जुलाई से विद्यालय के प्रांगढ़ में एक महिला प्रायः रोज़ ही दिखती थी शैलजा को।चिंतामुक्त हंसमुख चेहरा हमेशा खिला रहता था उनका।शैलजा को देखकर हंसकर उनका “गुड मार्निंग मैम कहना कभी चूकता ना था।समय की कमी के चलते रुककर कभी बात नहीं कर पाई थी शैलजा उनसे।हंसकर उनके अभिवादन का उत्तर जरूर दिया था।इतना समझ में आ गया था कि उनकी बेटी केजी में है।
फ़रवरी से वार्षिक परीक्षा शुरू होने वाली थी।एडमिट कार्ड मिलने शुरू हो
चुके थे।आज शैलजा भी थोड़ा जल्दी ही आ गई थी।गेट पर वही महिला केजी की प्रिंसिपल से बात करते मिलीं। प्रिंसिपल का अभिवादन कर उस महिला के अभिवादन का जवाब देकर जैसे ही आगे बढ़ने को हुई ,महिला का स्वर सुनकर रुकना पड़ा”सिस्टर,एक साल और रहने दीजिए आराध्या को यहां।मैं पूरी कोशिश कर रहीं हूं।यहां एक साल में बहुत सुधार हुआ है आराध्या में।
“पता नहीं उनकी बात सुनकर पलट कर उन तक कैसे पहुंच गई शैलजा।ध्यान से देखा उस मां को,जो अपनी बच्ची के लिए एक और अवसर मांग रही थी। प्रिंसिपल ने शैलजा की ओर देखकर कहा”वास्तव में,इनकी बच्ची स्पेशल चाइल्ड है।बोल और सुन नहीं सकती।उसके लिए विशिष्ट विद्यालय जरूरी है।यहां बड़े होते बच्चे उसका मजाक उड़ानें लगेंगे।अभी तो सभी छोटे हैं,इसलिए आराध्या के साथ खेल लेतें हैं,पर बड़े होने पर इनके ताने सुनकर आराध्या कहीं हीन भावना की शिकार ना हो जाए।”
सन्न रह गई शैलजा।पिछले सात महीनों से बिना नागा जिस महिला ने हंसकर उसका अभिवादन किया,वो सुबह आठ बजे से दोपहर बारह बजे तक,अपनी बेटी के विद्यालय में प्रतीक्षा करती है,छुट्टी होने तक।संभ्रांत घर की लगती थीं वे।आज पहली बार शैलजा ने ही उन्हें संबोधित करते हुए कहा”कैसी है आपकी बेटी?”, उन्होंने हंसकर कहा”,एकदम ठीक है मेरी बेटी।
के जी वन में है।मैम कभी भी रोने लगती है वह,इसलिए मैं यहीं इंतज़ार करती हैं उसका।”शैलजा कुछ बोल ही नहीं पाई। आश्चर्य से उस भद्र महिला की तरफ अपलक निहारती रह गई।कितनी हिम्मत है इनमें,कभी चेहरे पर शिकन तक नहीं दिखाई दी।इतना धीरज कहां से ला पातीं हैं मां?चार घंटों तक विद्यालय में बैठी रहना शायद हर किसी के बस में नहीं।शैलजा ने उनसे माफी मांगते हुए कहा”मुझे माफ़ कर दीजियेगा।कभी पता ही नहीं चला कि आराध्या के बारे में।समय की कमी की वजह से कभी आपसे बात कर ही नहीं पाई मैं।”
उन्होंने बड़ी शालीनता से जवाब दिया”मैं जानती हूं मैम।आप बड़ी क्लास में पढ़ाती हैं।आपने मेरी बेटी को देखा होगा।सब कहतें हैं वो स्पेशल चाइल्ड है।यहां के सभी स्कूलों में लेकर गई थी मैं।यहां आकर वह खुश हुई,तो यहीं एडमिशन करवा दिया।वह सुन-बोल नहीं सकती,पर समझ सकती है सब।इस जगह ऐसे बच्चों के लिए किसी स्पीच थैरेपी की व्यवस्था भी नहीं है।पति की नौकरी यहीं है।नागपुर में इलाज चल रहा है मैम।आस -पड़ोस के बच्चों को स्कूल जाते देखकर यह भी ज़िद कर रही थी।हमने एडमिशन करवा दिया यहां पर।”
तभी वहां आराध्या रोते हुए आई।शैलजा ने पूछा कि क्या हुआ?वह कुछ बोली नहीं।आराध्या की मम्मी ने उसके पास जाकर देखा और बोली”वॉशरूम जाना है क्या आरू? अच्छा-अच्छा जाओ अपनी मैम के साथ।”आराध्या कुछ बोल नहीं रही थी पर मां सब समझ रही थी।चेहरे पर अब भी मुस्कान थी,उन महिला की।शैलजा को आज एक मां होने का अभूतपूर्व अर्थ पता चला।हम हर समय रोना रोते रहतें हैं,व्यस्तता का,बच्चों की परवरिश का,घर के कामों का।
हमेशा मां होने का अधिकार जताते रहतें हैं।अपनी अहमियत के बारे में परिवार से सवाल करते रहतें हैं।यहां एक मां अपने स्पेशल चाइल्ड के स्कूल में घंटों बिता रही है।उन्हें पूरी उम्मीद है कि बेटी ठीक हो जाएगी।जब छोटी थी,तब समझ नहीं पाईं अपनी बेटी की हालत।एक मां के लिए तो बच्चे का हर पल बचपना ही होता है।जब पता चला ,तो हारकर मजबूर नहीं हुई भाग्य के सामने। मज़बूती से बेटी की दशा सुधारने का प्रयास कर रही है।मांएं मजबूर नहीं मजबूत होतीं हैं।हर मां के लिए उसका बच्चा स्पेशल ही होता है।आराध्या के स्पेशल चाइल्ड होने पर उनके मन में नकारात्मक सोच कैसे आ सकती है?
आराध्या और उसकी मां आज शैलजा के लिए स्पेशल हो गए,और हमेशा रहेंगे।
शुभ्रा बैनर्जी