मैं उसकी होने वाली पत्नी ही नहीं… किसी की बेटी भी हूँ – संध्या सिन्हा  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : राधा की बेटी कि सगाई अभी दो महीने पहले ही हुई थी और चार माह बाद ब्याह होने को हैं। आजकल वो और उसका पति उसी की तैयारी में लगे रहते हैं। 

आज दोनों उसके लिए कुछ अपने पुराने ज़ेवर के बदले और कुछ पैसे लगा कर दो सेट ज़ेवर लेकर आयी  थी राधा।

अभी पिछले बरस ही उसने अपनी बड़ी बेटी अनु की शादी बहुत  धूम-धाम से की थी और छोटी बेटी की शादी दो साल बाद करने कि सोची थी…लेकिन बड़ी बेटी के ब्याह के कुछ ही महीनों बाद एक प्रतिष्ठित परिवार से छोटी बेटी का रिश्ता आ गया।राधा और  कृष्ण(राधा के पति) अभी तैयार नहीं थे इस विवाह के।लेकिन घर-परिवार और नाते-रिश्तेदारों के दबाव पर वहाँ दोनों तैयार हो गये।

किसी तरह से  वो दोनों अपनी पुश्तैनी ज़मीन बेच कर बहुत धूम-धाम से छोटी बेटी की सगाई कर दी और चार माह बाद शादी की डेट निकलवाई ताकि पैसों का इंतज़ाम कर सके दोनों। हम मध्यम वर्गीय परिवार वाले अपनी बेटियों की शादी का इंतज़ाम उनके पैदा होते ही कर लेते हैं लेकिन… आज शादी में  दहेज की जगह शो-बाज़ी और दिखावें का रूप ले ली हैं…सो… बे-वजह पैसे खर्च होते हैं आज के  शादी-ब्याह में।

राधा-कृष्ण ने भी अपनी बड़ी बेटी की शादी  और छोटी बेटी रानो की सगाई में  अपनी हैसियत से अधिक खर्च किया.. हर माँ-बाप ऐसा ही करते है.. शायद…

अभी दो माह बचें थे  रानो के ब्याह…

और राधा-कृष्ण शादी की तैयारी में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा कर जुटे थे दोनों । 

“माँ! मैंने स्पष्ट शब्दों में करण को शादी के लिए मना कर दिया।”

बेटी ने घर में आफिस से घर लौट कर बताया।

“ क्यों बेटा??”

“ माँ रोज़-रोज़ उसके झगड़ने के बहाने कि- मैं उसे समय नहीं देती या उससे मिलने नहीं आती।आप ही बताओ माँ, मैं भी जॉब करती हूँ, जैसे उसे समय नहीं मिलता मुझे भी नहीं मिलता।”

आज उसे ये शिकायत थी कि… मैं गुड़गाँव तक आयी पर उससे नहीं मिली, अब तुम्हीं बताओ माँ मैं ऑफ़िस के काम से ऑफ़िस टाइम में उसके पास मिलने कैसे जाती… वो भी तो आ सकता था ना माँ लंच टाइम में???

पर…….

“लोग क्या कहेंगे बेटा कि…. सगाई हो गयी थी तुम्हारी।”

“ ऐसा कुछ नहीं है माँ! ये तो अच्छा ही हुआ ना माँ कि … सिर्फ़ सगाई ही हुई थी, शादी हो गयी होती तो…? और माँ !असल बात आज उसके मुँह से निकल ही आई कि…. उसे नया फ़्लैट ख़रीदने के लिए पापा से ५० लाख रुपए(दहेज स्वरूप) चाहिए।”

“ पर बेटा….. नाते-रिश्तेदार क्या सो…चें…गे…..?”

“ माँ अभी सगाई के कुछ दिनों बाद ऐसी माँग सोचों शादी के बाद और बढ़ जाती तो… जीना दूभर हो जाता हम सबका।”

“ माँ ! मैंने उससे कहा भी कि… कुछ दिनों बाद हम दोनों अपने-अपने सेविंग से फ़्लैट ख़रीद लेंगे। पर उसे मुझे ब्याह कर नए फ़्लैट में ले जाना था।पर वो शायद….ये जैसे भूल गया कि… मैं  सिर्फ़ उसकी होने वाली पत्नी ही नहीं… किसी की बेटी भी हूँ।”


कभी-कभी हम बेटी के माँ-बाप लड़के वालों की इन छोटी-छोटी बातों को नज़रअन्दाज़ कर उनकी डिमांड पूरी कर देते है। लेकिन वही बाद में एक भयानक रूप ले बेटी का जीवन बर्बाद कर देती है।

संध्या सिन्हा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!