ममता का त्याग – विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

   ” मीनू…शादी के बाद तुम मुझे आप कहोगी ना..।” 

  ” हर्गिज़ नहीं..शादी के बाद तुम अपना भाव बढ़ा लोगे..तो मैं तुमसे शादी नहीं करूँगी..।”

 ” अच्छा…मुझसे नहीं करोगी..तो फिर किससे…।” कहते हुए मयंक उससे दिल्लगी करने लगा तो मीनू ने ‘जाओ..मैं तुमसे बात नहीं करती..।’ रूठते हुए फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

         मीनू के पिता रामदयाल प्रसाद का दिल्ली के मेन मार्केट में ‘ क्लाॅथ सेंटर’ नाम का शोरूम था।उनके दो मंजिला घर के पास वाले मकान में प्रमोद राॅय रहते थें, मयंक उन्हीं का बेटा था।

        प्रमोद एक बैंक में काम करते थें।जब वो इस मकान में रहने आये तब मयंक आठ साल था और मीनू छहः साल की।दोनों बच्चे साथ में खेलते हुए बड़े होने लगे।खेल-खेल में मयंक कभी मीनू की चोटी खींच देता तो कभी उसके कान उमेठ देता।लेकिन जब वो रोने लगती तो उसे साॅरी कहकर प्यार-से चुप भी कराता।मीनू अपने खिलौने मयंक को खेलने देती और मयंक अपनी चाॅकलेट में मीनू को हिस्सेदार बनाना कभी नहीं भूलता।बच्चों की बढ़ती दोस्ती के साथ दोनों परिवारों के बीच एक गहरा रिश्ता भी जुड़ता चला गया।

       एक दिन स्कूल से आने पर मीनू को पता चला कि मयंक को तेज बुखार है तो सोफ़े पर अपनी किताबें फेंक कर वो मयंक के घर दौड़ी।मयंक को बीमार हालत में देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गए।वो मयंक का सिर दबाने लगी।फिर मयंक की माँ गायत्री से बोली,” आँटी..मैं मयंक के लिये सूप बना दूँ?” 

   ” हाँ-हाँ..क्यों नहीं..।” कहकर गायत्री उसे किचन में ले गई।मयंक के स्वस्थ होने तक मीनू इसी तरह से उसकी सेवा करती रही।तब एक दिन गायत्री मीनू की माँ से बोली,” कल्पना…दोनों बच्चों में बहुत स्नेह है।अगर इसे रिश्तेदारी में बदल दे तो…।” 

   ” आपने तो मेरे मन की बात कह दी गायत्री बहन..।” कल्पना तपाक-से बोली।दोनों ने जब अपने-अपने पति से जब ये बात कही तो उन्होंने हँसी में टाल दिया।

      बारहवीं परीक्षा का रिजल्ट आने पर मयंक ने मीनू को बताया कि मुंबई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में उसका दाखिला हो गया है और अगले सप्ताह वो जा रहा है।सुनकर मीनू उदास हो गई, फिर बोली,” अब तो तुम मुझे भूल जाओगे।” तब मयंक बोला,” कैसे भूलूँगा..रोज तो तुम मुझे फ़ोन करोगी..।” मीनू को हँसी आ गई और एक दिन उसने मयंक को नम आँखों से विदा कर दिया।

       मुंबई जाने के कुछ महीनों के बाद मयंक को एहसास हुआ कि वो मीनू को चाहने लगा है मगर कहे कैसे…।उधर मीनू भी अपने अंदर एक खालीपन महसूस करने लगी थी।वो अक्सर ही मयंक के घर जाती.. गायत्री के साथ उसका हाथ बँटाती और बातों- बातों में पूछ लेती कि आँटी.. मयंक कब आयेगा?” गायत्री हँसते हुए कहती,” फ़ोन पर तुम्हारी बात तो होती ही है..फिर..।” मीनू लज़ा जाती।कैसे कहती कि उसे मयंक के बारे में बात करना अच्छा लगता है।गायत्री और कल्पना मीनू की बेचैनी देखकर मुस्करा देते।

      सेमेस्टर खत्म होने पर जब मयंक आया तब उसने मीनू से ‘आई लव यू’ कह दिया।सुनकर मीनू की आँखों से आँसू बहने लगे जो कह रहे थे कि मैं भी तुमसे…।इस तरह से दोनों जब मिलते अथवा फ़ोन पर बात करते तो अपने भावी जीवन की कल्पनाएँ करने लगते।मीनू कहती कि शादी के बाद मैं तुम्हें अपनी चोटी खींचने नहीं दूँगी और मयंक हँस कर कहता कि तुम मुझे आप कह कर बुलाओगी..।

