ममता की कीमत – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 क्या कहा आपने!…मैं अपनी छुटकी को आपकी भाभी की गोद में डाल दूँ।किसी भी कीमत पर नहीं..कैसे भूल जाऊँ कि उन्होंने मेरी बच्चियों को कितना भला-बुरा कहा है।आपकी भाभी को तो मेरी बेटियाँ चुभती थी ना…फिर आज…।आप लोगों के स्वार्थ को मैं खूब समझती हूँ।” अंजू अपने पति अशोक पर लगभग चीखते हुए बोली तो वो दंग रह गये।हमेशा शांत रहने वाली… लोगों की बातों को चुपचाप सहने वाली अंजू इस कदर फट पड़ेगी..ये अंदेशा उन्हें नहीं था।

     पत्नी के कंधे पर अपने दोनों हाथ रखते हुए अशोक बोले,” बीती बात भूल जाओ अंजू…भाभी की तबीयत ठीक नहीं है…डाॅक्टर के अनुसार उनकी गोद में एक बच्चा आ जाये तो वो…।”

  ” बस-बस…रहने दीजिए…मैं आपकी बातों में नहीं आने वाली।कल ही अपनी बेटियों को लेकर मायके चली जाऊँगी…आपका क्या भरोसा…।” कहकर अंजू ने अलमारी के ऊपर से ट्राॅलीबैग निकाला और उसमें कपड़े रखने लगी।

        अंजू एक मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली पढ़ी-लिखी लड़की थी।उसके पिता रामचरण एक कस्बे में अध्यापक थें।उसी कस्बे में कृपाशंकर बाबू नाम के एक ज़मींदार भी रहते थें जिनके सुपुत्र दयाशंकर के साथ रामचरण की अच्छी दोस्ती थी।

      दयाशंकर पढ़ाई करने के लिये शहर चले गये और फिर वहीं एक दफ़्तर में नौकरी करने लगे।माता-पिता ने जानकी नाम की सुकन्या के साथ उनका विवाह करा दिया…समय के साथ वो दो बेटों के पिता बन गये।कभी वो अपने माता-पिता से मिलने आ जाते थे तो कभी कृपाशंकर बाबू बेटे-बहू के पास चले जाते थे।उनके देहांत के बाद दयाशंकर का अपने घर जाना ना के बराबर हो गया था।

        दयाशंकर के दोनों बेटे सयाने होने लगे।बड़ा प्रकाश पढ़-लिखकर एक दफ़्तर में अफ़सर बन गया मगर छोटा अशोक का पढ़ाई में दिल नहीं लगा।किसी तरह से इंटर पास कर लिया तब उसके पिता ने उसके लिये एक स्टेशनरी शाॅप खुलवा दिया।

      प्रकाश की शादी एक सम्पन्न परिवार की लड़की मधु के साथ हो गई।मधु अपने साथ भरपूर दहेज़ लायी थी जिसके कारण जानकी जी रिश्तेदारों के बीच नाक ऊँची करके चलती थी।साल बीतते मधु ने एक बेटे को जनम दिया तब जानकी जी दादी बनने की खुशी में एक बड़ी दावत दी थी।

अब वो अशोक के सिर पर सेहरा बाँधना चाहती थी तब मधु ने उनसे अपनी चचेरी बहन का ज़िक्र करते हुए कहा कि देखने में अशोक जैसी ही सुंदर है और दहेज़ मुझसे ज़्यादा लायेगी।जानकी जी एक घर में दो बहनों के विवाह के खिलाफ़ थी, इसलिये उन्होंने हाँ नहीं कहा लेकिन इंकार भी नहीं किया।

          इसी बीच दयाशंकर का किसी काम से अपने पुश्तैनी घर जाना हुआ।वहाँ उनकी मुलाकात मित्र रामचरण से हुई तो उन्होंने चाय पर घर आने का न्योता दिया।दयाशंकर मित्र के घर पहुँचे तो उनका स्वागत अंजू ने किया।अंजू की सादगी और व्यवहार-कुशलता से प्रभावित होकर उन्होंने उसी समय अपने अशोक के लिये अंजू का हाथ माँग लिया।रामचरण और उनकी पत्नी ने इस रिश्ते को सहर्ष स्वीकार कर लिया और एक शुभ-मुहूर्त में दोनों का विवाह हो गया।

      अपनी बहन के साथ अशोक का विवाह न होने के कारण मधु भीतर ही भीतर कुढ़ रही थी।अब सास को तो कुछ कह नहीं सकती सो पूरा गुस्सा वह अंजू पर निकालने लगी।अक्सर सास के कान भरती कि कंगले घर से आई है…मेरी बहन आती तो ट्रक भर दहेज़ भी साथ लाती।दहेज़ की इच्छा तो जानकी जी को भी थी सो मधु का साथ दिया लेकिन फिर अंजू के अच्छे व्यवहार ने उनका मन जीत लिया था।

