ट्रेन अपनी गति से भाग रही थी, स्कूल की तरफ से एनसीसी की लड़कियों को लेकर कुछ शिक्षिकाओं को इलाहाबाद भेजा था । उनमे से एक अनिता का वहां कभी मायका भी हुआ करता था, आज वो फूली नही समा रही थी। 40 वर्षो के बाद ये बहुमूल्य पल उसके सामने थे और यादों का एक मधुर मंजर उसे झकझोर रहा था और बिसरे पल लाइन लगाके उसके हृदय को झंकृत कर रहे थे ।
जल्दी ही इलाहाबाद आ गया ।
एक स्कूल में ही सबके ठहरने की व्यवस्था थी, दो, तीन दिन ड्यूटी निभाने में समाप्त हो गए । अब चौथे दिन उन सबको रात की ट्रेन से वापस जाना था। अनिता ने अपने पुराने कॉलेज अकेले ही जाने का मूड बनाया । शादी के 40 सालों बाद उम्र का ग्राफ चेहरे पर लाइन खींच रहा था, दिमाग परिपक्व हो चुका था, पर मन तो बच्चा है जी, मानने को तैयार ही नही था, बार बार कॉलेज के दिनों में गोते लगाकर श्रीनिवास को याद कर रहा था । कॉलेज पहुचकर , हर कोने कोने में जहां भी कोई यादे खींच रही थी, वो घूमती रही ।
अचानक जिसकी उम्मीद नही थी, वो हो गया । शायद वहम् हुआ होगा, यही सोचकर वह तेज़ क़दमों से आगे बढ़ गई, लेकिन वहम् सच बनकर सामने आ खड़ा हुआ, उसे यूं अचानक सामने पाकर वह जड़वत् हो गई। अरे ये तो वही है श्रीनिवास, जिसको शादी के बाद उसनेे मन के तहखाने में बंद करके चाबी फेक दी थी। पति व्यापारी थे, घर पर लाखों का कारोबार था, प्यारे प्यारे बच्चे, पर कहते हैं ना, पहले प्यार को भूलना इतना आसान नही होता। बस फिर क्या था , नगमे शिकवे बाते शुरू हो गयी , पता चला वो डॉक्टरेट करके वहीं लेक्चरर की पोस्ट पर कार्यरत है वहीं एक बेंच पर बैठकर दोनों 40 वर्षो की बाते 40 मिनट में करने को बाध्य हो गए । श्रीनिवास ने फ़ोन नंबर मांगा, पर अनिता ने कहा सिर्फ एक बार देखना चाहती थी, बस अब नंबर मत मांगो। अब ईश्वर चाहेगा तो हम ऊपर ही मिलेंगे, बाई बाई ।
अब ट्रेन वापस उसके शहर जाने वाली थी, तभी उसे दूर एक खंबे के नीचे वो आंखे पोछता नजर आ गया।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर