सुमेर ने आश्चर्य से पूछा …. तुम्हीं को तो सबसे ज्यादा टोका टाकी करतीं थीं मां….!शुभी को कुछ बनाना नहीं आता….ठीक से साड़ी बांधने का भी सहूर नहीं है……पूजा के समय भी….. दिए पहले से नहीं धोए थे … रूई बाती…लक्ष्मी गणेश मूर्ति इतनी बड़ी क्यों खरीद लाए…!…. अपने दोनों बच्चों का ख्याल नहीं रख पाती है ठीक से तो मेरे बेटे का खाक ख्याल रखती होगी….!!!…कितना बंधन था शुभी उन लोगों के साथ रहने पर ….मैं तो तंग आ गया था .. मां तो मेरे खाने पीने का भी कोई ध्यान नहीं रखती थीं..”सुमेर कहता जा रहा था ….
.”…..प्लीज सुमेर …..शुभी ने बीच में ही टोक दिया…. तुम्हें ये सब याद है पर ये याद नहीं कि दिवाली के काफी पहले से ही मां मुझे बिना बताए सभी पकवान बना कर मेरा इंतजार करती रहती थीं …मेरे ऑफिस से आते ही प्लेट भर के सारी चीजे मेरे सामने रख कर चकित कर देती थीं….मेरे मुंह से तारीफ सुनकर उनके चेहरे पर आत्मसंतुष्टि की कैसी चमक सी आ जाती थी…..और…मेरे लिए दिवाली की साड़ी तो मां ही लातीं थीं ….फिर कितने शौक से अपने हाथों से पहनाती भी वहीं थीं…सीधे पल्ले की साड़ी बांधनी तूझसे आती ही नहीं मुझे ही बांधना पड़ता है …..
दुलार से झिड़की भी देती जाती थीं और बहुत प्यार से मुझे तैयार भी करती जाती थीं…..मेरी लक्ष्मी बहू है तू तो…..और…. सुमेर अपने दोनों पोते पोतियों से तो इतनी मुहब्बत है उन्हें कि कई बार मैं जान बूझ के बच्चो की तरफ ध्यान नहीं देती थीं……ऐसे मौकों पर मां जिस अतिरिक्त उत्साह और लाड़ इन बच्चों पर लुटा कर खुश हो जाती थी ..वो देखना मुझे इतना सुकून देता था कि उसके लिए मैं उनकी ये छोटी मोटी झिड़कियां सहर्ष स्वीकार लेती थी…..
…और हां सुमेर तुम्हारे खाने पीने का वो मुझसे भी ज्यादा ख्याल रखती थीं…पर शादी के बाद मां का अधिकार भरा लाड़ बेटे की पत्नी को बुरा ना लगे इसलिए वो स्वयं अनिच्छा से ही तुम्हारी जिम्मेदारियों से किनारा कर लेती थीं….
सुमेर आश्चर्य चकित सा सुन रहा था……
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…सुमेर सच बताऊं तुम्हें ऐसा बुरा व्यवहार उनके साथ नहीं करना चाहिए था…पिताजी भी बुजुर्ग हो चले हैं…..ये बंधन है ….बहुत प्यारा सा अनमोल बंधन है….मैं तो उनकी बहू हूं पर तुम तो उनके बेटे हो ना तुम्हे उनकी इच्छा अनिच्छा खुशी या दुख का ख्याल रखना चाहिए ….. दोस्तों के लिए गिफ्ट लेने की याद है तुम्हें पर अपने मां पिताजी के लिए क्या दिवाली गिफ्ट लोगे…!ये नहीं सोच रहे हो….!!…. इस दिवाली अकेले होंगे…..कितना बुरा लग रहा होगा उन्हें….जब मुझे हर बात पर उनकी याद यहां आ रही है तो वहां वो लोग हम सबको कितना अधिक याद कर रहे होंगे……..!!
ऐसा नहीं है शुभी वो वहां बहुत मजे में हैं उन्हें हमारी याद बाद नहीं आ रही होगी ….तुम चलो शॉपिंग करनी है….सुमेर ने कह तो दिया पर उसका उत्साह अब समाप्तप्राय था……!
