” राशि राशि कहा हो यार जल्दी से आओ ।” ऑफिस से आते ही निकुंज अपने कमरे में जाकर राशि को जोर जोर से आवाज़ देकर बुलाने लगा
“ आ रही हूँ बाबा पता ही है डिनर बना रही होती इस वक़्त फिर भी पूछ रहे हो कहाँ हो?” राशि भीगे हाथ तौलिए में पोंछते कमरे में आ गई
निकुंज उसे देखते ही झट से अपने बैग से एक डिब्बा निकाल कर राशि को पकड़ाया और उसमें से एक ख़ूबसूरत हार निकाल कर राशि के गले में पहना दिया ।
“ वाह बहुत ख़ूबसूरत है निकुंज पर अभी तो ना मेरा जन्मदिन है ना हमारी एनीवर्सरी फिर ये अचानक किस लिए?” राशि कभी शीशे में खुद को निहारती कभी हार को कभी निकुंज को सवालिया नज़रों में
“ बहुत वक़्त लगा दिया ना राशि तुम्हारी एक माँग पूरी करने में… मुझे सच में बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है … आज भी जब याद करता हूँ आख़िर मैंने वो किया ही क्यों?” निकुंज राशि का हाथ पकड़कर बोला
“ बीत गया वो सब …. जाने दो …. मैं अब कुछ कहा कहती हूँ तुमसे…वो तुम्हारी सोच थी उस वक़्त अब मुझे किसी से कोई गिला नहीं है ।” राशि ने जैसे ही कहा निकुंज ने उसे सीने से लगा लिया
राशि वो हार खोल कर सहेज कर अलमारी में बंद रखते हुए बोली,“ बाद में बताना इतना महँगा सेट कैसे ले आए तब तक तुम फ्रेश हो मैं चाय बनाती हूँ ।”
राशि रसोई में चाय चढ़ा कर खड़ी थी और आज हार देख पन्द्रह साल पहले की बात याद आ गई… वो उन दिनों ससुराल गई हुई थी तब सासु माँ सुनंदा जी ने अपनी दोनों बहुओं को बुला कर पचास -पचास हज़ार रुपये देते हुए कहा,“ बहू ये पेंशन के पैसे जमा कर के रखे थे अगले महीने बड़ी बहू रति की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह है इन पैसों से जो लेना हो ले लेना….
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और छोटी बहू राशि तुम्हें भी दे रही हूँ जो लेना हो ले लेना तुम्हारी पच्चीसवीं सालगिरह में अभी वक़्त है उस वक़्त फिर दोनों को बराबर दे दूँगी ।”
तब रति भाभी ने राशि से कहा था,“ आजकल मंगलसूत्र सेट के कई तरह के नए डिज़ाइन दिख रहे हैं मैं तो वही लूँगी…. कुछ पैसे तुम्हारे भैया से कह कर मिला कर अच्छा सा कुछ ले लूँगी…. तुम क्या लोगी?
“ भाभी अभी तो कुछ सोचा ही नहीं है… देखते हैं पहले आप तो लीजिए अगले महीने आपकी सालगिरह पर पहन लीजिएगा ।” राशि ने कहा
वो पैसे कमरे में जाकर निकुंज को देते हुए बोली,“ ये माँ ने मुझे दिए हैं आप ऐसा कीजिए बैंक में जमा कर दीजिएगा… हमें यहाँ से अपने शहर जाना है पैसे लेकर चलने में मुझे रिस्क लगता है।”
“ ठीक है” कहकर निकुंज ने वो पैसे रख लिए
अगले महीने जब जेठ जेठानी की सालगिरह पर राशि ने निकुंज से कहा,“सोच रही हूँ मैं भी कुछ ले ही लूँ क्या?”
निकुंज सुन कर घबरा सा गया ये बात राशि ने जैसे ही नोटिस की बोली,“ क्या हुआ… पैसे जमा किए थे ना निकाल कर ला दो ज़्यादा पैसे लगे तो तुम थोड़े दे देना।”
निकुंज कुछ ना बोला …. जब वो शॉप पर गए राशि ने पचहत्तर हज़ार का एक सेट पसंद किया… निकुंज ने कहा ,“यार इतने पैसे अभी नहीं है …. बाद में ले लेना ना तुमने पसंद कर लिया है तो मैं फिर कभी तुम्हारे लिए ला दूँगा।”
दुकान वाले से बाद में लेने की बात कर दोनों निकल गए ।
राशि को निकुंज की हरकतों से कुछ शंका होने लगी…. ,“ क्या बात है निकुंज….तुम परेशान हो… आख़िर पैसे तो बैंक में ही जमा किए थे ना… बस तुम्हें पच्चीस हज़ार ही तो और देने थे फिर भी तुम मुझे वो हार ना दिला सकें ।” राशि नाराज़ हो गई
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” राशि पैसे बैंक में जमा नहीं कर पाया वो खर्च हो गए…।” निकुंज हताश हो बोला
“ अरे खर्च हो गए मतलब… तुमने किसे दे दिए… वो माँ ने मुझे दिए थे ना मेरे पैसे थे और तुमने बिना बताए खर्च कर दिए आख़िर कहाँ?” राशि को ग़ुस्सा आने लगा आख़िर बिना बताएँ पैसे किधर खर्च कर दिया
“ बताता हूँ… जब हम घर पर ही थे याद है भैया भाभी दो दिन बाद बाज़ार गए थे…. भाभी अपने लिए गहने ही लेने गई थी …. वहाँ जाकर उन्होंने ज़्यादा महँगा सेट पसंद कर लिया…. उस वक़्त भैया के पास पैसे नहीं थे तब भाभी ने ही भैया से कहा… माँ ने राशि को भी पैसे दिए हैं वो बोल रही थी उसे अभी कुछ नहीं लेना तो आप निकुंज जी से पूछ कर देखो…..
अब भैया ने सामने से माँग लिए तो मैं मना नहीं कर पाया…. और पैसे दे दिए….भैया ने कहा था दो महीने में दे देगें… अब तुम ही बताओ क्या करता?” निकुंज ने कहा
राशि कुछ नहीं बोली…
फिर एक शॉप से आर्टिफिशियल ज्वैलरी लेकर वो सालगिरह पर गई क्योंकि उसे भी कुछ नया पहनने का मन कर रहा था….
समय गुज़रता गया… ना निकुंज के भैया ने पैसे दिए ना निकुंज को राशि के लिए हार लेना याद रहा…. राशि एक दो बार बोली पर निकुंज का मौन उसे आहत करता रहा और वो फिर कहना ही छोड़ दी….
पर आज अचानक से निकुंज बिलकुल नए डिज़ाइन का हीरो का हार लाकर उसे आश्चर्यचकित कर दिया
”अरे चाय खौलकर सूख जाएगी… ।” कहते हुए निकुंज ने जल्दी से गैस बंद कर चाय छानते हुए कहा,“ कहाँ खोई हुई थी?”
“ कुछ नहीं बस ऐसे ही।” राशि कह कर चाय बाहर ले कर आ गई
“ राशि बहुत दिनों से ये हार मैं ऑनलाइन देख रहा था… बस कुछ पैसे ही बाकी रह गए थे पर आज अचानक ही भैया ने फोन कर के मुझे कहा …छोटे मुझे माफ करना बहुत बार तेरे पैसे देने का सोचता पर वो फिर कहीं ना कही निकल जाते पर आज तेरे पैसे भेज दे रहा हूँ साथ में दस हज़ार और मेरी तरफ़ से…।”
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” बस मैं उस शॉप पर गया… सेम वैसा ही मुझे मिल गया तो मैं बिना देरी किए तुम्हारे लिये ले आया…. दस दिन बाद हमारी बीसवीं सालगिरह पर तुम यहीं पहनना….मैं उस वक़्त ही लाता पर लगा ये पैसे फिर कहीं ना खर्च हो जाए बस आज ही ले आया… तुम्हें पसंद तो आया ना… या तुमने जो पसंद किया था वैसा ही चाहिए?” निकुंज राशि को चुप देख कर पूछा
” निकुंज बहुत अच्छा है जो मैंने पसंद किया था उससे भी अच्छा… बस सोच रही थी जब जिसकी ज़रूरत हो तब उस चीज़ का महत्व ज़्यादा होता है…. आपको आज पैसे मिले तो आप आज ही ले आए…. मेरा भी मन उस दिन लेने को किया पर मुझे मन मानना पड़ा…. पहले से पता होता पैसे नहीं है तो मैं जाती ही नहीं ना…. आगे से ऐसी कोई बात हो तो बता दिया करना…. मन बना कर मन मारना कभी कभी तकलीफ़ दे जाता है।” चाय का घूँट भरते राशि ने कहा
” हाँ राशि समझ रहा हूँ….. इसलिए मैं भी चुप हो गया था क्योंकि पैसे माँ ने तुम्हें दिए थे तुम्हें बिना बताए मुझे किसी को भी देने का हक़ नहीं था…. माफ कर दो ना।” निकुंज ने राशि की ओर प्यार से देखते हुए कहा
” अरे अरे माफ़ी की कोई बात ही नहीं है….. वैसे ये भी अच्छा ही हुआ…. देर से मिला पर दुरुस्त मिला…. वाक़ई बहुत ख़ूबसूरत हार है।” राशि बात को यहीं ख़त्म करते हुए बोली
दोस्तों बहुत बार ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती है परिवार के सदस्य को हम मना नहीं कर पाते और उनसे कुछ कह नहीं पाते… ऐसे में अपने मन को मारना पड़ता है तो बुरा लगना स्वभाविक है…आपको क्या लगता है निकुंज को राशि को पहले ही बता देना चाहिए था या उसने छिपा कर सही किया?
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
बहुत अच्छी है।