मनमुटाव – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

आज पांच दिनों बाद… कुसुम घर से निकलने को हुई तो पीछे से पापा की गरजती आवाज ने… उसके अंतर को हिला कर रख दिया…

” सोच लो कुसुम… आखिरी बार… एक बार उस दिशा में कदम बढाकर… वापस घर आने की सोचना भी नहीं… समझो घर के रास्ते बंद हो गए…!”

 कुसुम के पैर चौखट पर जम गए… उसके शरीर से आत्मा तक में कंपन हो गई… पर यह निर्णय वह ले चुकी थी… उसने कदम बढ़ा दिए… 

सीधे नर्सिंग होम पहुंची… आज पांच दिनों से वहां नहीं गई थी… कोई संदेश नहीं छोड़ा था… सभी ने सवालों की झड़ी लगा दी… अपने सहकर्मियों के सवालों का जवाब देते… उसकी नजर दरवाजे पर टिकी थी…

 ठीक 10:00 बजते ही गाड़ी आकर रुकी… रिया सिया भागती हुई अंदर आईं… यहां वहां ढूंढ़तीं… उससे पहले ही कुसुम उनके सामने आकर खड़ी हो गई…

 दोनों लपक कर कुसुम से लिपट गईं… दोनों की आंखों से आंसू की धारा बह रही थी… जन्म से गूंगी बच्चियों में और कोई कमी नहीं थी… पर यह कमी इतनी गहरी थी कि बोलने की कोशिश में रोज उन्हें अस्पताल के चक्कर लगाने पर रहे थे…

 दरअसल जुड़वा बच्चियों को जन्म देते ही मां गुजर गई… घर में दूसरा कोई नहीं था…

एक दुखी डिप्रेस्ड पिता को छोड़… जो अपने ही दुख में मग्न था… बच्चों के साथ बचपन से क्या बीती यह तो नहीं पता था कुसुम को…

पर वह इतना जानती थी कि… इस एक साल में इलाज के दौरान यह दोनों बच्चियां उसकी जान बन गई थीं… जिनके लिए आज सुबह ही वह अपना घर छोड़ आई थी…

उनका अमीर… शराबी पिता… राजीव दीक्षित… बच्चों के लिए घर में ही अस्पताल चाहता था…

बच्चियों का और कुसुम का आपस में प्रेम देख उसने कुछ छह महीने पहले ही कुसुम को जॉब ऑफर किया था… घर आने का…

वहीं रह कर बच्चियों का इलाज करने का…यह ऑफर इन 6 महीनों में अलग-अलग शक्ल लेकर कुसुम के पास कई बार आया… कभी डॉक्टर… कभी केयरटेकर… कभी टीचर… कभी गाइड… और अब मां…

 अब राजीव चाहता था कि… कुसुम उससे शादी करके बच्चों की जिम्मेदारी उठा ले… कुसुम का प्यार भी दिनों दिन इस कदर बढ़ गया था की इस बार वह मान ही गई… पर उसके पिता को यह रिश्ता कतई मंजूर नहीं था…

” क्या इसी दिन के लिए बेटी को पढ़ाया लिखाया था… किस चीज की कमी है तुझमें…एक दो बच्चियों के पिता से शादी करेगी…छोड़ दे नर्सिंग होम की नौकरी… यह समझौते की शादी… कभी नहीं…!”

 यही दबाव था जो आज पांच दिनों से कुसुम नर्सिंग होम नहीं आई थी… पर इन पांच दिनों में उसके अंदर बैठी मां ने… सारे दूसरे रिश्ते नाते… औपचारिकताओं को तोड़ दिया… वह निकल आई थी… सब छोड़ के… रिया और सिया की मां बनने…

 राजीव पीछे से आया…” क्या हुआ… क्या फैसला किया आपने… आप कई दिनों से आई नहीं तो हमें लगा… कहीं आपका फैसला फिर से… ना ना हो…!”

 कुसुम बच्चों को पुचकार कर उठी… संभल कर संयत होकर बोली…” मैं तैयार हूं… मैं भी बच्चों के बगैर नहीं रह सकती…!”

