“मन की सीमा रेखा” – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

हां तो भई… सभी लोग  हाल में आ जाओ, जीजी की बेटी की शादी में भात में हम लोगों को क्या-क्या देना लेना है उस पर विचार विमर्श कर लेते हैं, सभी सदस्य अपनी-अपनी राय अवश्य दें, शादी में मात्र एक महीना रह गया है, बहुत सारी तैयारी करनी है, नकुल ने अपने दोनों छोटे भाइयों और उनकी पत्नियों को आवाज देते हुए कहा!

कुछ देर बाद तीनों भाई अपनी पत्नियों सहित हाल में इकट्ठा हो गए, साथ ही तीनों के बच्चे भी वहां आ गए, बच्चों को शादी विवाह की बातें सुनने में बड़ा आनंद आता है और आज तो उनकी चहेती भूआ कि बेटी तनु की शादी की बातें होने जा रही है तो बच्चे भले कहां पीछे रहते हैं, तब नकुल ने बात आरंभ करते हुए कहा… देखो.. जीजी को भात में क्या-क्या देना है,

तनु को क्या-क्या देना है और उनके सभी घरवालों को क्या-क्या जाएगा, कपड़े बर्तन गहने सभी की एक लिस्ट तैयार कर लो, जिससे ऐन टाइम पर  दिक्कत ना हो, कि यह सामान रह गया वह सामान रह गया !तब  सबसे पहले नकुल की पत्नी नमिता ने कहा.. देखिए.. आपकी एक ही बहन है और उनकी भी एक ही बेटी तो भात तो शानदार होना चाहिए,

जिससे कि बहन की और भाइयों की शोभा देखने लायक हो, मैं तो कहती हूं जीजी को एक अच्छा सा तीन-चार तोले का गले का सेट, जीजा जी को ब्रेसलेट और तनु को कन्यादान के हिसाब से उसकी पसंद के कानों के टॉप्स दे देते हैं! तभी मझंली  बहू अक्षिता बोली… और भाई साहब..

थाली में भी हम अच्छा सा नेग रखेंगे और जीजी को बोल देते हैं वह सभी सामान अपनी पसंद का ले लें..  कम से कम कपड़े और जेवर तो अपनी पसंद के ही होने चाहिए, हमें तो खर्चा वैसे भी करना ही है, तो क्यों ना उसमें जीजी के पसंद का सामान हो तो ज्यादा अच्छा है, छोटी बहू सभी की बातें सुनकर चुप थी,

तब नकुल ने कहा.. बहू  गरिमा.. तुम भी अपनी राय प्रकट करो, तुम क्या चाहती हो? जेठ जी के पूछते ही गरिमा ने कहा… भाई साहब.. खर्च करने की भी एक सीमा रेखा होती है, आप तो इतना अनाप-शनाप खर्च कर रहे हैं, माना की भगवान की दया से हमारे पास आज कोई कमी नहीं है,

किंतु 8-10 लाख आप ऐसे ही शादी और भात के नाम पर  उड़ा देंगे तो क्या यह सही है? कल को हम तीनों भाइयों की भी बेटे बेटियां विवाह लायक हो रहे हैं और उनकी पढ़ाई लिखाई का भी बहुत खर्चा है, वैसे तो तनु हम सभी की लाडली है किंतु आप व्यावहारिक दृष्टिकौन से देखें, जो काम कम खर्चे में हो सकता है

उसमें इतना बड़ा चढ़ा कर दिखावा करने की क्या आवश्यकता है? मेरी राय में तो इतना खर्चा करना फिजूल है! तब बड़े भाई नकुल ने सभी की ओर देखकर कहा …तो भाई.. क्या आप सभी गरिमा की बात से सहमत हैं? तब नकुल के दोनों छोटे भाई बोले.. नहीं भैया.. गरिमा की सोच अपनी जगह ठीक होगी,

लेकिन हमारे ख्याल से यह बिल्कुल गलत होगा कि हम अपनी बहन का समय पर सम्मान भी ना कर पाए,  मां बाबूजी हमारे लिए इतना सब कुछ छोड़ गए हैं अगर जीजी चाहती तो इसमें से अपना हक ले सकती थी, उन्होंने कभी यह बात नहीं कही, बल्कि वह हमेशा यही कहती है कि मुझे तो किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं है

बस मेरे तीनों भाई-भाभियों का  प्रेम बना रहे और मेरे यहां पर बिना किसी भी चिंता के शादी में शामिल हो, मेरे लिए तो यही बहुत खुशी की बात होगी, कोई भी बहन नहीं चाहेगी कि उसके भाई किसी भी प्रकार के दबाव में आकर अपनी भांजी का भात भरने को आए, बस तीनों भाई भाभी बच्चे शादी में खुशी-खुशी आ जाए मेरे लिए इससे बड़ा  कुछ नहीं होगा!