        देखते-देखते तीन साल बीत गये।प्रमोद किराये के मकान से अपने घर में शिफ़्ट हो गये लेकिन दोनों परिवारों के बीच संबंध बना रहा।एक हादसे में मीनू की बुआ और फूफा जी का देहांत हो गया।तब रामदयाल अपनी अनाथ भांजी ममता जो मीनू से छहः महीने छोटी थी, को अपने पास ले आये और उसका काॅलेज़ में एडमिशन करा दिया।गायत्री का प्यार और मीनू का स्नेह पाकर ममता अपना दुख भूल गई।

         मयंक को एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई।वह मीनू को खुशखबरी देने उसके घर गया।ममता ड्राइंग रूम में बैठी अपने नोट्स बना रही थी।एक अनजान लड़की को देखकर मयंक चौंक गया।एक नौजवान को देखकर ममता भी हड़बड़ा गई, तभी मीनू आ गई और दोनों का एक -दूसरे से परिचय कराया।तब मयंक हँसते हुए बोला,” तो आप हैं हमारी साली यानि आधी…।” उसके साथ दोनों भी हँस पड़े।

        उस दिन घर आने के बाद मयंक की आँखों के सामने बार-बार ममता का चेहरा आने लगा।उसकी बड़ी-बड़ी आँखें और काले-लंबे बाल बरबस ही मयंक को अपनी ओर आकृष्ट करने लगे।उधर ममता भी मयंक के आकर्षक व्यक्तित्व के मोह से स्वयं को बचाने में असफल हो रही थी।

      मयंक ममता की ओर खिंचता ही चला गया।ऑफ़िस से छुट्टी मिलते ही मीनू से मिलने के बहाने आ जाता और कनखियों से ममता को भी देख लेता।कुछ समय बाद गायत्री बोलीं,” मयंक..अगले महीने मीनू के इम्तिहान खत्म हो रहें हैं.. तुम दोनों को अब वैवाहिक बंधन में बँध जाना चाहिए।”

   ” हाँ मम्मी…आप लोग तैयारी शुरु कर दीजिये।” बेटे की सहमति मिलते ही गायत्री पति के साथ रामदयाल के घर गईं और विवाह के बारे में बातचीत करने लगीं।दोनों परिवारों में उत्साह का माहोल था लेकिन न जाने क्यों, मयंक बेचैन था।उसका मन बार-बार मीनू की ओर से ममता की तरफ़ मुड़ जाता।मौका पाकर एक दिन उसने ममता का हाथ पकड़ लिया।पहली बार एक पुरुष-स्पर्श से वो सिहर उठी थी।बड़ी मुश्किल से कह पाई,” मुझे जाने दीजिये..।” मयंक बोला,” मुझसे शादी करोगी।” हाथ छुड़ाकर वो भाग गई जिसे मयंक ने उसकी सहमति समझ लिया।

     सच तो यही था कि ममता भी मयंक को चाहने लगी थी लेकिन इस बात को उसने ज़ाहिर नहीं होने दिया।उधर मयंक पर ममता के प्यार का नशा चढ़ चुका था।वो मीनू से कतराने लगा जिसे मीनू ने शादी की घबराहट समझकर नज़रअंदाज़ कर दिया।

       एक दिन मयंक ने गायत्री से कह दिया,” मम्मी..मैं ममता के साथ शादी करना चाहता हूँ।” सुनते ही गायत्री चीखी,” तेरा दिमाग तो ठीक है..विवाह को खेल समझ रखा है क्या…इतने दिनों तक मीनू-मीनू की रट लगाये बैठा था..अब अचानक ममता..।” प्रमोद सुने तो बेटे पर हाथ उठाते-उठाते रुक गये।लेकिन मयंक अपनी ज़िद पर अड़ा रहा।

    गायत्री ने हाथ जोड़कर कल्पना से कहा कि मयंक मीनू से नहीं ममता से शादी करना चाहता था तो वो गुस्से-से भड़क उठी।उसे बहुत भला-बुरा सुनाकर बाहर का रास्ता दिखा दिया और इस तरह से बरसों पुराने रिश्ते अब टूटने की कगार पर आ गये।गायत्री कभी मयंक पर चिल्लाती तो कभी ममता को कोसती कि कहाँ से ये मुसीबत आ गई।कल्पना अकेले में बड़बड़ाती कि गायत्री ने अपने बेटे को अच्छे संस्कार नहीं दिये..वक्त-बेवक्त वो ममता पर अपना भड़ास निकालती।