 कुसुम ने राजीव से शादी कर ली… बड़ा सा बंगला था राजीव का घर…इतने बड़े घर में केवल एक दो नौकर… कोई परिवारीजन नहीं… राजीव को लोग पसंद नहीं थे…अपना कोई था ही नहीं और दूर के रिश्तेदारों से वह दूर ही रहता था… भीड़-भाड़ नहीं चाहिए था उसे…

उसकी पत्नी के गुजरने के बाद… उसके मायके वाले बच्चों को अपने साथ ले जाना चाहते थे… पर राजीव ने बच्चों को खुद से अलग नहीं किया… उसका आखिर था ही कौन बच्चों के सिवा… यही बच्चे गुमसुम चुप-चुप रहते…

दरअसल बच्चों को पालने वाली आया गूंगी थी…केवल उसके साथ रहते… बच्चे बचपन से कुछ बोल ही नहीं पाए…

दोनों एक दूसरे का मुंह देखते… अपने खिलौने में खोए रहते… तीन वर्ष के हो गए फिर भी कुछ नहीं बोलते देख… राजीव उन्हें बच्चों की डाक्टर कुसुम के पास लेकर गया था…  

साल भर से… इन प्रेम के भूखे बच्चों का इलाज करती कुसुम जान गई थी… कि इन बच्चों को इलाज नहीं… प्यार चाहिए… साथ चाहिए… और इसके लिए उसने अपना जीवन ही अर्पण कर दिया… उसका प्रयास धीरे-धीरे रंग लाने लगा था… बच्चे धीरे-धीरे कुछ-कुछ शब्द पकड़ रहे थे… अब ऐसे में वह बच्चों को नहीं छोड़ सकती थी…

 शादी करने के बाद केवल बच्चियों में ही नहीं… उनके पिता में भी बहुत सुधार हुआ… अब वह घर में बच्चियों के सामने बैठकर नहीं पीता था… उन्हें थोड़ा समय भी देता था…

 कुसुम के लिए अपना मायका बस मां तक सीमित रह गया था… घर से निकल जाने के बाद पिता ने कभी उसकी कोई खबर नहीं ली… इतना भारी कदम उठाकर वह पिता से दूर हो गई थी… हां मां से बातें होती थी कभी-कभी… दोनों भाइयों का ब्याह… भतीजे भतीजियों का जन्म…

कुछ भी नहीं देख पाई कुसुम… घर के हर उत्सव की जानकारी फोन पर पाती और घंटों बैठकर आंसू बहाती…

कई बार सोचने को मजबूर हो जाती… क्यों लिया ऐसा फैसला… क्यों तोड़ा घर से रिश्ता… पर उसका बलिदान… त्याग… इंतजार… बेकार नहीं गए…

 बच्चियां अब ठीक हो चुकी थीं… बिल्कुल ठीक… पढ़ने में दोनों ही अव्वल थीं… 10वीं 12वीं दोनों में शानदार रिजल्ट करने के बाद…आज दोनों ने साथ ही नीट की परीक्षा भी पास कर ली थी… कुसुम की दोनों बेटियां डॉक्टर बनने जा रही थीं…

 इस बार कुसुम ने अपनी दोनों बेटियों का हाथ पकड़ पहली बार 12 साल बाद अपने मायके की चौखट फिर लांघी… सारे मनमुटाव भूल कर… अपने पिता के चरणों में आ गिरी… “पापा प्लीज मुझे माफ कर दीजिए… !”

“नानाजी…!”

 रिया और सिया को बोलता देख… उनके मुंह से नाना जी सुनकर उन्होंने आंखें उठाई… दोनों हाथ जोड़े खड़ी थीं…

” हमें माफ कर दीजिए नानाजी… हमारे कारण मां को सजा ना दें…!”

 पिताजी ने बढ़कर बेटी को उठाया और गले से लगा लिया…” पापा आपकी दोनों नातिनें  डॉक्टर बनने जा रही हैं… बढ़िया अंकों के साथ दोनों ने नीट की परीक्षा पास की है…और आगे भी आपके आशीर्वाद से बढ़िया करेंगी… मेरा बलिदान व्यर्थ नहीं गया पापा…!”

 नाना जी ने भी सारे गिले शिकवे भूल कर 12 सालों बाद घर आई बेटी के लिए अपने दिल और घर के दरवाजे दोनों ही खोल दिए… दिल से बच्चियों को गले लगाया… आज पहली बार रिया और सिया को एक साथ ही जीवन में इतने सारे रिश्ते मिल गए थे… और सब का प्यार भी…

 कुसुम ने अपने पिता से मनमुटाव कर… अपने घर को त्याग कर… दो बच्चियों का जीवन संवार दिया था…

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा 

#मनमुटाव

1 thought on “मनमुटाव – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi”

  1. पिता का दोष हरगिज नहीं है। उन्होंने अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दिलवाई थी।उन्हें दो बच्चियों के विधुर किंतु शराबी पिता के साथ बेटी का संबंध सहन नहीं हुआ। हर पिता अपनी बेटी का हाथ किसी अच्छे परिवार के सुयोग्य व्यक्ति के हाथ में देना चाहता है।बच्चियों का भविष्य संवर गया, अतः उस नारी को साधुवाद।

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