*************
आज उसका मन ब्याकुल होनें लगा अकुलाने लगा ।उसके मन में ये बात आ रही थी कि क्यों न कोई गोली खा लूँ, जिससे कहानी फटाफट लिखी जा सके ।लेकिन कहानी लिखने की कोई गोली नहीं खाई जाती है, ये तो अनुभव की मोती होती है, जिसे शब्दों की लङियों में पिरोकर वास्तविकता की देवी को अर्पित की जाती है ।
कुछ स्वतः की आत्मा से उभरती है कुछ किसी दूसरे घरौंदे की देवी की सिसकन होती है ; जिसे कहानी बनाकर लिपिबद्ध किया जाता है ।
अपने अनुभव, अपने उद्गार तो वह काफी लिख चुकी थी । वह अब किसी दूसरे घरौंदे के अफसाने लिखने की सोच रही थी । तभी उसे अपनी पङोसन कुसुम के घर की घटना याद आनें लगी — जिसे वह अपनी आँखों से देखी थी । कुछ इस तरह——
एक ब्यक्ति मारुति वेन से ठीक उसके दरवाजे के पास जाकर उतरा , साथ में एक महिला भी थी । गर्मी का मौसम था और रात का समय; इसलिए कुसुम और उसके बच्चे घर के बाहर टहल रहे थे ।कुसुम ने घर का दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया था ।
मारुति वेन में आए उन लोगों ने अंदर ऐसे प्रवेश किया जैसे कुछ खास करीबी हो ।तभी कुसुम वहीं आ गई देखा कि घर के सामने वेन खङी है ।अंदर जा कर देखा घर में कुछ मेहमान बैठे हुए थे ।और सचमुच वे लोग उसके खास करीबी थे ।उनको देख कर वह चहकने लगी
।अरे गौरव तुम लोग कब आए, बैठो -बैठो मैं अभी शरबत बनाकर लाती हूँ । तभी आगंतुक कहने लगा– रहनें दिजिऐ आन्टी इसकी कोई जरूरत नहीं है । इतना कहते हुए वह ब्यक्ति अपने खास चेहरे पे आ गया, अपने नाम के जस्ट विपरीत था वह ब्यक्ति । पैसा उपजाने के लिए वह किसी का भी अपमान कर सकता था और कहीं भी अपमानित हो सकता था ।कुछ ऐसी फ़ितरत का इंसान था वह । वह बङे ही सामान्य ढंग से कुसुम के घर का टी.वी. सेट उतारने लगा । तब कुसुम को बङा अचंभा हुआ । अरे गौरव ये क्या कर रहा है !!! कुसुम ने उससे 6o हजार रुपये उधार ले रखी थी , लेकिन कुसुम को ये अंदाज़ा बिलकुल ही नहीं था कि उन पैसों को वसूलने के लिए वह इतना छिछोङा हरकत करेगा ।
कुसुम अब कङक लहजे में कहने लगी क्यों ले जाऐगा तू मेरा टी वी सेट ।
भूल गया वो दिन जब मेरे। आँगन में बैठकर ङोंगा भर भर चिकन कोरमा खाया करता था । तुम्हारे अंकल के स्वर्गवास होने के कारण विषम परिस्थितियों में तू मेरे साथ ऐसी हरकत करेगा??? मगर कुछ इंसानों की फितरत ही ऐसी होती है कि वह रिश्तों से ज्यादा पैसों को महत्व देते हैं ।
इन तमाम घटना को लिपिबद्ध करके सरिता नें कुसुम को सुनाई । तू ही बता सरिता क्या मैं उस चंडाल का पैसा वापस नहीं करती ! मेरे बेटे के अनुकंपा नियुक्ति पर पहले वेतन से उसका एक एक पैसा छूट देती ।ऐसा कहते हुए कुसुम का गला रूंध गया आँखों से आँसू टपकने लगे । वह चोट खाई नागिन की तरह फुफकार कहने लगी – अच्छा की जो तुने इस घटना को लिपिबद्ध कर दिया । कल किसी बङे अखबार में प्रकाशित करा देना ।ऐसे स्वार्थी लोगों का सच उजागर ही होना चाहिये ।
इस तरह सरिता नें वास्तविकता की देवी को एक और माल्यार्पण किया ।
” गोमती सिंह “