मनमुटाव – पूजा शर्मा   : Moral Stories in Hindi

तुम दोनों को मैंने फिर रिशु और सौम्या के साथ देखा टांग तोड़ के रख दूंगी अगर ऊपर उनके साथ खेलने गए तो, एक बार से कहने में बात समझ में नहीं आती क्या? एक बात को कितनी बार समझाना पड़ेगा तुम दोनों को? सुमेधा दोनों बच्चों को जोर-जोर से डाटे जा रही थी और दोनों बच्चे सहमे हुए खड़े थे।

 कितनी बार हिदायत दे चुकी है वह ऊपर अपनी जेठानी के बच्चों के साथ खेलने से मना करने की, लेकिन बच्चे अपनी मम्मी से आंख बचाकर ऊपर खेलने के लिए चले जाते हैं। अब हम उम्र बच्चे हैं तो लड़ेंगे भी और खेलेंगे भी। सारी बात सुन रही सावित्री जी अपनी बहू से कहती हैं देखो

बहू बच्चे हैं बच्चों को इस तरह से आपस में मिलने खेलने से मत रोको मन मुटाव तो तुम दोनों देवरानी जेठाणियों का हुआ है। भला बच्चों को उसमें क्यों घसीट रही हो और तुम्हारा भी कहाँ, ,झगड़ा तो दोनों भाइयों के बीच हुआ था तुम दोनों तो नाहक ही एक दूसरे से मुंह फुलाए बैठी हो अरे भाई भाई है पहले भी तो झगड़ते थे,।

अब दोनों दुकान पर एक साथ बैठते हैं तो विचारों का तालमेल कभी-कभी नहीं बैठ पाता जिस वजह से दोनों भाई झगड़ा कर लेते हैं। तुम उनके बीच में घुसकर क्यों अपने बीच में कलह पैदा कर रही हो, मम्मी जी आपको तो सारी गलती हमारी ही दिखाई देती है

उस दिन तो आपने भाई साहब से कुछ भी नहीं कहा जब अपने छोटे भाई को इस तरह से डांट रहे थे । उन्होंने मेरे भाई के कहने पर उसके साथ शेयर मार्केट में पैसे कुछ फायदे के लिए ही लगाए थे अब उसमें उन्हें नुकसान हो गया तो फिर इस तरह से उन्हें गुस्सा करेंगे

क्या जैसे कितना बड़ा गुनाह कर दिया हो? मेरे भाई को भी क्या-क्या नहीं कह दिया उन्होंने।अपनी इज्जत तो सब रखते हैं बड़े भाई हैं तो क्या अपने छोटे भाई को इस तरह डांटेंगे आजकल तो अपने बच्चे भी अपनी नहीं सुनते वह तो फिर भी छोटे भाई हैं?ं कितना तो सुनते रहते हैं उस दिन चार बातें अपनी सफाई में क्या कह दी भाई साहब को बुरा लग गया।

 दुकान में दोनों का बराबर का हक है तो फिर कुछ अपनी मर्जी से नहीं कर सकते मेरे पति । ऐसा कहकर सुमेधा अपने दोनों बच्चों को अपने साथ कमरे में ले गई और धड़ाम की आवाज के साथ दरवाजा बंद कर दिया।

  पिछले 15 दिनों से घर में यही हाल चल रहा है सुमित्रा जी बिचारी बीच में पिसे जा रही हैं अपने दोनों बेटों बहूओ को खूब समझाती हैं। लेकिन जिसके भी पक्ष की बात करती हैं दूसरे को गलत लगने लगती हैं। बेचारी क्या करें माँ है ना,तो अपने दोनों बच्चों का मन मुटाव देखकर परेशान हो रही है

यही कोशिश करती है कि किसी तरह दोनों का झगड़ा सुलझ जाए और पहले की तरह आपस में अच्छा व्यवहार करने लगे

 सुमित्रा जी के दो बेटे हैं उनके पति की मृत्यु काफी समय पहले हो गई थी । शहर में जानी मानी किराने की दुकान है उनकी। किसी चीज की कोई कमी नहीं है दोनों भाइयों में प्यार भी बहुत है देवरानी जेठानी भी बहनों की तरह ही रहती हैं। बड़े बेटे सुधांशु और बहू मालती के दो बच्चे हैं।

बड़ी बेटी 7th क्लास में और छोटा बेटा 5th क्लास में है। छोटा बेटा राहुल और बहू सुमेधा के भी दो बच्चे हैं। बेटा थर्ड और बेटी फर्स्ट क्लास में हैं। चारों बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं।

 सुमित्राजी ने यह सोचकर अपने दोनों बेटों के ऊपर नीचे पोर्शन बनवाए थे जिससे आपस में किसी चीज को लेकर कभी विवाद ना हो और दोनों का प्रेम बना रहे। वह किसी के हिस्से में नहीं थी उनका जहां मन करता था वो रह सकती थी फिलहाल छोटे बेटे के बच्चे छोटे थे

इसलिए वे अपनी छोटी बहू के साथ ही रहती थी और उनके घुटनों में दर्द की समस्या भी है जिसकी वजह से वो ऊपर कम ही चढ़ पाती हैं। लेकिन बड़ी बहू और बच्चे अपनी दादी के पास खेलने आ जाते हैं और जो भी घर में अच्छा बनता है। सबसे पहले उन्हीं के लिए लाती है

दोनों बेटे भी अपनी मां से बहुत ज्यादा प्यार करते हैं। दोनों भाइयों के आपसी मनमुटाव की वजह यह है कि अपने बड़े भाई के लाख मना करने के बाद भी छोटे भाई ने अपने साले के कहने पर 3लाख रुपए शेयर बाजार में लगा दिए। उसके बड़े भाई को शेयर मार्केट में पहले भी नुकसान हुआ था