        दो साल बाद अंजू ने एक बेटी को जनम दिया।उसे दूसरी-तीसरी संतान भी जब लड़की हुई तब तो मधु उसे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती।उसकी बेटियों को भला-बुरा कहती…यहाँ तक कि अपने बेटे अंकुर को रिद्धि-सिद्धि के साथ खेलने के लिये भी मना करती।

उसकी सास और परिवार के सभी लोग उसे समझाते,” मधु…बच्चियों को लेकर अंजू को इतने ताने क्यों देती हो..जितना जरूरी बेटा है, बेटियों की भी उतनी ही आवश्यकता है…और फिर… बेटियाँ तो लक्ष्मी होती हैं।” लेकिन मधु उन सबकी बातों को अनसुना कर देती।सास के देहांत के बाद तो घर की कमान उसके हाथ में आ गई।तब तो वह वक्त-बेवक्त अंजू और उसकी बेटियों को कोसती रहती थी।अंजू को बहुत बुरा लगता और दुख भी होता लेकिन वह चुप रहती इस इंतज़ार में कि समय के साथ सब ठीक हो जायेगा।

      गर्मियों की छुट्टियों में अंकुर अपने नानी-नानी से मिलने उनके गाँव गया हुआ था।शाम को बच्चों के संग वह आम के बगीचे में खेल रहा था।अचानक कहीं से एक साँप आ गया और अंकुर को डस लिया।सुनते ही उसके नानी-नानी दौड़कर आये…नाती को लेकर अस्पताल दौड़े।डाॅक्टर बोले,

” साँप का ज़हर बच्चे के पूरे शरीर में फैल चुका था इसलिए हम उसे नहीं…।” मधु तो पछाड़ खाकर गिर पड़ी थी।अपने इकलौते बेटे को सफ़ेद कपड़े में लिपटे देख वह रोते-रोते बेहोश हो जाती और होश आने पर उसका हृदय चीत्कार उठता था।

     पंद्रह दिन से अधिक हो गये थे…मधु ने अनाज का एक दाना भी मुँह में न डाला था।बेटे के कपड़े-किताबें देखती तो फिर से रोने लगती।बड़ी मुश्किल से प्रकाश पत्नी को पानी-जूस पिला पा रहें थें।डाॅक्टर आकर उसका चेकअप करते और उसे समझाते।पत्नी की हालत देखकर प्रकाश घबरा गये।तब डाॅक्टर ने उनसे कहा कि आपकी पत्नी की गोद में कोई बच्चा आ जाये तो उन्हें अपने बेटे के हादसे से उबरने में मदद मिल सकती है।तब अशोक बोले,” भईया…आप चिन्ता न करे..अंजू हमारी छुटकी को भाभी की गोद में डाल देगी।”

      जब यह बात अंजू ने सुनी तो उसका बरसों से दबा गुस्सा फूट पड़ा जिसे देखकर सभी दंग रह गये थे।वो रात अंजू ने जाग कर काटी और सुबह होते ही छुटकी को गोद में लेकर और दोनों बेटियों का हाथ पकड़कर बस अड्डे चली गई।

        अचानक मायके पहुँची बेटी के तेवर देखकर माँ समझ गई कि कोई बड़ी बात हुई होगी…कुछ देर बाद शांति से बात करेंगी।तभी दामाद का फ़ोन आ गया तो उन्हें सारी बात पता चली।

      बेटियों को नाना-नानी के पास भेजकर अंजू चाय पीकर बिस्तर पर अपनी आँखें बंदकर लेट गयी और पिछले दिनों की बातें याद करने लगी,मधु जीजी के साथ बहुत बुरा हुआ लेकिन उन्होंने भी तो हमारे साथ अच्छा नहीं किया था।अब अपनी ज़रूरत पड़ी तो हमारी याद आई…लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि मैंने उन्हें कल कितना-कुछ सुनाया..तो उन्होंने मुझे कुछ कहा क्यों नहीं।पहले तो बिना बात के मुझे टोकती रहती थी, फिर कल चुप कैसे रह गईं…मुझे जाने से रोका भी नहीं।

मैं अगर छुटकी को न दूँ तो क्या होगा…शायद….इन्होंने(अशोक) एक बार बताया था कि अंकुर के जन्म के समय मधु भाभी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी।अब दूसरा बच्चा वो कर नहीं सकती और अंकुर का दुख वो बर्दाश्त नहीं कर पा रहीं हैं…।माँ कहती थी कि हथेली की ऊँगलियों की तरह ही हमारे परिवार के सदस्य होते हैं।अलग-अलग होकर भी वक्त पड़ने पर आपस में एक होकर मुट्ठी की तरह बँध जाते हैं तो फिर मैं मधु दीदी को कैसे अकेला छोड़ आई।बचपन में पापा यही सिखाते थे कि बुराई को अच्छाई से ही समाप्त किया जा सकता है।

