मन की आंखें – लतिका श्रीवास्तव : hindi stories with moral

hindi stories with moral : टिप टिप गिरती बारिश की बूंदों ने सागर के बढ़ते कदमों को रोक दिया और वो शीघ्रता से विशाल आम्र वृक्ष की सघन शरण में खड़ा हो गया था….हाथ की छड़ी उसने मजबूती से पकड़ी हुई थी और एक हाथ से बजते हुए मोबाइल को जेब से निकालने की कोशिश कर रहा था कि अचानक वो नीचे जमीन पर गिर पड़ा टटोल कर उठाने की कोशिश करता उसका हाथ अचानक दो पैरों से टकरा गया शायद वो किसी लड़की के पैर थे क्योंकि सागर के हाथों के स्पर्श से वो सिहर से गए थे और तत्काल सिमट गए थे….सॉरी कहते हुए सागर ने अपना मोबाइल उठा लिया था और मोबाइल पर बात करने लग गया था ।

रामू काका का फोन था डिनर में क्या बनेगा पूछ रहे थे काका आज तो बारिश हो रही है गोभी और पनीर के भजिए की तैयारी कर लीजिए मैं भी पानी रुकते ही वॉकिंग से आता हूं फिर गरम गरम बनाइएगा यही आज का डिनर रहेगा हंसते हुए उसने कहा तो रामू काका की हंसी के साथ एक और मीठी हंसी की आवाज उसे अपने ठीक से बगल से सुनाई पड़ी….!

कौन है उसने पूछा तो तुरंत हंसी बंद हो गई सॉरी वो आपने इतने मजे से भजिए खाने का कार्यक्रम बनाया तो मुझे बिना खाए ही पूरा मजा आ गया पूरा स्वाद आ गया इसीलिए हंसी आ गई ….थोड़ी सकुचाती सी उस मीठी आवाज का जादुई असर था या भीगते हुए मौसम का असर सागर का दिल आनंदित हो उठा था … अरे वाह मेरा ही सॉरी आप मुझे ही लौटा रही है ये तो गलत बात है आपकी… ऐसा थोड़ी होता है…सागर की बात सुन कर फिर वही खिलखिलाहट गूंज उठी जिसे सुनकर सागर फिर से भाव विभोर हो गया…अच्छा तो फिर कैसा होता है वो भी बता दीजिए खनकती हुई आवाज ने तो जैसे इस बार सागर के शुष्क दिल में प्रेम का सोता जगा दिया था जो बारिश की तेजधार सा उसके भीतर प्रवाहित होने लगा था…आपको मेरे साथ मेरे घर चल कर साथ में भजिए खाने पड़ेंगे नहीं तो अकेले खाने पर मुझे हजम नही हो पाएंगे…सागर ने भी हंसकर सकुचाते हुए अपने दिल का प्रस्ताव रखा जो सहर्ष स्वीकार कर लिया गया चलिए फिर किधर चलना है ….अंधेरा हो चला था तो सागर ने दाहिनी तरफ चलने की बात कही और मीठी मीठी बातें करते कब सागर का घर आ गया पता ही नहीं चला

घर की डोर बेल बजाते ही रामू काका ने दरवाजा खोला तो देख कर दंग रह गए ….एक मेहमान साथ है ये देख कर नहीं बल्कि ये देख कर कि वो लड़की जो सागर बाबू के साथ खड़ी थी वह भी अंधी थी सागर की तरह ही …इस बात से दोनो एकदम अनजान थे क्योंकि दोनों ही एक दूसरे को देख नही सकते थे ।

आंखें चार नहीं हुईं…. दो आंखों ने दो आंखों को नहीं देखा लेकिन जाने कैसे दिल की आंखों ने देख भी लिया परख भी लिया और पसंद भी कर लिया था…. दोनों बेतकल्लुफ होकर भजिए खा रहे थे दिल खोल कर खिलखिला रहे थे…!

और रामू काका हर्ष विव्ह्वल हो सोच रहे थे आंखें चार होने के लिए आंखें होना जरूरी नहीं होता आंखें तो उनकी भी चार होती है (मोहब्बत तो उनको भी होती है) जिनकी आंखें नहीं होती हैं।

लतिका श्रीवास्तव

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