निर्मला देवी उम्र के इस पड़ाव पर, जब उन्हें अपने बेटे आशीष और बहू आरती का सहारा चाहिए था, वह अकेलेपन और पछतावे में डूबी हुई थीं। उनका स्वास्थ्य दिनों-दिन खराब होता जा रहा था। शरीर की कमजोरी और मन का अकेलापन उन्हें अंदर से तोड़ रहा था।
आरती और आशीष को जब उनके पड़ोसी कुमार अंकल से निर्मला की तबियत खराब होने की खबर मिली, तो वे तुरंत अपने घर से निकले। रास्ते भर आरती और आशीष दोनों के मन में कई सवाल उमड़ रहे थे। आरती को याद था कि कैसे निर्मला ने एक दिन गुस्से में उन्हें घर छोड़ने को कह दिया था। वह सोच रही थी
कि शायद उनकी सास उन्हें अब भी पसंद नहीं करतीं। वहीं आशीष के दिल में गहरी चिंता थी। वह अपनी मां के गुस्से और उनके स्वास्थ्य के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा था।
घर पहुंचते ही, आरती ने निर्मला को बिस्तर पर लेटे देखा। उनकी मां का चेहरा पीला और कमजोर हो गया था। आरती ने आशीष की ओर देखा और फिर तुरंत आगे बढ़कर सासू मां के पास जाकर कहा, “अरे मम्मी जी, आपकी तबियत इतनी खराब है, फिर भी आपने हमें खबर नहीं की?”
निर्मला ने धीमी आवाज में कहा, “किस मुँह से तुम्हें खबर करती, बहू? मैंने ही तो घमंड में आकर तुम्हें अपने घर से चले जाने को कहा था।”
यह सुनकर आरती की आंखों में आंसू आ गए। उसने अपने सासू मां के हाथ थाम लिए और कहा, “मम्मी जी, आप बीमार हैं और अपनी संतान से सेवा करवाना आपका अधिकार है। आपको हमें खबर करनी चाहिए थी।”
आशीष ने भी अपनी मां की ओर झुककर कहा, “हमें तो कुमार अंकल ने बताया। हम तुम्हें लेने आए हैं, मम्मी। चलो, हमारे साथ।”
निर्मला की आंखें भर आईं। उन्होंने आशीष का हाथ पकड़कर कहा, “अगर ऐसी बात है, तो मैं अपने मां होने के अधिकार से कहती हूं कि पुरानी बातों को भूलकर मुझे माफ करो और वापस इस घर में मेरे पास रहने आ जाओ।”
यह कहते हुए निर्मला जोर से रोने लगीं। उनकी आवाज में दर्द और पछतावा झलक रहा था। आशीष और आरती भी खुद को रोक नहीं पाए और उनके साथ रोने लगे। आरती ने धीरे से कहा, “माफ़ी मत मांगो, मम्मी। आप हमारी मां हो। जैसे कहोगी, हम वही करेंगे।”
उस दिन के बाद, सबकुछ बदल गया। आशीष और आरती ने निर्मला को अपने साथ घर ले जाने की योजना बनाई। लेकिन इससे पहले, उन्होंने फैसला किया कि वे अपनी मां के साथ समय बिताएंगे और उन्हें इस बात का एहसास दिलाएंगे कि वह अब अकेली नहीं हैं।
आरती ने पूरे घर की साफ-सफाई की और रसोई में जाकर अपनी सास के लिए उनकी पसंद का खाना बनाया। वह उन्हें समय-समय पर दवा देती और उनका ख्याल रखती। आशीष भी अपनी मां के पास बैठकर उनके साथ बातें करता और उनका ध्यान बंटाने की कोशिश करता।
निर्मला ने महसूस किया कि उनकी बहू और बेटा अब भी उनसे प्यार करते हैं और उनकी हर जरूरत का ख्याल रखते हैं। उन्हें अपनी पुरानी बातों पर गहरा पछतावा हुआ। उन्होंने सोचा कि उनके गुस्से और अहंकार ने उनके रिश्तों को कितना नुकसान पहुंचाया था।
एक दिन, आरती ने चाय का कप लेकर निर्मला के पास बैठते हुए कहा, “मम्मी जी, जब आप हमें घर छोड़ने को कह रही थीं, तब मुझे बहुत बुरा लगा था। लेकिन अब मैं समझती हूं कि आपका गुस्सा आपकी परेशानी की वजह से था। मैं आपको माफ कर चुकी हूं।”
निर्मला ने आरती को गले लगाते हुए कहा, “बेटा, मैं तुमसे माफी मांगती हूं। तुमने मेरे लिए जो किया है, उसे मैं कभी नहीं भूल सकती। तुमने साबित कर दिया कि रिश्ते गुस्से से नहीं, बल्कि प्यार और समझ से चलते हैं।”
आशीष ने भी अपनी मां के इस बदलाव को देखा और खुश हुआ। उसने कहा, “मम्मी, अब हम हमेशा साथ रहेंगे। आप कभी अकेला महसूस नहीं करेंगी।”
निर्मला ने एक बार फिर अपने बेटे और बहू को गले लगाया। उस दिन उनके घर में केवल आंसू ही नहीं, बल्कि एक नए रिश्ते की शुरुआत हुई। एक ऐसा रिश्ता, जो अब पहले से ज्यादा मजबूत और प्यार भरा था।
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |