ममता – निभा राजीव “निर्वी” : Moral Stories in Hindi

सोफे पर बैठ नेलपेंट लगाते हुए सुषमा ने वरुण से पूछा, “- वरुण! शॉपिंग के लिए हम कब चल रहे हैं..?.. मुझे ढेर सारी शॉपिंग करनी है जाने के पहले…”

वरुण ने लैपटॉप पर दृष्टि जमाए हुए ही कहा, “-अरे चलते हैं ना थोड़ी देर में…सोचा पहले मैं पेंडिंग काम तो निपटा लूं ऑफिस का…”

      तभी अचानक वरुण के फोन की रिंग बजने लगी। मांँ का नाम फ्लैश होते देखकर सुषमा की भवें टेढ़ी हो गईं। वरुण ने भी अनमने भाव से फोन उठाया…..

उधर से उत्साह से भरा हुआ मांँ का स्वर सुनाई दिया, “- अरे वरुण बेटा! कैसा है तू और सुषमा और बच्चे कैसे हैं? इस बार मैंने तेरी पसंद के ढेर सारे साबूदाने के पापड़ और बड़ियां भी बना रखी हैं.. और एक मर्तबान में तो अचार भी भर कर अलग से रख दिया है।मन भर कर खाना..” 

अपनी रौ में बोलते बोलते अचानक माँ रुकी और सशंकित स्वर में पूछा, “-इस बार छुट्टियों में तो आ रहे हो ना तुम लोग??”

वरुण ने झिझकते हुए कहा, “-नहीं माँ इस बार तो नहीं हो पाएगा।”

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मांँ ने फिर स्वर में मनुहार भरकर कहा, “-बेटा.. कितने दिन हो गए तुम लोगों को देखे हुए… पिछली छुट्टियों में भी तुम तुम लोग सुषमा के मायके चले गए थे क्योंकि उसका भाई विदेश से आया था…उस समय भी कम से कम दो दिनों के लिए भी तुमलोग आ जाते तो… खैर चलो जाने दो… पर इस बार तो आओ! तुम्हारे बाबूजी भी तुम्हें और बहू बच्चों को देखने के लिए तरस रहे हैं।.. और मैंने तो तुम्हारे आने के लिए ढेर सारी तैयारियां भी कर रखी हैं।” 

अब वरुण के स्वर में चिढ़ उतर आई , “-तो तुमसे किसने कहा था माँ तैयारी करने के लिए… मैंने क्या तुमसे कहा था कि मैं आने वाला हूंँ?? अरे सुषमा का कब से मन था कि हम मालदीव्स जाएं। तो इस बार छुट्टियों में वहीं का प्लान बना लिया। अब तो अगली बार ही आ पाएंगे…अभी तो नहीं आ पाएंगे।” 

मांँ का स्वर थोड़ा रुआंसा हो गया, “- कल किसने देखा है बेटा… एक बार मिलने आ जाते तो हम लोग तुम्हें और बच्चों को देख लेते तो नयन जुड़ा जाते… मन को चैन आ जाता!!” 

वरुण ने बिफरते हुए कहा, “-ओफ्फोह माँ!! तुम भी बच्चों की तरह जिद करने लगती हो। बात को थोड़ा समझने का तो प्रयास किया करो… इतनी उम्र हो गई है और…..”

माँ ने उसकी बात को काटते हुए आहत स्वर में अवरुद्ध कंठ से कहा, “- हां बेटा उम्र तो हो गई है और पता नहीं था कि इस उम्र में यह दिन देखने पड़ेंगे। ठीक है बेटा.. मत आ.. इतना नाराज होने की आवश्यकता नहीं है।” और तू क्या समझता है नाराज होना बस तुझे ही आता है। मैं नाराज हो गई न तो फिर समझेगा तू… चल अब बात नहीं करनी है मुझे…. दिया बाती दिखाना है..”

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“-अरे मांँ…”वरुण ने कहना प्रारंभ ही किया तब तक मांँ फोन काट चुकी थी।

वरुण ने भी दोबारा फोन नहीं लगाया और सुषमा को तैयार होने को बोलकर लैपटॉप बंद कर स्वयं भी उठ गया।

शॉपिंग के बाद दोनों घर पहुंचे ही थे, कि वरुण का फोन फिर से घनघना उठा……पिताजी का फोन था। वरुण ने फोन उठाया और एकदम चिढ़कर कहा, “- क्या है पापा!! मैंने सुबह मांँ को समझा तो दिया था कि मैं अभी नहीं आ सकता और फिर भी आप लोग….”

पिताजी ने उसकी बात काटते हुए कांपते स्वर में कहा, “- बेटा! तेरी माँ आज सीढ़ियों से गिर गई है और उसे बहुत चोटें आईं हैं। उसे अस्पताल में एडमिट करा दिया है। लेकिन डॉक्टर उसकी स्थिति संतोषजनक नहीं बता रहे हैं। पता नहीं क्या होगा…” पिताजी बच्चों की तरह फूट-फूट कर रो पड़े। वरुण की आंखों के समक्ष अचानक एकदम से मांँ का ममता से परिपूर्ण चेहरा घूम गया।..माँ का उसे गोद में उठाकर दुलारना….सौ मनुहार करते हुए खाना खिलाना… थपकियां देते हुए लोरियां और कहानियां सुनाना.. सब कुछ अचानक आंखों के समझ चलचित्र की भांति चलायमान होने लगा… और अचानक मां के वे आहत स्वर जैसे कानों में गूंज गए..’-मैं नाराज हो गई न तो फिर समझेगा तू..’ अचानक पश्चाताप, चिंता और घबराहट से वरुण का मन कैसा तो हो आया। 

             सुषमा ने वरुण के कंधे पर हाथ रखते हुए ढाढस बंधाते हुए कहा, “चिंता मत करो वरुण.. सब ठीक हो जाएगा… हम लोग मालदीव्स से थोड़ा जल्दी ही आ जाएंगे और तुम्हारी मां को.. अ..अ..मेरा मतलब मम्मी जी को देख आएंगे।”

पर वरुण ने जिस प्रकार उसकी ओर आग्नेय नेत्रों से घूर कर देखा वह सकपका कर चुप हो गई।  

तड़ाक…. – सुनीता उपाध्याय : Moral Stories in Hindi

                    वरुण और सुषमा सीधे अस्पताल ही पहुंचे। पिताजी मां के कक्ष के बाहर ही मिल गए। अस्पताल में लगी हुई गणेश प्रतिमा के समक्ष नयन मूंदे हुए करबद्ध खड़े.…बंद आंखों से अविरल अश्रुधारा बहती हुई, जो कपोलों से ढुलक ढुलक कर उनके कुर्ते को भिगोती जा रही थी। वरुण का मन द्रवित हो गया। वह दौड़कर उनके पास पहुंचा और उनके चरण स्पर्श किए। पिताजी ने आंखें खोलकर उसकी ओर देखा… और भर्राए स्वर में बोले, “-अब आया है तू! तुझे देखने की बड़ी कामना थी कौशल्या को… पता नहीं अब तुझे देखा भी पाएगी या नहीं…पर शायद अब तेरी प्राथमिकताएं बदल गई हैं।”

“नहीं नहीं….ऐसा मत बोलिए पिताजी! माँ को कुछ नहीं होगा! माँ बिल्कुल ठीक हो जाएगी। डॉक्टर्स का क्या कहना है?” लज्जित और विचलित स्वर में वरुण ने पूछा। 

आंँसू पोंछते हुए पिताजी ने कहा, “- अभी कौशल्या वेंटिलेटर पर है और उसे होश भी नहीं आ पाया है… और.. और डॉक्टर्स ने कहा कि आप लोग ईश्वर से प्रार्थना कीजिए..शायद अब प्रार्थना ही कुछ काम कर जाए….”

पिता के कांपते हुए जर्जर वृद्ध शरीर को वरुण ने कसकर अपने वक्ष से लगा लिया। पिताजी ने हृदय कड़ा कर स्वयं को संयत किया और कांपते हाथों से वरुण को स्वयं से परे कर दिया और आगे जाकर वहां लगी बेंच पर सिर झुका कर बैठ गए। वरुण समझ रहा था कि अपने दुर्व्यवहार से उसने मांँ के साथ-साथ पिताजी को भी अत्यंत आहत कर दिया है। परंतु अब माँ को खो देने के विचार मात्र से ही उसके आत्मा कांपी जा रही थी.. ‘-नहीं नहीं जो हुआ सो हुआ… संभवत मतिभ्रमता मुझ पर हावी हो गई थी जो मैंने अपने जीवन दाता माता-पिता को इतना आहत कर दिया.. परंतु अब नहीं अब मैं ऐसा होने नहीं दूंगा..कदापि नहीं…”

वादा … – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

आज पांच दिन हो चुके थे। चिकित्सकों की अनुमति लेकर वह प्रत्येक दिन माँ के पास जाता था। परंतु माँ की स्थिति में कोई सुधार नहीं था। और उस दिन तो चिकित्सकों ने भी अब हाथ खड़े कर दिए…. मांँ के पास बैठा वरुण पश्चाताप और चिंता से उद्वेलित होकर फूट-फूट कर रो पड़ा। माँ के निष्पंद पर हाथ को उसने दोनों हाथ से कसकर थाम लिया, “- माँ, तू तो माँ है मेरी.. बचपन से मेरी अनगिनत गलतियों को भुलाकर तूने सदैव मुझे हंस कर क्षमा कर दिया। पर आज क्या हुआ जो अपने बेटे से इतनी नाराज हो गई कि आंखें भी नहीं खोल रही है और आज तू अपने बेटे को रोता हुआ छोड़ कर जाने को उद्यत है। जिसके चेहरे की एक शिकन..जिसका एक आंँसू तुझसे सहन नहीं होता था, देख आज वह तेरे पैरों से लिपटा फूट फूट कर रो रहा है और क्षमा मांग रहा है.. तुझे फिर से आना ही होगा माँ… अपने बेटे के लिए एक बार फिर से आना ही होगा…”

वरुण के अश्रुओं की धार मांँ के कृशकाय हाथों को भिगोती जा रही थी। तभी वरुण को माँ के हाथों में अकस्मात कंपन का अनुभव हुआ। उसने माँ की ओर आंख उठा कर देखा तो माँ की कंपित पलकें हिलती हुई खुलीं। माँ की उंगली वरुण की उंगली से लिपट गई। वरुण खुशी से बावला सा हो गया। वह दौड़ता हुआ बाहर आया और पिताजी को और चिकित्सकों को सूचित किया। 

                  चिकित्सकों ने जाँच के बाद बताया कि कौशल्या जी की स्थिति में अचानक अब थोड़ा सुधार आने लगा है जो शायद ईश्वर का चमत्कार ही है। पिताजी डबडबाई आंँखों से ईश्वर का धन्यवाद कर रहे थे। परंतु यह मात्र और मात्र वरुण का हृदय ही जानता था कि आज पुन: मांँ अपने पुत्र को रोता बिलखता देख कर वापस लौट आई है… पुनः उसे अपने वक्ष से लगा कर उसके सारे कष्ट और संताप हरने के लिए…. अपनी ममता की अमृत वर्षा से उसे सराबोर कर अंतस्तल तक शीतल कर देने के लिए…किसी ने सच ही कहा है… पूत कपूत हो सकता है परंतु माता कभी कुमाता नहीं होती।

 

✍️ निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड 

स्वरचित और मौलिक रचना

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