      मीनू को इतना ही बताया गया कि मयंक ने शादी से मना कर दिया है, ममता का नाम उस पर किसी ने ज़ाहिर नहीं किया।आहत मन से उसने मयंक से पूछा तो वो भी चुप रहा..उसकी खामोशी ने उसे अंदर तक तोड़ दिया।दोनों परिवारों में तनाव का माहोल था।मयंक पर ममता हावी थी और ममता….।वो काॅलेज़ जाती लेकिन पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता।दिल उसे मयंक की तरफ़ खींचता और दिमाग उसे अपने मामा-मामी और मीनू के स्नेह की याद दिलाता।मीनू का आँसुओं भरा चेहरा देखती तो खुद को अपराधी महसूस करती।इसी तरह से दो महीने बीत गये।

        एक दिन रोज की तरह ममता किचन में नहीं आई तो मीनू उसके कमरे में गई।बेड पर एक कागज रखा था जिस पर लिखा था, मामा- मामी, मैं रितेश के साथ शादी कर रही हूँ..बिना बताये जा रही हूँ..माफ़ कीजियेगा।आपकी- ममता।मीनू हतप्रभ थी।उसे ममता से बेहद लगाव था, इसलिये उसके इस कदम से उसे बहुत दुख हुआ।कल्पना तो खुश थी कि चलो..बला टली लेकिन भाँजी द्वारा उठाये इस कदम से रामदयाल बहुत नाराज़ हुए।

        कल्पना ने इस सुअवसर का फ़ायदा उठाया और गायत्री के घर पहुँच गई।प्रमोद घर पर ही थें, दोनों को ममता-लिखित पत्र दिखाकर बोली,” पिछली बातों पर मिट्टी डालकर आगे की सोचे…।”

   ” सोचना क्या है भाभी जी..हम आज ही मयंक से बात करते हैं।” प्रमोद तपाक-से बोले।गायत्री ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाया।

     ममता का पत्र पढ़कर मयंक का भ्रम टूटा।उसे समझ आने लगा कि एक मृगतृष्णा के पीछे भाग कर उसने मीनू को कितना दुख दिया है..।उसने मीनू से माफ़ी माँगी तो वो मयंक के सीने-से लगकर रो पड़ी।

     एक शुभ-मुहूर्त में मीनू के साथ मयंक का विवाह हो गया और फिर से #टूटते रिश्ते जुड़ने लगे।साल भर बाद मीनू ने एक बेटे को जनम दिया..प्रमोद और गायत्री दादा-दादी बने..रामदयाल और कल्पना नाना-नानी…।

     पोते अंश के पहले जन्मदिन की खरीदारी करने के लिये गायत्री सेंट्रल माॅल जा रही थी।ऑटो से उतरते हुए उनकी नज़र एक युवती पर पड़ी जो गेट से बाहर निकल रही थी।गायत्री उसे देखकर चौंक पड़ीं, ये तो…। ड्राइवर को पैसे देकर वो उस युवती का पीछा करने लगी।

      करीब दस मिनट तक पतली-संकरी गलियों को पार करके युवती एक कमरे के बाहर रुककर ताला खोलने लगी तब गायत्री ने पुकारा,” ममता…।” सुनकर ममता मुड़ी और अपने सामने गायत्री को देखकर सकपका गई।

      सीलन भरे कमरे में पड़ी पुरानी खाट देखकर गायत्री चौंक पड़ी,” तुमने तो शादी की थी..फिर ये सब..।”

   ” मैंने झूठ बोला था आँटी.. ताकि आप लोग मुझसे नफ़रत करने लगे और मयंक जी मीनू से विवाह कर ले।मेरी एक सहेली ने ही मुझे काम और रहने के लिये जगह दिलाई।” 

       ममता की बात सुनकर गायत्री की आँख भर आई,” तुम कितनी महान हो…हमने तुम्हें न जाने क्या-क्या..खुश रहो..।” ममता को आशीर्वाद देकर गायत्री चलीं गईं।अंश के जन्मदिन के बाद गायत्री ने कल्पना को सच्चाई बताई।दोनों ममता से मिलने गये लेकिन तब तक वो कमरा छोड़कर कहीं और जा चुकी थी।

     समय के साथ मीनू और मयंक की स्मृतियों से ममता का नाम गया लेकिन अपने बच्चों को खुश देखकर कल्पना और गायत्री एक-दूसरे से कहतीं,” ममता के त्याग के कारण ही हमारे बच्चों के घर बसे हैं।उसी के कारण हमारे टूटते रिश्ते जुड़ने लगे हैं।वो जहाँ भी रहे..ईश्वर उसे खुश रखे और उसकी रक्षा करे।”

                                विभा गुप्ता 

                             स्वरचित, बैंगलुरु 

# टूटते रिश्ते जुड़ने लगे

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