आज मैंने जो किया…फिर तो मधु जीजी और मुझ में कोई फ़र्क ही नहीं रहा।हे भगवान! ये मुझसे क्या अनर्थ हो गया।उसकी आँखों से आँसू ढ़ुलक गये।

       माँ ने खाने के लिये बुलाया तो वह बेमन-से एक रोटी खाकर उठ ग्ई।टेबल पर उसकी पसंद की खीर रखी थी जिसे उसने देखा तक नहीं।किसी तरह से उसने रात बिताई और सुबह उठते ही उसने बेटियों को तैयार किया।रिद्धि ने कहा कि मम्मी…, हम कल ही तो आये थें और आज…।

” फिर आ जायेंगे बेटा…।” कहकर उसने बेटी को चुप करा दिया।अपने बैग के साथ बेटियों को लेकर अंजू ‘जा रही हूँ माँ ‘ कहकर अपनी माँ के चरण-स्पर्श किये।माँ की अनुभवी आँखों ने बेटी के चेहरे पर आये उसके हृदय-परिवर्तन के भावों को पढ़ लिया था।इसलिये उन्होंने बेटी से कोई सवाल नहीं किया।

      घर आकर अंजू ने अपना बैग रखा और बेटियों को खेलने के लिये कहकर दनदनाती हुई अपनी जेठानी के कमरे में गई और उन पर बरस पड़ी,” मधु जीजी..आपके साथ इतना बड़ा हादसा हुआ..आपके दुख पर मरहम लगाने की बजाय मैंने आपको इतना भला-बुरा कहा तो आप मुझ पर गुस्सा क्यों नहीं हुई? पहले तो मुझे बेवजह ताने देती थी फिर कल क्यों चुप रही? मैं जाने लगी तो मेरा हाथ पकड़कर रोका क्यों नहीं…मैं बहुत बुरी हूँ ना..।” कहते हुए वह फूट-फूटकर रोने लगी।

मधु ने उसे चुप कराया और बोली,” क्योंकि मुझे ममता की कीमत समझ में आ गयी थी।बेटा खोने के बाद मुझे अहसास हुआ कि बेटा हो या बेटी..माँ के लिये दोनों बराबर होते हैं।उसकी ममता में कोई कमी नहीं आती है।मैं तो अपनी ही बच्चियों को कोसने लगी थी इसलिए तो….।कल मुझे मालूम हुआ कि जितना मैं अंकुर से प्यार करती हूँ उतना ही तू अपनी तीनों लाडलियों से तो फिर उन्हें मुझे कैसे दे देती।”

    अंजू झट-से उठी और चार वर्षीय छुटकी को अपनी जेठानी की गोद में डालती हुई बोली,” संभालिये अपनी लाडली को…।”

     ” नहीं रे…ये तेरी गोद में ही अच्छी लगती है।” कहते हुए मधु ने छुटकी को वापस अंजू की गोद में डाल दिया और बोली,” आज से हम दोनों मिलकर अपनी बेटियों को पालेंगे और तीनों मुझे ‘ बड़ी माँ ‘ कहेंगी।”

    ” पर जीजी..।” 

 ” अब कोई पर-वर नहीं…।” कहते हुए मधु ने अंजू के मुँह पर अपना हाथ रख दिया तो उसकी आँखों से अश्रुओं की धार बह निकली।तभी ” बड़ी माँ..” कहते हुए रिद्धि ने मधु के गले में अपनी बाँहें डाल दी और सिद्धि आकर उसकी गोद में बैठ गई।

        मधु और अंजू के आपसी स्नेह देखकर दोनों भाइयों की आँखें खुशी-से छलक उठीं।पीछे खड़े दयाशंकर भी भावविभोर हो गये।पत्नी को याद करते हुए मन में बोले,” जानकी…देख रही हो ना…हमारे बच्चे कितने समझदार हो गयें हैं…इन्हें आशीर्वाद दो कि इनका आपसी स्नेह किसी भी कीमत पर कम न होने पाये।”

                                विभा गुप्ता

# कीमत                      स्वरचित 

               परिवार में किसी सदस्य को कोई दुख या तकलीफ़ होती है तो दूसरे को उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। पुरानी बातों को दोहरा कर दुख को बढ़ाना नहीं चाहिये। समझदार लोग किसी भी कीमत पर अपने रिश्तों में दरार नहीं आने देते जैसे कि अंजू ने किया।  

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!