….तुम्हारे साथ शॉपिंग का मन ही नहीं हो रहा है…. हर बार मैं और मां साथ साथ शॉपिंग करने जाते थे कितना मजा आता था….पूजा की तैयारी ….घर की सजावट….शानदार डिनर…..सब मां ही तो करतीं थीं….मुझे तो बस रंगोली सजाने का काम देती थीं….घर के दरवाजे पर सुंदर रंगोली देख कर लक्ष्मी माता यहीं आएंगी इसलिए ये सबसे महत्वपूर्ण कार्य तू ही करेगी शुभी…..!मुझे तो सच में हर बात पर मां ही याद आ रही हैं…!कहते कहते सच में शुभी का गला भर आया …… तुम्हें याद है पिताजी पटाखे फोड़ते समय पूरी तरह से बच्चों के पास ही कुर्सी रख कर डटे रहते थे ….हम दोनों तो अपने फ्रेंड्स के साथ मस्त हो जाते थे …
..बच्चे भी दादाजी की बहुत याद कर रहे हैं…..कह रहे थे इस बार पटाखे फोड़ने में पापा तो पूरे टाइम डांटते ही रहेंगे …. मज़ा नहीं आएगा…दादाजी के साथ कितना मज़ा आता था…!
……शुभी की बातें सुनते सुनते सुमेर के तो मानो दिल में उजाला सा हो गया वो तो अभी तक यही समझता था शुभी भी स्वतंत्र ही रहना चाहती है….पर अब उसका दिल मां पिताजी की याद कर के आकुल और अधीर हो उठा ….दोस्त ..पार्टी..गिफ्ट ..सब बेमानी प्रतीत होने लगा..!….शुभी चलो इस बार भी मां के ही हाथों के शकरपारे खायेंगे उन्हीं के साथ ही असली दिवाली मनाएंगे हम सब…मैं जानता हूं उनके लिए सबसे बड़ा दिवाली गिफ्ट यही होगा…!…”..सच पापा …! दोनों बच्चे शायद यही सुनने को बेताब थे …..तत्काल तैयारी करके सभी लोग मां पिताजी के पास रवाना हो गए……
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…मेरी तो आंख सुबह से फड़क रही थी तभी मैं समझ गई थी तुम लोग आ रहे हो …मां तो जैसे उनके आगमन की राह ही देख रही थीं सबको आया देख कर निहाल हो गई थीं….शुभी की आरती उतार कर बोलीं मेरी लक्ष्मी बहू तो आ गई मेरी तो आज ही दिवाली हो गई है ….!
हमारा परिवार भी एक दीप की भांति होता है बेटा जिसमें सभी परिवार जनों के भरे लबालब प्यार और स्नेह से भीगी बाती विश्वास का उजियाला विसरित कर हर प्रकार के अंधेरे को दूर करती रहती है…..ईश्वर मेरे परिवार के इस दीप को हमेशा यूं ही प्रज्जवलित रखना ….!…देख शुभी मैंने सारे पकवान तुझे चखाने के लिए तैयार कर दिए हैं….मां ने पूरी प्लेट भरके पकवान शुभी के सामने रखते हुए भावभीने स्वर में कहा तो शुभी आनंदातिरेक में हैप्पी दीवाली मां कहते हुए उनसे लिपट ही गई… और सुमेर पिताजी के चरण स्पर्श करते हुए उनके अनमोल आशीर्वाद और स्नेह भरे स्पर्श में जैसे अपनी गलतियों की माफी मांग रहा था…..तभी दोनों बच्चे ….दादाजी ..दादाजी इस बार पिछले साल से भी ज्यादा फटाखे फोड़ना है हम दोनो अब बड़े हो गए हैं…जल्दी से ज्यादा से रुपए निकालिए ….शोर मचाने लगे तो….” हां भाई महंगाई भी तो बढ़ गई है कहते हुए पिताजी भी जोर से हंसते हुए बटुआ निकालने लगे…..
…..वास्तव में मन के दीप जलाना ही दिवाली मनाना है और पूरे परिवार के साथ ही तो असली हैप्पी दीवाली है…सुमेर पिताजी की उन्मुक्त वत्सल हंसी के साथ हंसते हुए गदगद होकर सोच रहा था…!
#परिवार
लतिका श्रीवास्तव