भैया एक बहन इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहती! तभी दूसरा छोटा भाई भी बोला.. भैया.. जीजी बिल्कुल सही कहती है भात तो एक रसम है जो सदियों से चली आ रही है और सभी को निभानी भी है, तो भैया हमारी राय में तो हमें तो  दिल खोलकर अपनी बहन को उसकी खुशियां देनी चाहिए और गरिमा एक बात ध्यान रखना..

बहन बेटियों को तुम जितना अधिक सम्मान दोगी बदले में तुम उससे दुगना ही पाओगी क्योंकि कोई भी बहन अपने भाइयों को हमेशा सिर्फ दुआ ही देती है और उनकी दुआओं से ही भाई फलते-फूलते हैं, क्या तुम नहीं कहती कि जब तुम्हारी बेटी की शादी होगी तो मेरा भैया यह देगा मेरा भाई वह देगा,

तो क्या तब तुम्हारे भैया के ऊपर भात भरने के लिए दबाव नहीं होगा, पर हमारे ऊपर तो किसी भी प्रकार का जीजी ने कोई दवाब नहीं डाला, हम ही भात अपनी इच्छा से देना चाहते हैं, और जिसकी हमें बेहद खुशी भी है कि हम इस लायक हैं कि हम समय पर अपनी बहन का सम्मान बनाए रख सकते हैं,

अरे.. अपने बच्चों के ऊपर तो सभी खर्च करते हैं, इसमें नया क्या है, कभी तुम बहन भाई के बच्चों पर भी अपनी ममता लूटा कर देखो तुम्हें उसमें कितना आनंद आएगा, हमारी जीजी ने हमें छोटे भाई नहीं बल्कि अपने बेटों की तरह माना है तो क्या हमारा इतना सा भी फर्ज नहीं है कि हम हमारी बहन की  विवाह में  शोभा बढ़ाएं, बल्कि हम तो तीनों भाई यह चाहते थे की तनु की शादी में हम इतना शानदार भात दें की दुनिया देखती रह जाए,

किंतु वह तो जीजी ने जिद करके मना कर दिया की अपनी सामर्थ्य से ज्यादा करने की कोई जरूरत नहीं है, जितना तुमसे बन् पड़े सिर्फ रीति रिवाज के लिए ले आना, मैं उसी में खुश हो जाऊंगी, बस तुम सभी समय पर आ जाना, कोई बहन कभी नहीं चाहेगी कि उसके भाई कर्ज लेकर या किसी भी प्रकार का तनाव लेकर शादी में आए!

तभी नमिता और अक्षिता ने कहा.. और गरिमा हमारे पास तो किसी चीज की कोई कमी भी नहीं है तो फिर  हम अपना हाथ क्यों नहीं खोलें, भांजी का खुशी-खुशी कन्यादान करना तो बहुत सौभाग्य से मिलता है और इस शुभ काम को तो हम अवश्य करेंगे और रही बात खर्च करने की तो उसकी तो कुछ सीमा रेखा होती ही नहीं है,

सीमा रेखा तो मन की होती है, जहां मन करता है वहां कुछ नहीं देखा जाता और जहां मन नहीं होता वहां एक-एक रुपए खर्च करने में भी हमें जोर आता है! हां जीजी.. आप दोनों बिल्कुल सही कह रहे हो, मेरी आंखों पर तो लालच का पर्दा सा छा गया था, मैं अपने बच्चों के लिए स्वार्थी हो गई थी किंतु अब वह कुहासा  हट गया है, तो चलिए हम सभी मिलकर जीजी के लिए अच्छे से अच्छे भात की तैयारी करते हैं और गरिमा की बात सुनकर सभी मुस्कुराने लग गई!

    हेमलता गुप्ता स्वरचित 

   कहानी प्रतियोगिता    (#सीमा रेखा )

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