इसलिए अपने अनुभव के आधार पर ही वह छोटे भाई को मना कर रहा था। हुआ भी वहीं उन्हें शेयर मैं काफी नुकसान उठाना पड़ा जिसकी वजह से दोनों भाईओ मैं कहां सुनी हो गई। सुधांशु ने अपने भाई से कह दिया कि तुम्हें मुझसे ज्यादा अपने साले पर विश्वास है

जो मेरे मना करने के बाद भी तुम नहीं माने बस जरा सी बात इतनी बढ़ गई कि दोनों भाइयों में आपस में बोलचाल भी बंद है जिसका असर पूरे घर पर पड़ गया है दोनों देवरानी जेठाणिया भी आपस में नहीं बात कर रही है। आज तो हद ही हो गई

जो उनकी छोटी बहू ने अपने दोनों बच्चों को भी बच्चों के साथ खेलने से मना कर दिया। इसी बात पर सुमित्रा जी को बहुत गुस्सा आ रहा था।जैसे ही रात को दोनों भाई दुकान से आए सुमित्रा जी ने उन्हें अपने पास बैठाया और सारी बात बताई।

उन्होंने अपने छोटे बेटे से भी कहा तुम्हारी पत्नी बच्चों को भी एक दूसरे के साथ खेलने से मना कर रही थी। तुम्हारे झगड़ों का असर बच्चों पर भी पड रहा है। बचपन से साथ पले बड़े हैं भला उन्हें अलग करने का तुम्हारा क्या मतलब है? मैं जिसे भी समझाने की कोशिश करती हूं

वही मुझ पर पक्षपात का आरोप लगा देता है मेरे लिए तो मेरे दोनों बच्चे बराबर हैं मुझे दोनों की ही खुशी प्यारी है। अपने अपने हम के चलते दोनों भाइयों ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि उनके बच्चे उनके झगड़े में किस तरह घु ट रहे हैं।

राहुल ने अपनी पत्नी से भी कहा कि तुम बच्चों को क्या सिखा रही हो? चारों बच्चे भी वहीं बैठे सारी बात सुन रहे थे, राहुल की छोटी बेटी अपने ताऊजी के गले में हाथ डालकर बोली ताऊजी आप मम्मी को डांटिए वह हमें दीदी और भैया के साथ खेलने से मना करती हैं।

इतने दिन तो हम भी बात किए बिना नहीं रहते आप लोग इतने बड़े होकर एक दूसरे से लड़ाई करते हो। आप सब बहुत गंदे हो आपकी वजह से हम भी साथ-साथ नहीं खेलते अब।

 सुमित्रा जी ने अपनी पोती को गले लगाया और कहा तुमसे अच्छे तो बच्चे हैं, पल में लड़ते हैं और पल में एक हो जाते हैं। अरे मनमुटाव किसके घर में नहीं होते लेकिन आपसी झगड़ों को इतना लंबा भी नहीं खींचना चाहिए। तुम्हारा झगड़े का असर व्यापार पर भी पड़ेगा।

लोग मिसाल देते हैं तुम्हारे प्यार और तुम्हारी मेहनत की कि अपने बाबूजी के नाम को तुमने कितना आगे बढ़ाया है। मेरे बुढ़ापे में मुझे ऐसे दिन मत दिखाओ, जैसे अब तक रहते आए हो इस तरह रहो

 नहीं तो एक घर में नहीं रहकर अलग-अलग घरो में रहो जिससे एक दूसरे की शक्ल भी ना दिखे तुम्हें।

 नहीं मां हमें माफ कर दीजिए गलती हम दोनों की है 

 दोनों भाई एक दूसरे से माफी मांगते हैं। और अपने बच्चों को कहते हैं अब तुम्हें कोई साथ साथखेलने को मना नहीं करेगा। आपस में मिलजुल कर रहोगे तो किसी बाहर वाले की हिम्मत भी नहीं होगी तुमसे लड़ने की। देखो हम दोनों भाइयों ने भी एक दूसरे से कान पड़कर माफी मांग ली है।

दोनों देवरानी जेठानी भी एक दूसरे से माफी मांगती है। चारों बच्चे खिल खिलाकर हंसने लगते हैं।

 कभी-कभी बच्चे भी बड़ों को बहुत कुछ सिखा देते हैं।

 सच में इतने दिनों से जो तनावपूर्ण माहौल चल रहा था वह थोड़ी देर आपस में बैठकर बात करने से कितनी आसानी से सुलझ गया। रिश्ते तोड़ना बहुत आसान है। निभाना बहुत मुश्किल कभी-कभी हम भूल जाते हैं हम भी गलत हो सकते हैं क्या पता दूसरा हमारी वजह से कितना परेशान हो

अपनी नजरों में सभी सही होते हैं एक दूसरे की परेशानी समझना भी जरूरी है। परिवार में तभी सामंजस्य बैठ सकता है।

 परिवार अगर एकता में बंधा रहेगा तो कभी तीसरे का मुंह देखना नहीं पड़ेगा बड़ी-बड़ी परेशानियों से इंसान परिवार के साथ से आसानी से निकल सकता है।

 यह हमारी आपसी समझ है हम किस बात को किस तरीके से सुलझाते हैं।

 दोस्तों कृपया कमेंट करके बताएं आपको मेरी रचना कैसी लगी। सबका सोचने का अपना अलग तरीका होता है मैंने तो कहानी के माध्यम से केवल अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। अगर किसी को कुछ बुरा लगे तो क्षमा प्रार्थी हूं।

 पूजा शर्मा स्वरचित।

“मनमुटाव”

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