Post View 2,155 मौसम शांत था।हल्की ठंडी हवा की लहरें दीवारों से टकराकर उन्हें नम करने में जुटी थीं। कच्ची धूप खिड़की से झांक क़र अपनी उपस्तिथि दर्ज क़र रही थी। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई । कोटा के जाने – माने बैंक के मैनेजर शर्मा जी थे ।आते ही घबराई हुई आवाज़ में बोले … Continue reading मंजर ,१९८४ – मनवीन कौर पाहवा
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